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हाइलाइट्स

श्रृंगार गौरी दर्शन में दर्शन के मांग को लेकर अगस्त 2021 में वाराणसी कोर्ट में केस दायर हुआ.
अप्रैल 2022 में सिविल जज रवि कुमार दिवाकर ने आयुक्त नियुक्त कर दिया था सर्वे का आदेश.
14 मई को सर्वेक्षण शुरू हुआ और अंतिम दिन बाबा मिल गए. बाद में मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट चला गया.

वाराणसी. ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में आज यानि बुधवार को जिला जज की अदालत में फैसला सुरक्षित कर लिया गया है. जिसे 12 सितंबर को सुनाया जाएगा. इस तारीख को ये फैसला हो जाएगा कि ये केस 1991 यानी वर्शिप एक्ट के अंतर्गत आता है या नहीं. इस दरम्यान हिंदू और मुस्लिम पक्ष दोनों ने अपनी जोरदार दलीलें पेश कीं. क्या थीं दलीलें और क्या हुई कोर्ट में बहस. जानिए इस रिपोर्ट में…

श्रृंगार गौरी दर्शन में दर्शन के मांग को लेकर अगस्त 2021 में वाराणसी कोर्ट में केस दायर हुआ. जिसमें अप्रैल 2022 में सिविल जज सीनियर डिवीजन रवि कुमार दिवाकर ने आयुक्त नियुक्त कर ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया. जिसके बाद 14 मई को सर्वेक्षण शुरू हुआ और अंतिम दिन बाबा मिल गए कहते हुए सभी वादी महिलाएं ज्ञानवापी मंदिर से बाहर निकलीं. मामले में नया मोड़ आया जब ये कहा गया कि ये केस 1991 वर्शिप एक्ट के तहत आता है या नहीं, क्योंकि मुस्लिम पक्ष ने इसका हवाला दिया और केस के सुनवाई पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी.

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सुप्रीम कोर्ट ने केस को जिला कोर्ट में ट्रांसफर किया था
सुप्रीम कोर्ट ने केस को वाराणसी जिला जज में ट्रांसफर करते हुए 8 हफ्तों में सुनवाई पूरी करने की बात कही थी. उसके बार जिला जज के अदालत में अब तक मामले की सुनवाई होती रही.  लेकिन पिछले 2 बहनों में मुस्लिम पक्ष ने इस केस में औरंगजेब की एंट्री करवाई. कहा कि औरंगजेब ने मंदिर तुड़वाया नहीं बल्कि रेनोवेट करवाया था. इसके साथ ही ज्ञानवापी को वक्फ बोर्ड की संपत्ति बताने के लिए 1883 का दस्तावेज भी कोर्ट में पेश किया. उन्होंने कोर्ट में कहा कि अकबर के समय से ज्ञानवापी का जिक्र है और यहां मंदिर नहीं था. ज्ञानवापी का नाम आलमगीर है, जिसके नाम का दस्तावेज 1983 में ही बन गया था. उस वक्त के बादशाह औरंगजेब थे.

हिंदू पक्ष ने मुस्लिम पक्ष द्वारा जमा किए दस्तावेजों को फर्जी बताया
ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण में सुनवाई जारी है बुधवार दोपहर तक चली बहस में मुस्लिम पक्ष ने एक बार फिर से औरंगजेब की इंट्री करवाई और दावा किया. यह मस्जिद पहले से औरंगजेब ने तुड़वाया नहीं था बल्कि रेनोवेट करवाया था. मुस्लिम पक्ष ने अदालत में 1200 फसली के कागजात भी अदालत में जमा किए, जिसमें ज्ञानवापी को आलमगीर मस्जिद कहा गया है और औरंगजेब का है कि यह मस्जिद पहले से थी. इस दस्तावेज के पेश करने के बाद हिंदू पक्ष में अपना बहस की और मुस्लिम पक्ष द्वारा जमा किए गए दस्तावेजों को पूरी तरह से फर्जी बताया.

हिंदू पक्ष ने कहा कि यह जो कागजात मुस्लिम पक्ष जमा किए हुए हैं, असल में वह बिंदु माधव मंदिर के दस्तावेज हैं, जिसे आलमगीर मस्जिद कहा जाता है. हिंदू पक्ष के वकील मदन मोहन ने बताया कि मुस्लिम पक्ष यह दलील दी कि यह मस्जिद उस वक्त का है जब औरंगजेब बादशाह थे और उस जमीन उनकी थी.

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1883 कागज है, जिसमें सेटलमेंट बना हुआ था और मस्जिद का जिक्र
1883 कागज है, जब यहां सेटलमेंट बना हुआ था. जिसमें मस्जिद का जिक्र है उसकी पूरी कैफियत लिखी हुई है, जिसमें साफ-साफ लिखा हुआ है कि यह मस्जिद कागज के अनुसार पहले से कायम है. यहां पहले से मस्जिद था, जिसका जिक्र अकबर के जमाने से भी मिलता है. औरंगजेब ने मस्जिद को रेनोवेट कराया था, मस्जिद पहले से बनी हुई थी. जब अकबर के समय में भी मस्जिद थी, उसके पहले भी मस्जिद थी. फिर औरंगजेब मंदिर तोड़कर मस्जिद कैसे बनवाएगा. हमने जो कागज देखा, वह 100 नंबर का कागज है. वह ज्ञानवापी का ही कागज है ना कि बिंदु माधव मंदिर का.

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हिंदू पक्ष ने किया काउंटर
मुस्लिम पक्ष के इस दावे को बुधवार दोपहर के बाद हिंदू पक्ष ने काउंटर किया. दस्तावेज को आलमगीर मस्जिद नही बल्कि ज्ञानवापी नाम बताया और जो मुस्लिम पक्ष ने दस्तावेज दिखाएं तो असल में वाराणसी में पंचगंगा घाट स्थित बिंदु माधव मंदिर यानी धरहरा मस्जिद है, जिसे आलमगीर मस्जिद कहा जाता है.

शाम लगभग 4 बजे अदालत की कार्यवाही खत्म हुई और इसी के साथ हिंदू और मुस्लिम पक्ष के दोनों की बहस भी पूरी हो गई. इसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखते हुए 12 सितंबर की तारीख दी. इस दिन फैसला सुनाया जाएगा की ये केस पोषणीयता रखता है कि नहीं. फैसला आने के बाद वादी महिलाओं में खासा उत्साह देखने को मिला. उन्होंने कोर्ट के बाहर ही न्यूज 18 पर हर हर महादेव के जयकारे के साथ खुद भजन गाए. उन्होंने बताया की कैसे श्रृंगार गौरी में दर्शन करने के लिए हम इसकी शुरुआत की और हमें बाबा के दर्शन प्राप्त हो गए.

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Tags: Gyanvapi Masjid, Gyanvapi Masjid Controversy

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