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हाइलाइट्स

कोर्ट ने कहा- आर्थिक रूप से कमजोर समाज में महिलाओं के लिए घर संभालना, काम करना सामान्य बात
अदालत ने कहा- घर का काम करना फिर जीवकोपार्जन के लिए नौकरी पर जाना प्रियंका की जिम्मेदारी थी
प्रियंका शेलार ने 2015 में आत्महत्या कर ली थी, उसके पति और सास पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप था

मुंबईः घर के कामों के लिए सुबह 4 बजे उठना, फिर नौकरी पर जाना और शाम को लौटकर फिर से घर का काम करना, क्रूरता नहीं है बल्कि उसकी जिम्मेदारियों का हिस्सा है…यह टिप्पणी मुंबई की एक सत्र अदालत ने एक 30 वर्षीय व्यक्ति और उसकी मां को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में बरी करते हुए की. व्यक्ति पर अपनी पत्नी को 2015 में आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था और इस मामले में उसकी मां को भी सह-आरोपी बनाया गया था.

अदालत ने कहा कि प्रियंका शेलार, जो एक घरेलू सहायिका के तौर पर काम करती थी, उसने अपने मालिक के घर में आत्महत्या कर ली थी. वह समाज के उस तबके से ताल्लुक रखती थी, जहां महिलाओं से घर के काम करने के अलावा जीवन यापन के लिए कुछ पैसे कमाने की भी उम्मीद की जाती है. सेशन कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, ‘घर का काम करना और जीविकोपार्जन के लिए घरेलू सहायिका के रूप में किसी के यहां काम करना, प्रियंका की जिम्मेदारी थी. इसलिए, प्रियंका को उसके काम के अलावा घर का काम करने के लिए कहना क्रूरता नहीं मानी जाएगी.’

प्रशांत शेलार (30) और उसकी मां वनिता (52) के खिलाफ अदालत में गवाही देने वालों में प्रियंका की मां और बहन शामिल थीं. प्रशांत और प्रियंका की 2014 में शादी हुई थी. प्रशांत और उसकी मां पर प्रियंका के घरवालों ने आरोप लगाए थे कि उन्होंने उनकी बेटी के रंग को लेकर ताना मारा, उसके चरित्र पर संदेह किया, उसे अपने परिवार से बात करने की अनुमति नहीं दी और उसे रोजाना 6 किलोमीटर से अधिक चलने के लिए मजबूर किया.

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अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों ने जो कुछ भी कहा वह आम तौर पर समाज के निचले तबके की एक महिला के दैनिक जीवन में होता है, जिससे प्रियंका संबंधित थीं. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों ने जो कुछ भी कहा वह आम तौर पर समाज के निचले तबके की एक महिला के दैनिक जीवन में होता है, जिससे प्रियंका संबंधित थीं. अदालत ने कहा, ‘प्रियंका की जान को कोई खतरा नहीं था. अपमान, ताने और प्रतिबंध आम तौर पर किसी व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं, जब तक कि आरोपी आपराधिक सोच रखकर उसके साथ लगातार हाथापाई न करता हो और मानसिक यातना न देता हो.’

अदालत ने कहा कि पीड़िता को काम पर पैदल जाने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उसका पति डेली ट्रांसपोर्ट का खर्च नहीं उठा सकता था. अदालत ने कहा, ‘तथ्यात्मक परिस्थितियों को मानसिक क्रूरता का कारण नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह एक प्राकृतिक घटना है (घर के काम करना और जीवकोपार्जन के लिए नौकरी करना) और आम तौर पर समाज के उस तबके (आर्थिक रूप से कमजोर) के परिवारों में यह देखा जा सकता है. इस बात की कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं है कि किस वजह से प्रियंका ने आत्महत्या कर ली.’

Tags: Court, Mumbai News, Suicide Case

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