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raju shrivastav cardiac arrest: दुनिया भर में गजोधर के नाम से मशहूर सबको हंसाने वाले कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव अचानक सबको रूला कर इस दुनिया से विदा हो गए. सिर्फ 58 साल में इस दुनिया को अलविदा कहने वाले राजू श्रीवास्तव के हार्ट में आखिर ऐसी कौन सी जटिलताएं आ गई थी कि कोमा से उबरने के बाद भी वे चल बसे. फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग में कार्डियलॉजी के डाइरेक्टर और इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिस्ट डॉ नित्यानंद त्रिपाठी कहते हैं कि राजू श्रीवास्तव कोमा से रिकवर तो हो गए थे, लेकिन हार्ट अटैक के बाद उनका हार्ट कमजोर हो गया होगा. इससे उबरने में समय लगता है. अगर हार्ट में परेशानी बढ़ती है तो इससे कई अंगों में ब्लड सप्लाई बाधित होती है. चूंकि उनका ब्रेन रिकवर हो गया था, इसलिए इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि उनका सडेन कार्डिएक अरेस्ट हुआ होगा. डॉ त्रिपाठी ने कहा कि हार्ट रिकवर होने के बाद मरीज में आईसीडी लगाया जाता है लेकिन इसके लिए 40 दिनों का इंतजार करना पड़ता है. अगर राजू श्रीवास्तव कुछ दिनों और जीवित रहते तो इस बात की बहुत अधिक संभावना थी उनके हार्ट में आईडीसी लगा दिया जाता है और फिर वे सामान्य जीवन जी सकते थे. लेकिन ऐसा हो न सका.

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मल्टीपर ऑर्गेन फेल्योर की भी आशंका
डॉ नित्यानंद त्रिपाठी ने बताया कि हार्ट अटैक के बाद राजू श्रीवास्तव के ब्रेन में खून कम पहुंच रहा होगा. इस स्थिति में ब्रेन में ऑक्सीजन की सप्लाई भी कम हो रही होगी. मेडिकल भाषा में इसे हाइपोक्सिया डैमेज कहते हैं. यानी ब्रेन के टिश्यूज मरने लगते हैं. इस स्थिति में भी कुछ मरीज रिकवर कर जाते हैं लेकिन जिसके ब्रेन में ज्यादा डैमेज हो जाता है, उसे रिकवर करने की संभावना बहुत कम हो जाती है. लास्ट स्टेज में ब्रेन डेड होने लगता है. डॉ त्रिपाठी कहते हैं कि हालांकि राजू श्रीवास्तव इस स्थिति से रिकवर हो गए थे, इसलिए ब्रेन में डैमेज होने के कारण उनकी मौत हुई होगी, इस बात की संभावना बहुत कम है. इसलिए उनका कार्डिएक इवेंट हुआ होगा जिससे कार्डिएक अरेस्ट आया होगा. यानी अचानक हार्ट ने काम करना बंद कर दिया होगा.इस तरह के मामलों में मल्टी ऑर्गेन फेल्योर का खतरा रहता है. इससे लंग्स और किडनी पर असर पड़ता है. अंततः मल्टीपर ऑर्गेन फेल्योर की वजह से मरीज की जान चली जाती है.

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अगर कुछ दिन और जीवित रहते…
डॉ नित्यानंद त्रिपाठी ने कहा, “इस तरह के मरीज का हार्ट कमजोर हो जाता है जिससे वेंटीकुलेटरी कार्डियोवैस्कुलर प्रीवेलेंस (VTP) की आशंका काफी बढ़ जाती है. इस स्थिति में मरीज को शॉक दिया जाता है. राजू श्रीवास्तव को भी यह दिया गया होगा. ऐसा करने से अधिकांश मरीजों को बचाया जा सकता है लेकिन दुर्भाग्य से कुछ मरीजों की जान नहीं बचती. ” डॉ त्रिपाठी कहते हैं कि जब मरीज का हार्ट इस स्थिति से उबर जाता है तो उनमें लेफ्ट वेंट्रीकुलर एक्सेस डिवाइस या इंप्लांटेबल कार्डिएक डेफीब्रिलेटर (implantable cardiac defibrillator -icd) लगाया जाता है. लेकिन इसके लिए हार्ट की परेशानी से उबरने का बाद 40 दिनों तक इंतजार किया जाता है. इसका मतलब यह हुआ कि राजू श्रीवास्तव कोमा से रिकवर कर गए थे. उनके हार्ट में यदि समस्या नहीं आती और वे 10-15 दिनों तक और जीवित रहते तो उनके हार्ट में आईसीडी या एलवीडी लगाकर उन्हें बचाया जा सकता था. डॉ त्रिपाठी कहते हैं कि डिवाइस लगाने के बाद इस बात की बहुत अधिक संभावना थी कि राजू श्रीवास्तव को बचाया जा सकता था.

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