
देहरादून. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पवेलियन ग्राउंड में राज्य की पहाड़ की संस्कृति के रंग बिखरते नजर आए. यहां ठोउड़ा नृत्य एवं सांस्कृतिक महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. जौनसार बावर पौराणिक सांस्कृतिक लोककला मंच एवं सामाजिक संस्था द्वारा यह आयोजन पहाड़ी संस्कृति से दूनवासियों को जोड़ने के लिए किया जा रहा है. जहां एक तरफ ठोउड़ा नृत्य कार्यक्रम के दौरान लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना, तो वहीं उत्तराखंड के पहाड़ी सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने भी अलग-अलग रंग बिखेरे. कलाकर हुड़का जैसे उत्तराखंड के वाद्ययंत्रों के साथ थिरकते नजर आए.
जौनसार बावर पौराणिक सांस्कृतिक लोककला मंच एवं सामाजिक संस्था के महासचिव सतपाल चौहान ने बताया कि पहली बार देहरादून में ठोउड़ा नृत्य एवं सांस्कृतिक महोत्सव हो रहा है. उन्होंने बताया कि कई महीनों से इसकी तैयारियां की जा रही थी. सतपाल चौहान बताते हैं कि जौनसार संस्कृति में ठोउड़ा नृत्य का बहुत महत्व है. आज भी इतिहास को याद करने के लिए गाथा के रूप में यह आयोजित किया जाता है.
क्या है उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र का ठोउड़ा नृत्य?
उत्तराखंड के लोकनृत्य ठोउड़ा नृत्य में प्रतिभाग करने वाले कलाकार धर्म सिंह चौहान बताते हैं कि उत्तराखंड की जौनसार बावर जनजाति का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है. उन्होंने बताया कि जौनसार जनजाति के लोग अपने को पांडवों का वंशज मानते हैं. उन्हें पाशि कहा जाता है. बावर के लोग अपने आप को कौरवों का वंशज मानते हैं, जिन्हें षाठी कहा जाता है.
चौहान ने आगे बताया कि ठोउड़ा नृत्य महाभारत के बारे में बताता है. ठोउड़ा नृत्य में ‘षाठी-पाशि खेलेतु’ गीत गायन किया जाता है. इसका मतलब है जब कौरव और पांडव युद्ध के मैदान में जाते थे, तो उससे पहले वह एक-दूसरे को ललकारते थे. वहीं, सारी कहानी ठोउड़ा नृत्य के माध्यम से लोगों को बताई जाती है. उत्तराखंड के ठोउड़ा नृत्य की खास बात यही है कि इसमें तीर-धनुष आदि से नृत्य किया जाता है. इस नृत्य में कोई महिला नहीं होती है बल्कि पुरुष ही गीत गायन के साथ-साथ नृत्य करते हैं.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
FIRST PUBLISHED : November 21, 2022, 18:03 IST
Article Credite: Original Source(, All rights reserve)