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पटना3 घंटे पहलेलेखक: मनीष मिश्रा

बिहार में ‘तम्बाकू मुक्त शिक्षक-तम्बाकू मुक्त समाज’ के मकसद से 10 साल से बड़ा अभियान चलाया जा रहा है।

बिहार के सरकारी स्कूलों में गुरुजी खैनी ठोक रहें हैं। टीचर के साथ मैट्रिक और इंटर में पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स को भी खैनी की लत लग रही है। यह खुलासा हावर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मुंबई की हिलिस सेखसरिया इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक हेल्थ और स्कूल ऑफ प्रिवेंटिव ओंकोलॉजी पटना की तरफ से चलाए गए एक सर्वे में हुआ है। इतना ही नहीं प्रयास के बाद भी 20 प्रतिशत टीचर ऐसे हैं, जो तंबाकू की लत नहीं छोड़ पा रहे हैं। अब गुरुजी की लत छुड़ाने के लिए एक मॉडल तैयार किया गया है। बिहार में मुंह का कैंसर सबसे अधिक है, इसके बाद भी समाज को जगाने वाले टीचरों से ही खैनी की लत नहीं छूट पा रही है। हावर्ड यूनिवर्सिटी ने एक मॉडल तैयार किया है जिसके आधार पर बिहार में गुरुजी की खैनी की लत छुड़ाई जाएगी।

‘तम्बाकू मुक्त शिक्षक-तम्बाकू मुक्त समाज’ अभियान

बिहार में ‘तम्बाकू मुक्त शिक्षक-तम्बाकू मुक्त समाज’ के मकसद से 10 साल से बड़ा अभियान चलाया जा रहा है। हावर्ड यूनिवर्सिटी, यूएसए, हिलिस सेखसरिया इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक हेल्थ, मुंबई और स्कूल ऑफ प्रिवेंटिव ओंकोलॉजी पटना की ओर से चलाए जा रहे इस अभियान में की रिपोर्ट गुरुवार को प्रस्तुत की गई। सर्वे करने वाली संस्था का दावा है कि उसके तैयार किए गए मॉडल पर काम किया जाए तो बिहार ‘तम्बाकू मुक्त शिक्षक-तम्बाकू मुक्त समाज’ का उदाहरण बन सकता है। संस्थाओं के मुताबिक बिहार में अभी बहुत काम करने की जरुरत है, क्योंकि जहां प्रयास नहीं किया जा रहा है वहां सरकारी स्कूलों में टीचर खैनी फांक रहे हैं। बिहार में यह स्थिति सभी जिलों में है, सर्वे शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में किया गया है। शहर से लेकर गांव के सरकारी स्कूलों से एक जैसी ही रिपोर्ट सामने आई है। शिक्षक समाज का आइना होता है, जब शिक्षक ही नशा करेगा तो समाज नशामुक्त कैसे होगा।

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टीचरों को तंबाकू छुड़ाने का प्रयास

मुंबई के हिलिस सेखसरिया इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक हेल्थ के डॉ. धीरेंद्र नारायण सिन्हा ने बताया कि यह सिर्फ रिसर्च नहीं था, बल्कि बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के सहयोग से रिसर्च कर तंबाकू छुड़वाने का प्रयोग किया गया है। हालांकि उन्होंने बताया कि जो मॉडल लाया गया है, वह सफल रहा है। अब एक मार्गदर्शिका तैयार की गई, जिसे पुनः स्कूलों में इंप्लीमेंट कराया जा रहा है। तंबाकू निषेध की नीति का शत प्रतिशत पालन नहीं हो रहा है, इसके लिए स्कूलों में मार्गदर्शिका काफी काम आएगी।

संस्थाओं के मुताबिक बिहार में अभी बहुत काम करने की जरूरत है।

संस्थाओं के मुताबिक बिहार में अभी बहुत काम करने की जरूरत है।

बिहार के 10 जिलों में किया सर्वे

मुंबई के हिलिस सेखसरिया इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक हेल्थ के निदेशक डॉ. प्रकाश सी गुप्ता और डॉ. मंगेश पेडनेकर का कहना है कि वर्ष 2008 -2014 तक बिहार के दस जिलों गया, मुजफ्फरपुर, नालंदा, पटना, भागलपुर, पूर्वी और पश्चिम चंपारण हाजीपुर, सारण और समस्तीपुर के 72 स्कूलों के 600 शिक्षकों को दो भागों में बांटा गया। छह माह तक एक भाग को तंबाकू छोड़ने से संबंधित कई तरह के क्रियाकलापों में शामिल किया गया। इसके बाद एक सर्वे कराया गया जिसमें देखा गया कि 50 प्रतिशत शिक्षकों ने तंबाकू छोड़ दिया। जबकि जिन स्कूलों को क्रियाकलापों में शामिल नहीं किया गया था उसमें सिर्फ 15 प्रतिशत शिक्षकों ने तंबाकू छोड़ा था। इसके बाद बाद फिर छह माह बाद इन 600शिक्षकों के बीच सर्वे किया गया।

अब बिहार में बड़े अभियान की जरुरत

सर्वे में देखा गया कि कार्यक्रम में भाग लेने वाले शिक्षकों में 20 प्रतिशत शिक्षक तंबाकू का सेवन नहीं कर रहे हैं। वहीं अप्रशिक्षित शिक्षकों में अब पांच प्रतिशत शिक्षक तंबाकू का सेवन नहीं कर रहे थे। संस्था का दावा है कि बिहार में सरकारी स्कूलों में तंबाकू छुड़ाने के लिए बड़े पैमाने पर काम करने की जरुरत है। टोबैको छुड़ाने के लिए यह हावर्ड यूनिवर्सिटी, हिलिस सेखसरिया इंस्टीट्यूट फॉर पब्लिक हेल्थ, मुंबई और स्कूल ऑफ प्रिवेंटिव ओंकोलॉजी पटना द्वारा तैयार कार्यक्रम तंबाकू निषेध नीति को लागू कराने में कारगर है। बस जो मॉडल हावर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार किया गया है उसका बिहार के सभी सरकारी स्कूलों में अच्छे क्रियान्यवन कराना होगा।

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बिहार में बड़े स्तर पर काम की जरुरत

हावर्ड यूनिवर्सिटी ने माना है कि बिहार में बड़े पैमाने पर काम करने की जरुरत है। जब समाज का आइना ही धुंधला है तो फिर समाज में संसकार कहां से आएगा। ऐसे में पहले शिक्षकों को तंबाकू मुक्त कराना होगा जिससे समाज से नशा का नाश कराया जा सके। हावर्ड यूनिवर्सिटी का कहना है कि जब सर्वे और सीमित स्थानों पर प्रयास से 20 प्रतिशत शिक्षक तंबाकू छोड़ सकते हैं, तो इस अभियान का दायरा बढ़ाया जाए तो बड़े पैमाने पर काम हो सकता है। हालांकि संस्था का यह भी दावा है कि तंबाकू मुक्त टीचर और समाज को लेकर वर्ष 2017-22 में तीन जिलों समस्तीपुर, नालंदा और मुजफ्फरपुर के तीन प्रखंड के 50 क्लस्टर कोऑर्डिनेटर को ट्रेंड किया गया है। इन लोगों ने 250 प्रधानाध्यापक को ट्रेंड किया है, फिर देखा गया कि ये हेडमास्टर अपने स्कूलों में तंबाकू छोड़ने की नीति को लागू कराने का प्रयास किए हैं। हावर्ड टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर ग्लोरियन सोरेसेन और हावर्ड के रिसर्चर डॉ. इव नेग्लर और स्कूल ऑफ प्रिवेंटिव ओंकोलॉजी पटना के निदेशक डॉ. धीरेंद्र सिन्हा ने बताया कि तंबाकू छुड़ाने को लेकर किए गए प्रयास में काफी सफलता मिली है, इस मिशन की सफलता को देखते हुए इसे आगे भी जारी रखने के लिए ही मॉडल बनाया गया है जिसके तहत एक स्वयं सहायता मार्गदर्शिका तैयार की गई है। इस मार्गदर्शिका को बिहार सरकार को सौंपा गया है, अब सरकार इसके लिए अभियान चलाएगी।

बिहार में चौंकाने वाला आंकड़ा

एलायंस फॉर टोबैको फ्री बिहार (एएफटीबी) की रिपोर्ट चौंकाने वाली है। विश्व तंबाकू दिवस पर 2021 में जारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार में हर साल सिगरेट से 35.92 टन, बीड़ी से 316.64 टन, धुंआ रहित तंबाकू से 5492.07 टन सहित कुल 5844.63 टन प्लास्टिक कचरा निकल रहा है। देश के 17 राज्यों में किए गए अध्ययन में और कई खुलासे हुए हैं। सीड्स के निदेशक दीपक मिश्रा के मुताबिक हाल ही में एम्स जोधपुर ने दी यूनियन की तकनीकी सहयोग से देश के 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अध्ययन किया था जिसमें 70 सिगरेट के ब्रांड, 94 बीड़ी के ब्रांड और 58 चबाने वाले तंबाकू के ब्रांड चल रहे हैं। सर्वे में पाया गया है कि बिहार में तंबाकू उत्पादकों की पैकेजिंग में प्लास्टिक मौजूद होने से दोहरा खतरा है। दोनों तरफ से यह कैंसर को दावत दे रहा है। बिहार में तंबाकू का सेवन करने वालों की संख्या 25.9 प्रतिशत है, इसके अलावा धुंआ रहित तंबाकू यानि पान मसालाख् जर्दा खैनी का प्रयाेग करने वाले 23.5 प्रतिशत है। बीड़ी पीने वालों 4.2 प्रतिशत जबकि सिगरेट पीने वालों की संख्या 0.9 प्रतिशत है। सीड्स के 2021 के आंकड़ाें के मुताबिक बिहार में तंबाकू की खपत का प्रसार 25.9 प्रतिशत है जबकि राष्ट्रीय औसत 28.6 है।

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तंबाकू दे रहा मुंह का कैंसर

महावीर केंसर संस्थान के एक्सपर्ट की माने तो तंबाकू 15 तरह के कैंसर का कारण बन रहा है। मुंह के कैंसर के 90 प्रतिशत मामलों में बिहार में खैनी का ही कनेक्शन सामने आता है। बताया जाता है कि तंबाकू का सेवन बिहार में काफी कम उम्र से शुरु हो जाता है। कम उम्र में इसका सेवन करने वालों में 30 साल की उम्र में कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। मुंह के कैंसर के अलावा खाने की नली और फेफड़ों में भी कैंसर के मामले बिहार में तेजी से बढ़ रहे हैं। तंबाकू के कारण दिल के कैंसर का भी मामला बढ़ा है। कैंसर के रोगियों में अधिकतर में तंबाकू या अन्य नशे की लत पाई जा रही है।

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