पटना7 घंटे पहले
डॉ. विनय कुमार के कविता संग्रह का लोकार्पण।
डॉ.विनय कुमार की जितनी बड़ी पहचान एक बेहतर मनोरोग चिकित्सक के रूप में है उससे बड़ी पहचान एक अच्छे कवि की है। उनकी नई किताब ‘पानी जैसा देस’ का लोकार्पण भारतीय नृत्य कला मंदिर में आयोजित किताब उत्सव में किया गया। इसका लोकार्पण अरुण कमल, आलोक धन्वा, तरुण कुमार और प्रेम कुमार मणि ने किया। वरिष्ठ समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी, वरिष्ठ लेखक श्रीकांत, यादवेन्द्र, विनोद अनुपम, कुमार मुकुल,अनीश अंकुर, राजेश कमल, धमेन्द्र सुशांत आदि की उपस्थिति खास रही।

यह कविता संग्रह हमें मिट्टी, हवा, पानी की चिंता से जोड़ता है- मणि
इस अवसर पर प्रेम कुमार मणि ने कहा कि बीसवीं सदी के अंतिम दो दशकों में न केवल हिंदी कविता, बल्कि दुनिया की दूसरी जुबानों में भी काव्य प्रवृतियों ने एक नया मोड़ लिया। शीतयुद्ध के दौरान कविता में राजनीतिक प्रश्न प्रधान हो गए थे और उनके अनुरुप ही भाषा, तेवर और उसके अंतर-राग विकसित हुए थे। रोटी और आजादी के सवाल प्रमुख थे। इन सवालों के किंचित हल होते ही मनुष्य फिर अपनी दुनिया में लौटा। 1980 के बाद मनुष्य का असली जीवन एक बार फिर से कविता में लौटा।
रोटी और क्रांति की जगह फूल, बच्चे और नदियां कविता के विषय बनने लगे। जब नई सदी आई तब फिर एक मोड़ आया। अंधाधुंध विकास ने प्राकृतिक संसाधनों और प्रकृति को इतना दयनीय बना दिया कि मनुष्य को लगा इस विकृत दुनिया के साथ वह जी नहीं सकेगा। कविता अब मिट्टी, हवा, पानी की चिंता में शामिल हुई। विनय कुमार का नया संकलन ‘पानी जैसा देस’ हमें इसी चिंता से जोड़ता है। अन्य कई वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे।

यही पानी हमारी आत्मा में है- डॉ. विनय कुमार
इस अवसर पर डॉ. विनय कुमार ने कई कविताओं का पाठ किया। विनय कुमार ने कहा कि पानी है तो जीवन में सौंदर्य है, पानी है तो हम हैं, पानी के होने से ही पृथ्वी है। यही पानी हमारी आत्मा में है। विनय कुमार कई कविताओं का पाठ किया। उन्होंने गंगा से जुड़ी दो कविताओं का पाठ भी किया- ‘गंगा को साइकिल चलाना नहीं आता नहीं तो और उत्तर चली जाती….।’
कविता में उन्होंने पढ़ा- बाबा तुमने जो गंगा दी थी वह नख से शीर्ष तक नदी थी..हजारों सालों तक निश्चिंत बहती रही मैं….उसकी सेज जगह- जगह से नंगी हो गई है बाबा….। डॉ. विनय कुमार की कविताओं में नदियों, ताल, तलैये, आहर- पोखर को लेकर चिंता दिखी।
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