
डॉ. वेदाभ्यास कुंडू और मुनाजा शाह
नई दिल्ली. दो अक्टूबर को महात्मा गांधी की 153वीं जयंती और संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्री अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किए जाने की 15वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. प्रस्तुत आलेख वरिष्ठ गांधीवादी चिन्तक वेदाभ्यास कुंडू और मुनाज़ा शाह के बीच एक वार्तालाप के अंश हैं, जिसमें जलवायु परिवर्तन की चिंताओं को गांधीवादी तौर-तरीके से समझने की कोशिश की गयी है. इस वार्तालाप में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ एक काल्पनिक सम्वाद भी किया गया है, ताकि पाठकगण बापू की आज से 100 साल पहले की चेतावनी और उस पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर पुनः ध्यान दें.
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वेदाभ्यास: 6 सितंबर 2022 को बेंगलुरु में आई बाढ़ एक मानव निर्मित आपदा थी.
मुनाजा: मानसून के मौसम में बेंगलुरु हमेशा से बाढ़ को लेकर अतिसंवेदनशील जगह है. आईटी हब और आधुनिक युग की नगरी होने के बावजूद अभी भी बाढ़ का ऐसा तांडव? आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? (मुनाज़ा आश्चर्य करती हैं)
वेदाभ्यास: जब मैंने कहा कि यह मानव निर्मित आपदा है तो उससे मेरा यही मतलब था. आप देखिए कई इलाकों में लोगों को घर-बार छोड़ना पड़ा. 36 घंटे तक बिजली नहीं रही. नदी-नाले जाम हो गये. लोगों को लगता है कि प्रकृति ने यहां अपना रौद्र रूप दिखाया है, लेकिन हम इस बात को नजरअंदाज करते हैं कि इस मुसीबत को स्वयं हमने आमंत्रित किया है.
मुनाज़ाः हां वेदाभ्यास! बेंगलुरु का ड्रेनेज इंफ्रास्ट्रक्चर भीषण बारिश से निपटने के लिए तैयार नहीं है. इमारतों को बिना जिम्मेदारी के नियमों का उल्लंघन कर बनाया जाता है. खुले इलाकों को लापरवाही से कम कर दिया गया है. शहर का जल प्रबंधन असंतुलित है.
वेदाभ्यास: मुनाजा, अगर आपको याद हो तो इस साल असम में आई बाढ़ भी विनाशकारी थी.
मुनाज़ा: अगर हम समाचार रिपोर्टों पर जाएं तो असम में बाढ़ ने लगभग 19 लाख लोगों को प्रभावित किया और 179 लोगों की जान ले ली. असम में हर साल बाढ़ आना आम बात है, लेकिन इस साल सबसे खराब स्थिति थी. यक्ष प्रश्न यह है कि असम में विनाशकारी बाढ़ का कारण क्या है? मुझे लगता है बाढ़ को लेकर रणनीतियों को लागू नहीं करने के अलावा, जलवायु परिवर्तन दक्षिण एशिया में विनाशकारी बाढ़ में अपनी भूमिका निभा रहा है.
वेदाभ्यास: मुनाज़ा! जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम केवल बाढ़ ही नहीं है. इसके कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. समुद्र का स्तर बढ़ रहा है. सूखे जैसे हालात हो रहे हैं.
मुनाज़ाः जी हां! बताया जा रहा है कि यूरोप पुनर्जागरण के बाद से सबसे भीषण लू का सामना कर रहा है. इस साल यूरोप दो-तिहाई क्षेत्र में सूखे के अलर्ट के साथ पिछली पांच शताब्दियों की तुलना में ज्यादा सूखा है. यह अर्थव्यवस्था के लिए कोई अच्छी खबर नहीं है.
वेदाभ्यास: इन सभी मुद्दों को ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट 2020 ‘ह्यूमन डेवलपमेंट एंड द एंथ्रोपोसीन’ में बताया गया है. मुनाज़ा, मुझे यकीन है कि आपने रिपोर्ट पढ़ ली है. इसमें बताया गया है कि हम मानव जाति इतिहास के एक अभूतपूर्व क्षण में जी रहे हैं. यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि हाल के वर्षों में मानवजनित परिवर्तनों के कारण जंगल की आग, बाढ़, तूफान और अन्य कठोर प्राकृतिक आपदाओं जैसे संकट उत्पन्न हुए हैं. संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र के कामकाज में अत्यधिक मानवीय हस्तक्षेप ने पर्यावरण पर हर तरह से कहर बरपाया है.
मुनाज़ाः (वेदव्यास पर फोकस करते हुए) मैं रिपोर्ट की उन महत्वपूर्ण लाइनों को याद करती हूं- मूल्यों और संस्थानों द्वारा निर्मित मानव पसंद ने परस्पर जुड़े हुए संसार और सामाजिक असंतुलन को जन्म दिया है, जिसका हम सामना कर रहे हैं.’ मैं महसूस करती हूं कि हमें रिपोर्ट में शामिल उन साहसिक नए विकल्पों पर चलने की आवश्यकता है जो धरती माता पर दबाव को कम करते हुए मनुष्य की आजादी का विस्तार करे.
वेदाभ्यास: हम सभी को इस बात से सहमत होना होगा कि यह एक तकनीकी नहीं, बल्कि अति तकनीकी युग है. भौतिकवाद के इस युग में और अति विकास के चक्कर में हम मानव जाति को प्रकृति के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं. यदि हमें 2030 के सतत विकास के एजेंडा के लिए प्रत्यक्ष सफलता प्राप्त करनी है, तो हमें आर्थिक विकास की वेदी में पर्यावरण के अवमूल्यन के वर्तमान आख्यान को बदलना होगा. हमें यह याद रखना होगा कि हम सभी धरती माता के रक्षक हैं और मानव जाति, प्रकृति और अन्य सभी प्राणियों के लिए हम सभी की समान जिम्मेदारी है. मेरा दृढ़ विश्वास है कि यहीं पर हमारे राष्ट्रपिता ने जो कहा वह अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है.
मुनाज़ाः मैं आपकी बात से सहमत हूं वेदाभ्यास! बापू ने जो कहा और जिसके समर्थन में वे सदैव खड़े रहे, वह आज जो हम देख रहे हैं, उससे कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है.
(इस महत्वपूर्ण वार्तालाप के दौरान अचानक एक आवाज गूंजती है| यह बापू की आवाज है| शांति दूत के रूप में बापू प्रकट होते हैं और इस चर्चा में शामिल हो जाते हैं.)
बापू: बच्चों, तुम बाढ़ की बात कर रहे हो. क्या मैंने 100 साल से अधिक पहले इसकी चेतावनी नहीं दी थी? पेरिस हैवॉक में मैंने लिखा था, ‘पेरिस के लोगों ने शहर को हमेशा के लिए रहने के लिए बनाया था, लेकिन बाढ़ के बारे में चेताते हुए मैंने कहा था कि प्रकृति ने चेतावनी दी है कि पूरा पेरिस भी नष्ट हो सकता है. मैंने इस बारे में बात की थी कि कैसे पेरिसवासियों को महलनुमा भवनों के पुनर्निर्माण की निरर्थकता का एहसास नहीं होगा और इंजीनियर अपने घमंड में अब और अधिक भव्य योजनाएं बनाएंगे और पानी की तरह पैसा बहाएंगे. जलप्रलय को स्वयं भूल जाएंगे और दूसरों को भी भुला देंगे. वर्तमान सभ्यता का ऐसा ही जुनून है. (5 फरवरी, 1910, पेरिस हैवॉक, इंडियन ओपिनियन)
वेदाभ्यास और मुनाज़ा (एक साथ): बापू, हमें क्या करना चाहिए. हम इस संकट से कैसे बाहर निकल सकते हैं और पर्यावरण के प्रति कैसे जागरूक जीवन जी सकते हैं?
महात्मा ने उनकी आंखों में झांकते हुए कहा- प्रकृति दिन-प्रतिदिन हमारी जरूरतों के लिए पर्याप्त उत्पादन करती है और यदि केवल हर कोई अपनी आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त हासिल कर ले और इससे ज्यादा की मांग न करे तो इस दुनिया में कोई गरीबी नहीं होगी. दुनिया में भूख से और कोई मृत्यु नहीं होगी. लेकिन जब तक हममें यह असमानता है, तब तक हम चोर हैं. (ट्रस्टीशीप,नवजीवन ट्रस्ट प्रकाशन)
वेदाभ्यास: हां बापू, अभी जो हो रहा है वह बहुत ही गंभीर है. हमारी आवश्यकताओं का कोई अंत नहीं है और हममें से अधिकांश को अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए दूसरों को, प्रकृति को और अन्य सभी जीवों को कष्ट पहुंचाने में कोई आपत्ति नहीं है.
बापू: मैंने आप सभी को इस बारे में हिंद स्वराज में चेतावनी दी थी. मैंने आपको बताया था कि कैसे यह सभ्यता शारीरिक सुख-सुविधाओं को बढ़ाने का प्रयास करती है और ऐसा करने में भी वह बुरी तरह विफल रहती है. सच्ची सभ्यता के अपने विचार पर मैंने कहा था- सभ्यता आचरण का वह तरीका है जो मनुष्य को कर्तव्य का मार्ग बताता है. हम देखते हैं कि मन एक बेचैन पक्षी है. जितना अधिक वह चाहता है उतना ही अधिक प्राप्त करता है और फिर भी असंतुष्ट रहता है. जितना अधिक हम अपने जुनून में लिप्त रहते हैं, हम उतने ही बेलगाम होते जाते हैं. इसलिए, हमारे पूर्वजों ने हमारे भोगों की एक सीमा निर्धारित की. उन्होंने देखा कि खुशी काफी हद तक एक मानसिक स्थिति होती है. आज हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं उनमें से अधिकांश इन बेलगाम चाहतों के कारण हैं, जिनका कोई अंत नहीं है.
मुनाज़ा: हम सभी को इन चेतावनियों पर ध्यान देने की जरूरत है अन्यथा हम बर्बाद हो जायेंगे| हम सब इन असीमित इच्छाओं के गुलाम हैं।
बापू: मैं बार-बार इन चिंताओं की बात करता रहा हूँ। यदि आपको याद हो तो मैंने कहा था, “आराम की निरंतर और कई गुना खोज एक ऐसी बुराई है, और मैं यह कहने का साहस करता हूं कि यूरोपीय लोगों को स्वयं अपने दृष्टिकोण को फिर से तैयार करना होगा, यदि वे उन सुख-सुविधाओं, जिनके वे दास बनते जा रहे हैं, के बोझ तले दबना नहीं चाहते।” (कलेक्टेड वर्क्स खंड 46: 55-6)
वेदाभ्यास: बापू, पूरी मानव जाति को अपनी मूल बातों पर फिर से विचार करने की जरूरत है। अगर हमें आपके विचारों को सही ढंग से समझना है और अपने दैनिक जीवन व्यवहार में लाना है तो हमें याद रखना चाहिए कि सादगी और न्यूनतावाद जीवन जीने का तरीका होना चाहिए। हमें अपने जीवन को ऐसा बनाना है जिसमें सादगी, गहरी सहानुभूति, वास्तव में जीवित होने और हमारे जीवन के चेतन होने का सार होना चाहिए। हम सभी को मानवीय अन्योन्याश्रितता के अपने विचारों को ईमानदारी से व्यवहार में लाने की आवश्यकता है – कि हम अकेले नहीं हैं बल्कि अन्य सभी मनुष्यों, प्रकृति और अन्य जीवित प्राणियों से जुड़े हुए हैं।
मुनाज़ाः साथ ही बापू, आपके विचार न केवल मानव, बल्कि सभी के सामूहिक कल्याण के लिए हमारे लिए धरती माता के रक्षक के रूप में मार्गदर्शक हैं. आइए हम सब आपके चरखे के उस संदेश को आत्मसात करें, जिसमें आपने कहा है, ‘चरखे का संदेश उसकी परिधि से कहीं अधिक व्यापक है. इसका संदेश सादगी, मानव सेवा, दूसरों को चोट न पहुंचाने के लिए जीना, अमीर और गरीब, पूंजी और श्रम, राजकुमार और किसान के बीच एक अटूट बंधन बनाना है। यह बड़ा संदेश स्वाभाविक रूप से सभी के लिए है.’ (यंग इंडिया, 17-9-1925, पृष्ठ 321)
धीरे-धीरे चारों ओर धुंध छाने लगती है, जिसमें बापू आंखों से ओझल हो जाते हैं, लेकिन उनके शब्द दृढ़ता से अंकित हो जाते हैं- हमारे विवेक और हमारी चेतना पर.
(डॉ. वेदाभ्यास कुंडू गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति नई दिल्ली के कार्यक्रम अधिकारी हैं. मुनाजा शाह न्यूज 18 नेटवर्क की सीनियर न्यूज एंकर हैं.)
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