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हाइलाइट्स

150 करोड़ से अधिक की 386 परियोजनाओं की लागत 4.7 लाख करोड़ बढ़ गई है.
यह लागत मुख्यत: इनके निर्माण में हो रहे विलंब के कारण बढ़ी है.
देरी से चल रही इन परियोजनाओं पर अनुमानित लागत का 52 फीसदी खर्च हो चुका है.

नई दिल्ली. इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक के खर्च वाली 386 परियोजनाओं की लागत तय अनुमान से 4.7 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा बढ़ गई है. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी और अन्य कारणों से इन परियोजनाओं की लागत बढ़ी है. बता दें कि सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय 150 करोड़ रुपये या इससे अधिक की लागत वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की निगरानी करता है.

मंत्रालय की जुलाई 2022 की रिपोर्ट में कहा गया है कि 150 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली 1,505 परियोजनाओं में से 386 की लागत बढ़ गई है जबकि 661 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं. रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘इन 1,505 प्रोजेक्ट्स के क्रियान्वयन की मूल लागत 21,21,793.23 करोड़ रुपये थी लेकिन अब इसके बढ़कर 25,92,537.79 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है. इससे पता चलता है कि इन परियोजनाओं की लागत 22.19 प्रतिशत यानी 4,70,744.56 करोड़ रुपये बढ़ गई है.’’

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कुल अनुमानित लागत का 52 फीसदी खर्च हुआ
रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई, 2022 तक इन परियोजनाओं पर 13,50,275.69 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, जो कुल अनुमानित लागत का 52.08 प्रतिशत है. हालांकि, मंत्रालय ने कहा है कि यदि परियोजनाओं के पूरा होने की हालिया समयसीमा के हिसाब से देखें तो देरी से चल रही परियोजनाओं की संख्या कम होकर 511 पर आ जाएगी. इसका मतलब है कि इनमें से कई योजनाओं की डेडलाइन बढ़ा दी गई है. इस रिपोर्ट में 581 परियोजनाओं के चालू होने के साल के बारे में जानकारी नहीं दी गई है.

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कितनी देरी से चल रहे प्रोजेक्टस
रिपोर्ट में कहा गया है कि देरी से चल रही 661 परियोजनाओं में से 134 परियोजनाएं एक महीने से 12 महीने, 114 परियोजनाएं 13 से 24 महीने की, 289 परियोजनाएं 25 से 60 महीने की और 124 परियोजनाएं 61 महीने या अधिक की देरी से चल रही हैं. इन 661 परियोजनाओं में हो रहे विलंब का औसत 41.83 महीने है.

क्यों हो रही है देरी?
इन परियोजनाओं में देरी के कारणों में भूमि अधिग्रहण में अधिक समय लगना, पर्यावरण और वन विभाग की मंजूरियां मिलने में देरी और बुनियादी संरचना की कमी प्रमुख है. इनके अलावा परियोजना की फंडिंग, डीटेल्ड इंजीनियरिंग का इम्पलिमेंटेशन, परियोजना की संभावनाओं में बदलाव, निविदा प्रक्रिया में देरी, ठेके देने व उपकरण मंगाने में देरी, कानूनी व अन्य दिक्कतें, अप्रत्याशित भू-परिवर्तन आदि की वजह से भी इन परियोजनाओं में विलंब हुआ है.

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