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हाइलाइट्स

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- पैसे लेकर सही गाड़ी नहीं देना अनुचित व्यापार गतिविधि
नई कार की डिलिवरी नहीं करना डीलर की बेईमानी
शिकायकर्ता को एक लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बृहस्पतिवार को कहा कि पूरी राशि के भुगतान के बाद भी नई कार की डिलिवरी नहीं करना या खराब वाहन देना अनुचित व्यापार गतिविधि है. शीर्ष अदालत ने कहा कि पूरी राशि देने के बाद भी नई कार की डिलिवरी नहीं करना डीलर की बेईमानी को बताता है और यह नैतिकता के खिलाफ भी है. न्यायालय ने कार खरीद से जुड़े मामले में यह टिप्पणी की. शिकायकर्ता ने आरोप लगाया था कि कुल राशि जमा करने के एक साल बाद उसे वाहन की डिलिवरी की गयी. शिकायकर्ता ने दावा किया कि उसे जो कार दी गयी, वह पुरानी थी और डीलर ने उसका उपयोग ‘डेमो टेस्ट ड्राइव’ के रूप में किया था.

न्यायाधीश एम आर शाह और न्यायाधीश कृष्ण मुरारी की पीठ ने इस मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (एनसीडीआरसी) के जनवरी, 2016 में दिये गये फैसले को रद्द कर दिया. एनसीडीआरसी ने जिला मंच के उस निष्कर्ष को खारिज कर दिया था कि मामले में दी गई कार एक इस्तेमाल की गई गाड़ी थी. जबकि मंच के आदेश की पुष्टि राज्य आयोग ने की थी. आयोग ने मामले में जिला मंच के आदेश को संशोधित करते हुए निर्देश दिया था कि शिकायकर्ता को एक लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए. जिला मंच ने डीलर को कार वापस लेने और पूर्व में जमा की गई राशि के एवज में शिकायतकर्ता को नया वाहन देने का निर्देश दिया था.

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पैसे लेकर सही गाड़ी नहीं देना अनुचित व्यापार गतिविधि

साथ ही शिकायकर्ता की मानसिक पीड़ा के लिए 5,000 रुपये और कानूनी खर्च के रूप में 2,500 रुपये देने को कहा था. शिकायकर्ता ने एनसीडीआरसी के निर्णय को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी. न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि शिकायकर्ता ने नई कार ‘बुक’ की थी और पूरी राशि का भुगतान किया था. ऐसे में डीलर की जिम्मेदारी थी कि वह उसे नई कार देता. पीठ ने कहा, ‘राष्ट्रीय आयोग ने भी पाया कि जो कार दी गयी, उसमें गड़बड़ी थी. नई कार की जगह खराब कार देना भी बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है… पैसे लेकर सही गाड़ी नहीं देना अनुचित व्यापार गतिविधि है.’ न्यायालय ने कहा कि जिला मंच और राज्य आयोग का डीलर को नई कार देने का निर्देश बिल्कुल उचित था. पीठ ने एनसीडीआरसी के फैसले को निरस्त करते हुए जिला मंच के अप्रैल, 2011 के आदेश को बहाल कर दिया. इस आदेश की राज्य आयोग ने भी पुष्टि की थी.

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