
रांची. हॉकी और तीरंदाजी वाले झारखंड की पहचान अब फुटबॉल की दुनिया में तेजी से उभर रही है. प्रदेश के ग्रामीण इलाकों की बेटियों ने संघर्ष और चुनौतियों के बीच अपनी प्रतिभा को साबित किया है. आज आलम यह है कि अंडर 17 फीफा वर्ल्ड कप खेलने वाली भारतीय वीमेंस टीम में झारखंड की 5 बेटियां शामिल हैं. इसमें रांची का वह गांव भी शामिल है, जहां की फुटबॉलर बेटियों में शामिल अनिता कुमारी और नीतू लिंडा ने दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई है.
फुटबॉल की गोल दुनिया में आज झारखंड की बेटियां की दस्तक दे रही हैं. अंडर-17 फीफा वर्ल्ड कप में झारखंड की पांच बेटियों के चयन ने यह साबित कर दिया है कि प्रदेश की बेटियों को हर खेल खेलने का हुनर आता है. इन पांच फुटबॉलर में अनिता कुमारी और नीतू लिंडा रांची के कांके प्रखंड के चारी हुजीर गांव की रहने वाली हैं, जिसे आज फुटबॉलर बेटियों वाले गांव के नाम से जाना जाता है.
करीब 250 बेटियां हर दिन करती हैं प्रैक्टिस
कांके और ओरमांझी प्रखंड के दूरदराज के गांवों से करीब 250 बेटियां हर दिन सुबह फुटबॉल खेलने ग्राउंड पहुंचती हैं. इनमें ज्यादातर साइकिल से या फिर दूसरे वाहनों से ग्राउंड पहुंचकर फुटबॉल को लेकर अपनी दीवानगी को साबित करती हैं. लेकिन, पिछले गांवों की इन बेटियों का घर से मैदान तक पहुंचना इतना आसान नहीं होता है. खाने पीने से लेकर किट तक की समस्या से जूझने वाली इन बेटियों को कई तानों का भी सामना करना पड़ता है.
फुटबॉलर्स की सरकार से ये है मांग
अनीता और नीतू लिंडा समेत करीब ढाई सौ फुटबॉलर बेटियों को ट्रेनिंग दे रहे राइट टू किक क्लब के कोच आनंद प्रसाद गोप बताते हैं कि की बच्चियों में टैलेंट बहुत ज्यादा है. बस जरूरत है इन्हें संसाधन के जरिए और निखारने की. अनीता और नीतू के साथ खेल चुकी इनमें से कई लड़कियां खुद को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साबित कर चुकी है. हर दिन समस्याओं का सामना कर रही इन फुटबॉलर्स की सबसे बड़ी मांग है कि सरकार उनके गांव में ही एक आवासीय सेंटर उपलब्ध कराएं, जहां रहने और खाने-पीने के साथ-साथ उन्हें किट भी मुहैया कराई जा सके.
माड़ भात खाकर बनाती हैं अपनी पहचान
अंडर 17 फीफा वर्ल्ड कप में रांची के कांके प्रखंड की रहने वाली अनिता कुमारी के चयन में उसके गांव कांके प्रखंड के चारीहुजीर गांव को चर्चा में ला दिया है. शराबी पिता की अनदेखी और मजदूरी करने वाली मां की मजबूती ने अनीता के कदमों को और ज्यादा मजबूती दी. अनीता की मां बताती है कि फुटबॉलर बेटी को जो मिलना चाहिए. वह देना उनके बस की बात नहीं. वह बताती हैं गरीब की बेटियां माड़ भात खाकर ही मजबूत होती हैं और दुनिया में अपनी पहचान बनाती हैं.
मिट्टी के घर में रहती हैं अनीता
कच्चे मकान में रहने वाला अनिता का परिवार मानसून के दिनों में बहुत परेशान रहता है. मजदूरी करने वाली मां के पास इतने पैसे नहीं कि अपने घर की छत को मजबूती दे सके. मिट्टी के घर के एक कमरे में अनीता के जीते हुए कई पदक और शील्ड रखे हैं, जिस पर मिट्टी की धूल भरी है. अनीता की मां बताती है कि घर में मीटर नहीं है. लेकिन, इस बार बिजली का बिल 15 हजार के करीब आया है. शराबी पिता की अनदेखी ने हालांकि इस परिवार को तोड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. लेकिन, आशा देवी ने अपनी पांच बेटियों को मजदूरी कर पाला पोसा और महिला समिति से कर्ज लेकर तीन बेटियों की शादी भी की.
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Tags: FIFA Women’s World Cup, Fifa World Cup 2022, Jharkhand news
FIRST PUBLISHED : June 26, 2022, 16:00 IST
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