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हाइलाइट्स

यूनाइडेट स्टेटस और यूरोप की तुलना में UK में खाने की चीजों की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं.
खाने की चीजों के अतिरिक्त ईंधन की कीमतें भी लगातार बढ़ रही हैं.
अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आने वाला समय और भी बुरा होगा.

नई दिल्ली. यदि आपको लगता है कि महंगाई केवल भारत में ही सता रही है तो ऐसा नहीं है. महंगाई का तांडव विकसित देशों में भी चर्म पर है. इस बार महंगाई की खबर ब्रिटेन से आई है. जुलाई में ब्रिटेन की मुद्रास्फीति दर बढ़कर 10.1% तक पहुंच गई है. और इससे पहले 40 वर्षों में ऐसा नहीं हुआ था.

यूनाइडेट स्टेटस और यूरोप की तुलना में UK में खाने की चीजों की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं, जिसके चलते लोगों की कोस्ट-ऑफ लीविंग बढ़ गई है. ऊपर से ईंधन की लगातार बढ़ते प्राइस ने महंगाई के दिए जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है.

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ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स ने बुधवार को कहा कि एक साल पहले उपभोक्ता कीमतों में दो अंकों की वृद्धि दर अनुमान से अधिक थी. विश्लेषकों के 9.8% के पूर्वानुमान और जून में 9.4% की वार्षिक दर से अधिक थी. यह वृद्धि मुख्य रूप से भोजन और उससे जुड़ी अहम चीजों, जिसमें कि टॉयलेट पेपर और टूथब्रश भी शामिल हैं, की बढ़ती कीमतों के कारण हुई है.

2023 तक मंदी चलने की आशंका
अधिकांश अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आने वाला समय और भी बुरा होगा. बैंक ऑफ इंग्लैंड का कहना है कि प्राकृतिक गैस की कीमतों में बढ़ोतरी अक्टूबर में उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति (Consumer Price Inflation) को 13.3% तक ले जा सकती है. बैंक का कहना है कि ब्रिटेन को मंदी की ओर धकेल देगा, जिसके 2023 तक चलने की उम्मीद है.

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मंदी की आशंकाओं के चलते ही इस महीने सेंट्रल बैंक ने अपनी प्रमुख ब्याज दर को 0.50 प्रतिशत बढ़ा दीं. यह दिसंबर के बाद से लगातार छह वृद्धियों में से सबसे बड़ी है. यह दर अब 1.75% हो गई है, जो 2008 के अंत में वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से सबसे अधिक है.

विकसित बाजारों के अच्छे जानकार अर्थशास्त्री जेम्स स्मिथ ने कहा, “हमें सितंबर में एक और 50bps (आधार अंक) की वृद्धि की उम्मीद है… हम नवंबर में एक और बढ़ोतरी से इनकार नहीं करेंगे.”

पश्चिमी देशों में ईंधन का संकट
यूक्रेन पर रूस द्वारा आक्रमण किए जाने के बाद से दुनियाभर में एनर्जी की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जिससे कई देशों में मुद्रास्फीति बढ़ रही है. यूक्रेन के पश्चिम देशों द्वारा समर्थन मिलने पर प्रतिशोध में रूस ने यूरोप में प्राकृतिक गैस शिपमेंट को कम कर दिया है. इसका असर ये है कि वहां जीवाश्म ईंधन का संकट पैदा हो गया है, जो कारखानों को बिजली देता है और सर्दियों में घरों को गर्म करता है.

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