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- Know, The Historical Bhaiya Bahini Temple Of Siwan, This Temple Is A Symbol Of Brother sister Love, Built In The 17th Century
सीवान2 घंटे पहले
ऐतिहासिक भैया-बहिनी मंदिर।
सीवान में भाई-बहन का प्यार का प्रतीक भैया बहिनी का यह विख्यात मंदिर अपने आप में एक बड़ा इतिहास समेटे हुए हैं। रक्षाबंधन पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। भाई-बहन इस ऐतिहासिक स्थल पर पहुंचकर माथा टेकते है और अपने रिश्ते में अटूट प्यार और खुशहाली का मन्नत मांगते है।

भाई के सुख समृद्धि के लिए पूजा अर्चना करती बहन।
हम बात कर रहे हैं सीवान जिले के दरौंदा प्रखंड स्थित भैया-बहिनी की। यहां के लोगों की मान्यता रहा है की 17 वीं शताब्दी के मुगल शासन काल में एक भाई अपनी बहन को रक्षा बंधन के दो दिन पूर्व उसके ससुराल (भभुआ) से विदा कराकर डोली घर ले जा रहा था। भीखाबांध के समीप मुगल सैनिकों की नजर उनपर पड़ी। मुगल सिपाहियों की नीयत खराब हो गई वे डोली को रोककर बहन के साथ बदतमीजी करने लगे इसपर भाई सिपाहियों से युद्ध करने लगा। सिपाहियों की संख्या अधिक होने के कारण भाई कमजोर पड़ गया। इसके बाद मुगल सिपाहियों ने उसे मार डाला। बहन खुद को असहाय देखकर भगवान को पुकारने लगी। कहा जाता है कि एकाएक धरती फटी और दोनों धरती के अंदर चले गए।

यह वही वटवृक्ष है जहां दो भाई बहन धरती में समा गये थे। और वहीं से उगे दो वटवृक्ष काफी दूरी में फैले हुए है, दोनों वटवृक्ष आपस में लिपटे हुए हैं ऐसा प्रतीत होता है कि भाई अपनी बहन की रक्षा कर रहा है।
डोली लेकर चल रहे चारो कहारों ने भी बगल के कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी थी। लोग कहते हैं कि जहां भाई-बहन धरती में समाए थे,वहीं दो बरगद के पेड़ उग आए। दोनों वट वृक्ष ऐसे हैं कि देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि भाई अपनी बहन की रक्षा कर रहा है। वट वृक्ष काफी दूरी में फैला हुआ है। उस स्थान पर पहले मिट्टी का मंदिर बनाया गया। इसके बाद जैसे-जैसे मंदिर की महत्ता बढ़ी,बाद में श्रद्धालुओं ने पक्के मंदिर का निर्माण कराया यह अब श्रद्धा का केंद्र बन गया है।

इसी मिट्टी को साक्ष्य मानकर लोग करते है भाई बहन की पूजा अर्चना।
पेड़ों में रक्षा बांधने का है परंपरा
वटवृक्ष में रक्षाबंधन के दिन यहां राखी बांधी जाती है। बहनें यहां राखी चढ़ाकर भी भाइयों की कलाई में बांधती है। श्रावण पूर्णिमा और भाद्र शुक्ल पक्ष अनंत चतुर्दशी के दिन सीवान, सारण, गोपालगंज, पश्चिमी व पूर्वी चंपारण व पटना आदि जिलों के अलावे यूपी व झारखंड से भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु आकर पूजा-अर्चना करते हैं व मन्नतें मांगते है।
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