
हाइलाइट्स
अगर अमेरिका में मंदी आई तो इससे दुनिया के सभी देश प्रभावित होंगे.
आर्थिक मंदी की अहम वजह धन का प्रवाह या निवेश का रुक जाना है.
भारत में 1958, 1966, 1973 और 1980 में आर्थिक मंदी आई थी.
नई दिल्ली. बढ़ती महंगाई और ब्याज दरों में लगातार वृद्धि होने से अमेरिका और यूरोपीय देश में आर्थिक मंदी का खतरा गहराता जा रहा है. कई अर्थशास्त्रियों ने कहा कि यूरोप मंदी की गिरफ्त में जा रहा है. वहीं, अमेरिका में अगले साल तक रेसेशन आ सकता है. अगर अमेरिका में मंदी आई तो इससे दुनिया के सभी देश प्रभावित होंगे.
मंदी के कारण महंगाई और बेरोजगारी बढ़ने का खतरा रहता है. लोगों की आमदनी कम हो जाती है और अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने से शेयर बाजार में लगातार गिरावट देखने को मिलती है. आइये जानते हैं आखिर आर्थिक मंदी क्या है और ये कैसे किसी देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाती है.
कैसे आती है आर्थिक मंदी?
जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाहियों में जीडीपी ग्रोथ घटती है, तो उसे टेक्निकली मंदी का नाम दिया जाता है. दूसरे शब्दों में अगर इकोनॉमी की रफ्तार जब बढ़ने की बजाय गिरने लगे और अगर ये सिलसिला कई तिमाहियों तक जारी रहता है, तो देश में आर्थिक मंदी के हालात बनने लगते हैं.
मंदी से ऐसे बिगड़ते हैं हालात
आर्थिक मंदी में लोगों के पास पैसे की कमी होती है और वह अपनी जरूरतों को कम करने की कोशिश करता है. इसका नतीजा यह होता है कि मार्केट में डिमांड कम होने लगती है और प्रोडक्ट्स की बिक्री कम होती है. ऐसे में स्वाभाविक है कि जब मांग कम होगी तो उत्पादन पर भी असर पड़ेगा इसलिए कम्पनी अपने लाभ के अनुसार ही कर्मचारियों को रखना चाहेंगी, जिससे कर्मचारियों की छंटनी शुरू हो जाती है,
जिससे लाखों की संख्या में लोग बेरोजगार होते है .
वहीं, आर्थिक मंदी की अहम वजह धन का प्रवाह या निवेश का रुक जाना है. क्योंकि लोगों की परचेसिंग पावर घट जाती है, साथ ही देश-विदेश से आने वाला निवेश भी कम हो जाता है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती है, जिससे महंगाई दर और बढ़ती है और लोग अपनी आवश्यकता की चीजे नहीं खरीद पाते है . डॉलर के मुकाबले रुपये की घटती हुई कीमत भी इसका मुख्य कारण है. मंदी के दौरान आयात के मुकाबले निर्यात में गिरावट होने से देश का राजकोषीय घाटा बढ़ जाता और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी देखने को मिलती है .
मंदी का भारत पर असर नहीं होगा
हालांकि, मौजूदा वक्त में भी मंदी को लेकर अटकलें लगाई जारी रही हैं. लेकिन भारत पर इसका सीधा असर होने की संभावना कम है. अमेरिका, यूरोप और चीन जैसी ग्लोबल इकोनॉमी का मंदी में जाना तय माना जा रहा है. कई अर्थशास्त्रियों और उद्योगपति ने अगले साल तक दुनिया में आर्थिक मंदी की संभावना जताई है.
भारत में कब-कब आई आर्थिक मंदी?
आजादी के बाद से अब तक भारत ने कुल चार मंदी देखी है. आरबीआई के जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं. ये साल 1958, 1966, 1973 और 1980 में आई.
- 1957-58 में भारत की जीडीपी की ग्रोथ रेट माइनस में चली गई. इस साल जीडीपी ग्रोथ रेट -1.2 प्रतिशत रिकॉर्ड की गई थी. इसका मुख्य कारण आयात बिलों में भारी वृद्धि थी.
- वित्तीय वर्ष 1965-66 में भयंकर सूखे और अकाल की वजह से भारत की जीडीपी ग्रोथ फिर माइनस में चली गई.
- तेल संकट के कारण 1973 की मंदी के हालात बने. पेट्रोलियम उत्पादक अरब देशों के संगठन (ओएपीईसी) ने उन तमाम देशों के तेल निर्यात करने पर रोक लगा दी थी, जो योम किप्पूर युद्ध में इसरायल के साथ थे. इसके चलते कुछ वक्त के लिए तेल की कीमतें 400 फ़ीसदी तक बढ़ गई थीं.
- 1980 में ईरानी क्रांति की वजह से दुनिया भर में तेल उत्पादन को बड़ा झटका लगा था और इसी वजह से इस साल भारत में मंदी आई. इस दौरान भी तेल आयात की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई.
इसके अलावा 1991, 2008 साल 2020 में भी भारत को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा.
इस दौरान भारत की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गई थी.
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Tags: Business news, Indian economy, Inflation, Recession
FIRST PUBLISHED : November 12, 2022, 10:52 IST
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