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हाइलाइट्स

बिहार के नालंदा के रहने वाले हैं पद्मश्री पुरस्कार पाने वाले बुनकर कपिलदेव प्रसाद.
15 साल की उम्र से कर रहे बुनकरी का काम, 6 दशकों का लंबा बुनकरी का अनुभव.
74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर भारत सरकार ने की पदम् पुरस्कारों की घोषणा.

पटना/नालंदा. भारत सरकार द्वारा 74वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पदम् पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई. इस साल 26 हस्तियों को यह पुरस्कार दिया जा रहा है. इनमें एक को पद्म विभूषण और 25 व्यक्तित्व को पद्मश्री दिए जाने का फैसला लिया गया है. ओआरएस यानी ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन के जनक दिलीप महालनोबिस को मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है. इसके अतिरिक्त जिन 25 लोगों को पद्मश्री दिए जाएंगे उनमें बिहार के नालंदा जिले के कपिलदेव प्रसाद भी शामिल हैं. बुनकर के रूप में काम कर रहे कपिल देव प्रसाद को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है.

कपिल देव प्रसाद 15 साल की आयु से ही बुनकरी से जुड़े रहे हैं और आज करीब 55 सालों से यह काम करते आ रहे हैं. कपिलदेव प्रसाद अभी भी खुद बुनकारी का काम करते हैं और साथ ही लोगों को बुनकारी की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं. 2017 में आयोजित हैंडलूम प्रतियोगिता में खूबसूरत कलाकृति बनाने के लिए देश के 31 बुनकरों को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है. इनमें नालंदा के कपिलदेव प्रसाद बिहार को गौरव दिलाने वाले कपिलदेव प्रसाद एकमात्र बुनकर हैं.

कपिलदेव प्रसाद के पद्मश्री के चयन ने बसावन बिगहा की बुनकरी को एक दशक के बाद फिर से राष्ट्रीय फलक पर चर्चा में ला दिया है. उन्हें केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय यह सम्मान देगा. बिहारशरीफ के बुनकरों के पर्दे और बेडशीट कभी राष्ट्रपति भवन की शोभा बढ़ाते थे. प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के कार्यकाल के बाद आर्डर मिलने बंद हो जाने से यह परंपरा रुक गई. साल 2000 तक बिहार राज्य निर्यात निगम की तरफ से नालंदा के परदे और बेडशीट जर्मनी, आस्ट्रेलिया के अलावा अमेरिका भेजा जाता था. इसके बाद निगम पर संकट आया तो निर्यात बंद हो गया. यहां की बनी 52 बूटी की साड़ी की मार्केटिंग हैंडलूम कॉरपोरेशन किया करता था. उसकी मांग भी अच्छी खासी थी. लेकिन, अब यह बंद हो गया है.

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कपिलदेव प्रसाद की मानें तो आज के बाजार के लिहाज से बुनकरों द्वारा बनाई गई सारी चादर और पर्दे की ब्रांडिंग और मार्केटिंग नहीं होने से ही स्थिति खराब है. उनका कहना है कि करीब 6 दशक से बुनकरी में लगा हूं. दादा शनिचर तांती द्वारा इसकी शुरुआत की गई थी. फिर पिता हरि ताती ने सिलसिले को आगे बढ़ाया.कपिलदेव ने बताया कि जब 15 साल का था तब बुनकरी को जीविकोपार्जन का साधन बनाया. बुजुर्ग हो गया हूं तो बेटा सुरुज देव की मदद मिलती है.

70 के दशक को याद करते हुए कपिल देव प्रसाद ने बताया कि उस समय बिहार शरीफ स्थित नवरत्न महल में सरकारी बुनकर स्कूल चलता था. यह स्कूल हाफ टाइम तक चलता था. यहां नियमित पढ़ाई जारी रखते हुए बच्चे बुनकारी का गुरसिख जाते थे. 1963 से 65 तक यही बुनकारी कपिल देव प्रसाद ने सीखी. उनकी मानें तो उनके प्रेरणास्रोत रामनंदन सर थे. धीरे-धीरे शिक्षक रिटायर होते गए और सरकार द्वारा नई बहाली को लेकर उदासीन रवैया भारी पड़ा. इसी कारण 1990 में स्कूल बंद हो गया.

कपिल देव प्रसाद का कहना है कि बसवन बिगहा प्राथमिक बुनकर सहयोग समिति का गठन किया गया है. जिसमें 124 बुनकर हैं. लेकिन, नियमित काम नहीं मिलने के कारण 25 से 30 बुनकर परिवार ही रोजगार के तौर पर बुनकारी को अपना रखे हैं. उनका कहना है कि बुनकारी के कारोबार को नियमित बाजार मिलने की जरूरत है और अगर ऐसा होता है तो फिर बुनकरी एक मुनाफे का कारोबार बन जाएगा.

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Tags: Bihar News, Nalanda news, Padma awards, Padma Shri Award

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