
रिपोर्ट– उधव कृष्ण
पटना. अब पीएचडी थीसिस सबमिट करने से पहले जर्नल्स में प्रकाशित होने की अनिवार्य शर्त यूजीसी के द्वारा ख़त्म करने का फैसला ले लिया गया है. आपको बता दें कि अब तक, एमफिल (मास्टर ऑफ फिलॉसफी) के छात्रों के लिए एक कांफ्रेंस अथवा सेमिनार में कम से कम एक शोध पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य था. वहीं पीएचडी स्कॉलर्स को अपनी अंतिम थीसिस सबमिट करने से पहले एक प्रतिष्ठित आईएसएसएन जर्नल में कम से कम एक शोध पत्र प्रकाशित करवाना और सेमिनार अथवा कांफ्रेंस में अपने दो पेपरों को प्रस्तुत करना अनिवार्य था. जिसे यूजीसी द्वारा नए नियम के तहत समाप्त कर दिया गया है.
असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में पीएचडी की अनिवार्यता को समाप्त करने पर भी यूजीसी द्वारा एक समिति का गठन किया जा रहा है. जिसपर देशभर से विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. न्यूज 18 लोकल द्वारा इस विषय पर कॉलेज ऑफ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस के पीजी हेड ऑफ डिपार्टमेंट प्रो.कुमार चंद्रदीप से बातचीत की गई.
दबाव कम करने वाला फैसला
आपको बता दें कि डॉक्टरेट कार्यक्रमों के लिए बने नए नियमों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पीएचडी (डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी) थीसिस को अंतिम रूप से जमा करने से पहले पीयर-रिव्यू जर्नल में शोध पत्र प्रकाशित करने की अनिवार्य आवश्यकता को खत्म कर दिया है. इसपर प्रो. कुमार चंद्रदीप यूजीसी के चेयरमैन प्रो.एम. जगदीश कुमार के बयान को दुहराते हुए कहते है कि ये फैसला कहीं ना कहीं शोध की क्वालिटी को बढ़ाने व शोधार्थियों के ऊपर दबाव कम करने को लिया गया है, क्योंकि कंप्यूटर साइंस जैसे कई ऐसे विषय हैं. जिसमें शोध पत्र में आलेख लिखने के बदले छात्र प्रेजेंटेशन पर अधिक जोर देते हैं, जो विषय के अनुरूप ठीक भी है.
रिसर्च पेपर पब्लिकेशन से है फ़ायदा
प्रो.कुमार चद्रदीप बताते हैं कि रिसर्च पेपर पब्लिकेशन के कई फ़ायदे भी हैं. मसलन बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग अर्थात BSUSC द्वारा प्रत्येक रिसर्च पेपर पर 2 मार्क्स दिए जाते हैं. अगर आईएसएसएन (अन्तर्राष्ट्रीय मानक क्रम संख्या) रजिस्टर्ड जर्नल में अगर 5 रिसर्च पेपर प्रकाशित हों तो 2 मार्क्स के हिसाब से अभ्यर्थी को 2×5 यानि कुल 10 मार्क्स मिल सकते हैं. साथ ही कांफ्रेंस और सेमिनार इत्यादि में शोध पत्र प्रस्तुतिकरण सर्टिफिकेट सीवी में चार चांद लगा सकते हैं. प्रो. कुमार चंद्रदीप के अनुसार ये नियम विशेषकर उन विषयों के लिए बनाए गए हैं. जिनमें शोध पत्र लिखने की गुंजाइश बहुत कम होती है. वहीं मानविकी विषय में शोध पत्र लिखना, प्रकाशित करना और प्रस्तुत करना आसान व फ़ायदेमंद है.
पीएचडी की रहनी चाहिए अनिवार्यता
प्रो. कुमार चंद्रदीप कहते हैं कि पीएचडी की अनिवार्यता समाप्त करने संबंधी कमेटी का गठन यूजीसी द्वारा किया जा रहा है. ये भी कहीं ना कहीं उन विषयों को ध्यान में रख कर किया जा रहा है. जिन विषयों में पीएचडी शिक्षकों का मिलना मुश्किल है. हालांकि वे कहते हैं कि स्थाई असिटेंट प्रोफेसर के लिए पीएचडी की अनिवार्यता बरकरार रहने से छात्रों को विषय के विशेषज्ञ, सुयोग्य व परिपक्व शिक्षक मिलेंगे. ऐसे शिक्षकों में उनके शोध कार्य किए गए विषयों को लेकर एक ख़ास रुचि व बेहतर समझ होगी. जिसका लाभ छात्र व छात्राओं को मिलेगा.
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FIRST PUBLISHED : December 29, 2022, 12:40 IST
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