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हाइलाइट्स

हर कंपनी के पास कर्मचारी को नौकरी से निकालने का ठोस आधार होना चाहिए.
भेदभाव और जॉब कॉन्ट्रेक्ट के नियमों को तोड़कर नौकरी से निकालना गलत और अवैध है.
कर्मचारी शिकायत करने के लिए कानूनी नोटिस, लेबर डिपार्टमेंट और कोर्ट का सहारा ले सकते हैं.

नई दिल्ली. यूरोप और अमेरिका में आर्थिक मंदी की आशंका के कारण कंपनियों ने अपने खर्चों और लागत को घटाने के लिए कर्मचारियों की छंटनी करना शुरू कर दी है. ट्विटर के बाद फेसबुक ने भी 11 हजार से ज्यादा लोगों को नौकरी से चलता कर दिया है. हालांकि, छंटनी हमेशा नियमों के तहत होती है और बिना किसी वजह से एम्पलाइज को नहीं निकाला जा सकता है. इसलिए ऐसे समय में जरूरी है कि नौकरीपेशा लोग इन नियमों के बारे में अच्छे से जान लें.

देश में कर्मचारियों की रक्षा के लिए कुछ कानून बनाए गए हैं, इनके जरिए वे अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ सकते हैं. आइए जानते हैं कि भारत में कर्मचारियों के लिए क्या नियम तय किए गए हैं.

अधिकारों को जानने से पहले हमें समझना होगा कि अवैध तरीके से नौकरी की समाप्ति क्या होती है? अवैध या गलत तरीके से नौकरी से निकालने का मतलब होता है कि जब किसी कर्मचारी को बिना किसी पर्याप्त कारण के नौकरी से निकाल दिया जाता है. इसमें कर्मचारी का कंपनी के साथ व्यक्तिगत संघर्ष, कंपनी का घाटे में जाना आदि हो सकता है.

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नौकरी से निकाले जाने के गलत तरीके

  • कोई भी कंपनी भेदभाव के आधार पर किसी कर्मचारी को नहीं निकाल सकती है. इनमें जाति, उम्र, लिंग, राष्ट्रीयता आदि भेदभाव के आधार हो सकते हैं. एचआईवी एड्स से पीड़ित कर्मचारी को भी इस आधार पर निकालना उसके अधिकारों का उल्लंघन है.
  • हर कंपनी और कर्मचारी के बीच एक जॉब को लेकर कुछ नियम और शर्तें होती है और दोनों को ही इनका पालन करना होता है. अगर कंपनी इन शर्तों को तोड़ती है और कर्मचारी को निकाल देती है तो उसे गलत माना जाएगा.
  • गलत तरीके से नौकरी से निकालने जाने वाले हर भारतीय के पास कानूनी अधिकार हैं, जिनके जरिए वह कंपनी के फैसले को चुनौती दे सकता है. इनमें औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947, महिला मुआवजा अधिनियम 1923, राज्य दुकानें और स्थापना नियम, अनुबंध अधिनियम 1872 और मातृत्व लाभ अधिनियम शामिल हैं.

कर्मचारी कैसे करें शिकायत?

अगर आपको लगता है कि कंपनी ने आपको ऊपर बताए गए गलत तरीकों से नौकरी से निकाल दिया है तो आप इस चुनौती दे सकते हैं.

  • सबसे पहले कदम के तौर पर कर्मचारी नियोक्ता से इसकी शिकायत करे. इसमें कंपनी के HR डिपार्टमेंट या अपने नियोक्ता को औपचारिक रूप से शिकायती पत्र भेज सकता है. अगर नियोक्ता या कंपनी को संतोषजनक उत्तर नहीं देती हैं, तो आप अगले कदम के तौर पर कानूनी चुनौती दे सकते हैं.
  • कंपनी या नियोक्ता को लीगल नोटिस भेजना चाहिए. इसमें वकील के जरिए आप अपने साथ हुए गलत व्यवहार या पूरी समस्या को सामने रख सकते हैं.
  • यदि लीगल नोटिस के बाद भी कंपनी/नियोक्ता संतोषजनक जवाब नहीं देता है तो उस स्थिति में कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया जा सकता है. आप अपनी बात रखने के लिए लेबर कमिश्नर से भी मिल सकते हैं.
  • अगर लेबर कमिश्नर ऑफिस में भी 45 दिनों के अंदर आपका विवाद नहीं सुझलता है तो आप इंडस्ट्रियल कोर्ट भी जा सकते हैं. इसके अलावा दीवानी अदालत में भी केस को ले जाया जा सकता है.
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Tags: Elon Musk, Employees, Facebook, Twitter

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