हरियाणा की राजनीति में बीजेपी के अनिल विज का ‘पंजाबी चेहरा’ हर बार खरा उतरा है. हरियाणा की खट्टर सरकार में स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज अपनी बेदाग़ और साफ छवि के लिए जाने जाते हैं. हालांकि कभी-कभी उनके बयानों की वजह से विवाद भी खड़ा हो जाता है. लेकिन विरोधी खेमें में भी अनिल विज अपनी शालीनता की वजह से गहरा सम्मान रखते हैं.
संघ के प्रचारक से बैंक के अधिकारी की नौकरी का सफर
अनिल विज का जन्म 15 मार्च 1953 को हुआ था. कम उम्र में ही पिता का साया सिर के ऊपर उठ गया था. अनिल के पिता रेलवे में अधिकारी थे. पिता के गुज़रने पर अनिल के ऊपर अपने दो छोटे भाइयों और बड़ी बहन की परवरिश की जिम्मेदारी आ गई थी. अनिल विज ने घर की जिम्मेदारियों को देखते हुए विवाह न करने का फैसला किया. उन्होंने अंबाला के एसडी कॉलेज से साइंस में ग्रेजुएशन पूरा किया. इस दौरान वो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए. 1970 में वो एबीवीपी के महासचिव बने. इसके बाद वो आरएसएस के प्रचारक भी बन गए. लेकिन 1974 में उन्हें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी मिल गई. उन्होंने 16 साल तक बैंक अधिकारी के रूप में नौकरी की. लेकिन उनका मन जनसेवा की तरफ लालयित रहा.
नौकरी छोड़ लड़ा चुनाव और मिली जीत
साल 1990 में बीजेपी नेता सुषमा स्वराज के राज्यसभा सदस्य निर्वाचित होने की वजह से अंबाला केंट की सीट खाली हो गई थी. जिस वजह से बीजेपी ने अनिल विज को बैंक की नौकरी छोड़कर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया. अनिल विज ने बैंक की नौकरी से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर ली और साल 1990 में अम्बाला कैंट विधानसभा के उपचुनाव में खड़े हुए और पहली बार में ही चुनाव जीते. लेकिन एक साल बाद 1991 में हुए विधानसभा चुनाव में अनिल विज को हार का सामना करना पड़ा.
इस अप्रत्याशित हार के बावजूद अनिल विज का हौसला और पार्टी के प्रति समर्पण नहीं कम हुआ. वो अपनी पूरी शक्ति, सामर्थ्य और समर्पण भावना के साथ हरियाणा में बीजेपी के संगठन को मजबूत करने में जुट गए. संगठन के प्रति उनके दायित्व निर्वाह को देखते हुए जल्द ही उन्हें नई जिम्मेदारी मिली. साल 1991 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बने.
बीजेपी छोड़कर निर्दलीय चुनाव जीते
लेकिन बाद में उन्होंने बीजेपी छोड़ दी. अनिल विज केंट के लोगों के बीच ज्यादा समय गुज़ारने लगे. केंट के लोगों की समस्या को तत्कालीन सरकार के नुमाइंदों के सामने रखते रहे. उनकी समाज सेवा ने लोगों के बीच उनकी पहचान और सम्मान को गाढ़ा करने का काम किया. केंट के लोगों के बीच अनिल विज की पकड़ मजबूत होती चली गई. यही वजह रही कि जब साल 1996 में अनिल विज ने बिना किसी पार्टी की छत्र-छाया के बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ा तो उन्हें जीत हासिल हुई. इसी तरह साल 2000 के विधानसभा चुनाव में भी अनिल विज निर्दलीय चुनाव जीते.
साल 2005 में बीजेपी में हुई वापसी
बीजेपी से दूर जाने के बाद अनिल विज राजनीति की राह पर काफी आगे निकल चुके थे. लेकिन जनता की सेवा के लिए सिर्फ विधायक रह कर ही बहुत कुछ नहीं किया जा सकता था. अनिल विज को सामाजिक कार्यों को पूरा करने के लिए एक पार्टी और सरकार की भी जरूरत थी. खासतौर से ऐसी पार्टी जिससे उनकी विचारधारा मेल खाती है. यही वजह रही कि साल 2005 में उनकी बीजेपी में वापसी हुई. लेकिन ये वापसी उन्हें जीत नहीं दिला सकी. अनिल विज की विधानसभा चुनाव में हार हो गई.
साल 2009 में मिली तीसरी जीत
लेकिन इसके बाद उन्होंने ज़बर्दस्त वापसी करते हुए साल 2009 में कांग्रेस के कद्दावर नेता निर्मल सिंह को हरा दिया. इस बड़ी जीत ने अनिल विज के राजनीतिक कद को और ऊंचा कर दिया. उन्हें विधानसभा में विपक्ष के विधायक दल का नेता चुना गया.
साल 2014 के विधानसभा चुनाव में अनिल विज के सामने दर्जन भर उम्मीदवार थे. सबसे मजबूत दावेदारी के साथ कांग्रेस के निर्मल सिंह एक बार फिर मैदान में थे. लेकिन अनिल विज ने इस बार भी निर्मल सिंह को भारी मतों से हराया.
अंबाला में अंगद का पांव हैं अनिल विज
अंबाला जिला पंजाब से सटा हुआ है. अंबाला लोकसभा सीट से बीजेपी के रतन लाल कटारिया सांसद हैं. अंबाला लोकसभा सीट के तहत विधानसभा की 4 सीटें आती हैं. अंबाला कैंट, अंबाला सिटी, नारायणगढ़ और मुलाना विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. कांग्रेस, इनेलो और जजपा की कोशिश है कि इस बार बीजेपी के इस अभेद्य किले में सुरंग बनाई जाए.
लेकिन बीजेपी के पास अनिल विज के रूप में हरियाणा में एक ऐसा पंजाबी चेहरा है जो अंबाला केंट की जनता में अपनी सादगी की वजह से अलग ही पहचान रखता है. अब साल 2019 के विधासभा चुनाव में अनिल विज अंबाला केंट से जीत की हैट्रिक जरूर चाहेंगे. कुल 7 बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके अनिल विज पांच बार विजयी हुए हैं.
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Tags: Anil Vij, Haryana Assembly Election 2019, Haryana Assembly Profile
FIRST PUBLISHED : October 08, 2019, 14:33 IST
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