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कोट्टायम (केरल) : साप्ताहिक दिनों में अक्सर सुनसान रहने वाली शहर के बीचों-बीच स्थित एक इमारत शनिवार को बच्चों की किलकारियों से गूंज रही थी. उस दिन न केवल यह इमारत बल्कि इसके आस-पास का पूरा परिसर इन किलकारियों की गूंज से चहक उठा था. खुशी से चहकती ये आवाज़ें हमें अपनी ओर खींच ले गईं और इस इमारत के अंदर दाखिल होने पर हमें मालूम हुआ कि यह कोई प्ले स्कूल या प्ले ग्राउंड नहीं है, बल्कि यह तो एक बाल पुस्तकालय है.
आमतौर पर पुस्तकालयों को उसके शांत परिवेश के लिए जानने वाला कोई भी व्यक्ति अगर उस वक़्त वहां मौजूद होता तो वह भी हमारी तरह ही आश्चर्यचकित होता. केरल में पुस्तकालय संस्कृति की काफ़ी पुरानी है और उसकी गहरी जड़े हैं. यहां के कई शहरों को ‘पुस्तकालयों के शहर’ की उपाधि भी हासिल है. आज के इस डिजिटल युग में भी यहां के लोगों द्वारा किताबें पढ़ने और अपनी संस्कृति को बचाने का यह प्रयास वाकई में उल्लेखनीय है. कोट्टायम ज़िले की यह ‘चिल्ड्रन लाइब्रेरी’ भी इसी दिशा में उठाया गया एक सराहनीय कदम है.

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इस लाइब्रेरी की दीवारें रंग-बिरंगी हैं.

आज भी बिल्कुल नव-निर्मित दिखने वाले इस बाल पुस्तकालय की स्थापना 1969 में हुई थी. इस बाल पुस्तकालय की अनेक खूबियां हैं जो इसे अन्य पुस्तकालयों से काफ़ी अलग बनाती हैं. इस पुस्तकालय के भीतर दाखिल होते ही सबसे पहले हमारा ध्यान आकर्षित किया इसकी दीवारों ने. हर तरफ़ रंग-बिरंगी आकृतियां लगी हुई थीं. ऑफिस असिस्टेंट से पूछने पर पता चला कि यह सारी आकृतियां यहां आने वाले बच्चों द्वारा बनाई गई हैं. हमसे बातचीत के दौरान ऑफिस असिस्टेंट हरीकुमार डी ने इस पुस्तकालय के बारे में और भी कई सारी दिलचस्प बातें साझा कीं.

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25 हज़ार पुस्तकों का संग्रह 

मौजूदा पुस्तक संग्रह के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए वह बताते हैं कि इस पुस्तकालय के पास 25000 से भी अधिक पुस्तकों का संग्रह है. इसमें से करीबन 14000 बाल पुस्तकें हैं. इन पुस्तकों को वर्षों से इकट्ठा किया जा रहा है. वह कहते हैं कि कई सारी पुस्तकें लोग दान कर देते हैं और बाकी पुस्तकों को खरीदा जाता है. हर महीने कोई ना कोई नई पुस्तक खरीदी जाती है.

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यहां 25 हजार किताबों का संग्रह है. जिनमें बच्चों की 14 हजार किताबें शामिल हैं.

जवाहर बाल भवन से मिलता है फंड 

कोट्टायम बाल पुस्तकालय के संरक्षण और पुस्तक संग्रह हेतु सारा फंड जवाहर बाल भवन और कोट्टायम मुख्य लाइब्रेरी द्वारा प्रदान किया जाता है. इसके अलावा इस पुस्तकालय के पास दो ऑडिटोरियम हैं जिससे थोड़ी बहुत आमदनी इकट्ठी हो जाती है. इस ऑडिटोरियम के माध्यम से एकत्रित सारी धनराशि का प्रयोग पुस्तक खरीदने के लिए किया जाता है. देश का प्रथम बाल पुस्तकालय होने के कारण यह ना सिर्फ राज्य की बल्कि देश की भी सांस्कृतिक धरोहर है. इसलिए इसके संरक्षण का ज़िम्मा राज्य के ‘कल्चरल अफेयर’ विभाग पर है.

आपको बता दें कि जवाहर बाल भवन एक संस्था है जो भूतपूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नाम पर गठित है. इसका मुख्य लक्ष्य है बाल विकास. बाल भवन की गतिविधियों में बच्चों को शारीरिक शिक्षा, कला और शिल्प, सिलाई, और मिट्टी के काम सिखाने जैसी चीजें भी शामिल हैं.

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इसके संरक्षण का ज़िम्मा राज्य के ‘कल्चरल अफेयर’ विभाग का है.

बाकी पुस्तकालयों से काफ़ी अलग 

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‘कोट्टायम चिल्ड्रन लाइब्रेरी’ इस संस्था द्वारा संचालित है. इस कारण ही यह पुस्तकालय बाकी पुस्तकालयों से काफ़ी अलग है. यह पुस्तकालय बच्चों के लिए पाठ्येतर गतिविधियां का केंद्र है. यहां कराटे से लेकर वीणा और नृत्य सब सिखाया जाता है. इस केंद्र की फीस अधिक ना होने के कारण बच्चों के लिए बाकी प्राइवेट क्लासेस के मुकाबले यहां प्रवेश लेना आसान है. यहां करीबन ढाई सौ बच्चे अलग- अलग कोर्स में नामांकित हैं. इस केंद्र में वाद्य यंत्र के कोर्स में नामांकन की फीस 100 रुपये प्रति माह है वहीं स्पेशल कोर्स जैसे नृत्य, कराटे आदि में नामांकन फीस 300 रुपये प्रति माह है.

यह सारी पाठ्येतर गतिविधियां केवल शनिवार और रविवार को सुबह 10 बजे से शाम के 4 बजे तक सिखाई जाती हैं. हालांकि पुस्तकालय हर दिन खुला रहता है. पर बच्चों के स्कूल होने के कारण बाकी दिन पुस्तकालय एकदम सुनसान रहता है. हरीकुमार कहते हैं कि बच्चों की गर्मियों की छुट्टी के दौरान यह सारी गतिविधियां हफ्ते के सातों दिन जारी रहती हैं.

कोरोना के दौरान होती थी ऑनलाइन क्लासेस 

कोरोना के दौरान स्कूलों, कॉलेज और बाकी हर जगह की तरह ही इस पुस्तकालय में भी पूरी तरह तालाबंदी थी. पर उस मुश्किल वक़्त में भी पुस्तकालय प्रबंधन ने बच्चों की क्लासेस रुकने नहीं दी. इस पुस्तकालय की बहुसदस्यीय प्रबंधन टीम जिसके चेयरमैन कोट्टायम ज़िले के ज़िला कलेक्टर हैं, ने कोरोना के दौरान स्कूल की तरह ही शनिवार और रविवार को बच्चों को ऑनलाइन सिखाने का निर्णय लिया.

कोरोना के दौरान बढ़े बच्चे 

प्रबंधन का ऑनलाइन क्लासेस का निर्णय ना केवल बच्चों के लिए लाभदायक था बल्कि पुस्तकालय के लिए भी उतना ही लाभदायक साबित हुआ. कोरोना के दौरान कार्य के अभाव के चलते बच्चे परेशान थे और ऑनलाइन होने के कारण यह क्लासेस आसानी से घर बैठे उपलब्ध थीं जिसके चलते कई सारे नए बच्चों ने प्रवेश लिया.

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एक कोने में बैठी सुमि संतोष को देखकर जब हमने उनसे बात की तो मालूम हुआ कि उनका पांच वर्षीय बेटा ध्यान संतोष दो महीने से यहां संगीत और गिटार सीखता है. वह बताती हैं कि वह दूर से आती हैं इसलिए यहीं बैठ कर बेटे की क्लाससेस खत्म होने का इंतज़ार करती है. वह कहती हैं कि इस केंद्र की काफ़ी कम फीस होने के कारण ही वह इतने दूर से अपने बेटे को लाती हैं.

जहां ध्यान केवल दो महीने से गिटार सीख रहा है वहीं दूसरी ओर अपने दोस्तों के साथ खेलता हुआ ज़िशान दो सालों से यहां कराटे सीख रहा है. वह कहता कि कोरोना के दौरान घर पर ऑनलाइन क्लासेस में उसे बिल्कुल मज़ा नहीं आता था. यहां आकर दोस्तों के साथ धमाचौकड़ी मचाने की खुशी उसके चेहरे से ही बयां हो रही थी.

डिजिटल प्रतिद्वंद्वी के लिए करना है खुद को तैयार 

हरीकुमार के मुताबिक पुस्तकालय प्रबंधन डिजिटल युग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की पूरी तैयारी कर रहा है. जल्दी पुस्तकालय को डिजिटल बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.

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