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हाइलाइट्स

ज्ञानवापी विवाद के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई.
यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दाखिल किया सप्लीमेंट्री एफिडेविट, बहस नहीं हो सकी पूरी.
ज्ञानवापी विवाद मामले में अब अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी.

प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट में बुधवार को काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद की सुनवाई हुई. इलाहाबाद हाईकोर्ट में दोपहर दो बजे शुरू हुई सुनवाई लगभग डेढ़ घंटे तक चली. अदालत में यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से बहस की गई. यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता पुनीत गुप्ता ने हाईकोर्ट में सप्लीमेंट्री एफिडेविट दाखिल किया. सप्लीमेंट्री एफिडेविट के जरिए एक नया एविडेंस फाइल किया गया. इसके तहत ज्ञानवापी मस्जिद को वक्फ एक्ट 1936 के अंतर्गत 26 फरवरी 1944 को सरकार की ओर से जारी नोटिफिकेशन पेश किया गया और कहा कि इस नोटिफिकेशन में ज्ञानवापी को वक्फ नंबर 100 वाराणसी में रजिस्टर किया गया है. इस एविडेंस को 5 मई 2022 को यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने लोअर कोर्ट वाराणसी में भी दाखिल किया है.

वहीं हिंदू पक्ष के अधिवक्ता ने अदालत में कहा कि यह नया एविडेंस दाखिल किया गया है. यह पहले रिकॉर्ड में नहीं था. हिंदू पक्ष ने इस नोटिफिकेशन को नकारते हुए कड़ा विरोध दर्ज किया है. कोर्ट से इसको संज्ञान में न लेने की अपील की गई. अदालत में यह कहा गया कि वक्फ 1936, 1960 वक्फ एक्ट 1995 यह मुस्लिम वर्सेस मुस्लिम पर लागू होते हैं. लेकिन अगर कोई विवाद हिंदू वर्सेस मुस्लिम होता है तब उस पर यह एक्ट लागू नहीं होता है. इस दलील के समर्थन में हिंदू पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट के कई फैसलों को भी रखा है. हिंदू पक्ष के अधिवक्ता ने काउंटर एफीडेविट दाखिल करने के लिए कोर्ट से एक हफ्ते का समय मांगा है.

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विवादित स्थल कभी वक्फ नहीं था और न कभी हो सकता है
हिंदू पक्ष की ओर से सीनियर एडवोकेट अजय कुमार सिंह ने पक्ष रखा है. उन्होंने अदालत में दलील दी कि विवादित स्थल कभी वक्फ नहीं था और ना कभी वक्फ हो सकता है. हिंदू पक्ष की ओर से दलील दी गई कि अगर मंदिर के एक हिस्से पर कोई निर्माण कर लिया गया, लेकिन बची हुई जगह मंदिर के कब्जे में है. इसलिए उसका रिलीजियस करैक्टर कभी चेंज नहीं हुआ और ना हो सकता है. अयोध्या राम मंदिर के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की पीठ ने जो फैसला दिया है, यह दलील उसके विपरीत है. फिलहाल इस मामले की बहस कोर्ट में पूरी नहीं हो पाई. मामले की अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी.

इस मामले में मस्जिद की इंतजामिया कमेटी की ओर से बहस पहले ही पूरी हो चुकी है। मस्जिद पक्ष के वकील ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप स्पेशल प्रोविजन एक्ट के तहत मंदिर पक्ष की ओर से वाराणसी जिला कोर्ट में 31 साल पहले वर्ष 1991 में जो वाद दाखिल किया गया है, उसको ऑर्डर 7 रूल 11(डी) के अंतर्गत खारिज किए जाने की मांग की है। मस्जिद पक्ष के अधिवक्ता ने राम मंदिर केस में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ द्वारा दिए गए फैसले का भी उल्लेख किया। इस आधार पर भी वाराणसी जिला कोर्ट में 1991 में दाखिल वाद की पोषणीयता पर सवाल खड़े करते हुए उसे खारिज किए जाने की मांग की।

मंदिर पक्ष की ओर से किया जा चुका है इसका विरोध
हालांकि मंदिर पक्ष की ओर से पहले ही इसका विरोध किया जा चुका है. मंदिर पक्ष के अधिवक्ता व वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की पीठ के फैसले के आधार पर पक्ष प्रस्तुत किया गया है. यह कहा गया है कि मुगल काल में जो गलतियां की गई है, उसे वर्तमान शासन प्रशासन के न्यायालय उन गलतियों का संज्ञान लेकर उसका समाधान कर सकते हैं. इसका अधिकार वर्तमान शासन प्रशासन के न्यायालयों को प्राप्त है. मामले की अगली सुनवाई 17 अगस्त को दोपहर दो बजे जस्टिस प्रकाश पाडिया की सिंगल बेंच में होगी. जबकि हिंदू पक्ष काउंटर एफिडेविट दाखिल पर मस्जिद जामिया कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की दलीलों पर अपना पक्ष रखेगा. समय बचने पर यूपी सरकार भी मामले में अपना पक्ष रखेगी.

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गौरतलब है कि इस मामले में मस्जिद इंतजामिया कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से कुल 5 याचिकाएं दाखिल की गई हैं. जिस पर जस्टिस प्रकाश पाडिया की सिंगल बेंच सुनवाई कर रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट को यह तय करना है कि वाराणसी की जिला अदालत में 31 साल पहले 1991 में दाखिल मुकदमे की सुनवाई हो सकती है या नहीं. इलाहाबाद हाईकोर्ट में एएसआई से खुदाई कराकर सर्वेक्षण कराए जाने समेत अन्य मुद्दों पर भी बहस चल रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएसआई के सर्वे पर लगी रोक 31 अगस्त तक बढ़ा दी है.

Tags: Allahabad high court, Gyanvapi Masjid, Gyanvapi Masjid Controversy

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