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हम सबको जिंदगी में बड़े मुकाम पर पहुंचना होता है. उपलब्धियां हासिल करनी होती हैं. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो औरों की मदद करना चाहते हैं. लोगों की सेवा में अपने अवसरों का भी त्याग कर देते हैं.

ऐसे ही एक दंपती की कहानी हम आपके लिए लाए हैं, जिनके पास अमेरिका जाकर पीएचडी करने का मौका था. लेकिन उनसे उम्मीद रखने वाले लोगों के लिए उन्होंने इस अवसर को दरकिनार कर लोगों की मदद करते रहने का निर्णय लिया. वे अब काफी बच्चों और महिलाओं का भविष्य संवार रहे हैं. अपनी लाल रंग की कार में जब बच्चों के लिए लाइब्रेरी लेकर गांव में जाते हैं तो बच्चे उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे होते हैं. उस लाल रंग की कार में बच्चों को पढ़ने के लिए पाठ्यपुस्तकों का भंडार महिलाओं के लिए पैड्स का भंडार होता है.

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गरीब वर्ग के बच्चों की पढ़ाई में मदद करते हैं.

अनिर्बान नंदी और पौलमी चाकी नंदी दोनों मिलकर कई बच्चों को 3 महीने के लिए मुफ्त में किताबें महैया कराते हैं. बच्चों को सिर्फ 10 रुपये महीने में ट्यूशन भी पढ़ाते हैं. इसके साथ ही महिलाओं के लिए शिक्षा, स्वरोजगार और मुफ्त सैनेटरी पैड्स देना और बनाना सिखाते हैं. इस तरह वे समाज सेवा करके लोगों की मदद कर रहे हैं. उनके इस काम के बारे में विस्तार से जानने के लिए न्यूज़ 18 ने उनसे बातचीत की.

ऐसे हुई शुरुआत 

अनिर्बान से बात करने पर वो बताते हैं कि हम लोग उत्तर बंगाल के दार्जिलिंग जिले में सिलीगुड़ी के रहने वाले हैं. अनिर्बान आईआईटी खड़गपुर में सीनियर रिसर्च फैलो हैं और पौलमी सोशल साइंस और इकॉनोमी में रिसर्च एसोसिएट हैं. वो बताते हैं कि यहां के लोगों के लिए चाय के बागान आय का मुख्य स्त्रोत हैं. लेकिन इन बागानों में मजदूरी करने वाले मजदूरों की कई सारी समस्याऐं हैं. जिनके चलते इनके बच्चे अच्छे से पढ़ नहीं पाते हैं. इन गरीब वंचितों की मदद करने के लिए हमने साल 2016 में लीव लाइफ हैप्पीली ऑर्गेनाइजेशन की शुरुआत की. वो बताते हैं कि हम लोग यहीं पले-बढ़े हैं इसलिए यहां की समस्याओं के बारे में पहले से जानते थे. इसलिए इन समस्याओं के सॉल्यूशन के बारे में सोचा तो समझ आया कि इनका एक ही सॉल्यूशन है वो एजुकेशन है. वो कहते हैं, “पेपर सबके लिए एक जैसा ही बनता है. सवाल सबके सामने एक जैसे ही होते हैं लेकिन शहर में रहने वाले और गांव में पढ़ने वाले बच्चों को सारी सुविधाएं एक जैसी मुहैया नहीं हो पाती हैं.” इस अंतर को खत्म करके बच्चों को शिक्षित कर सक्षम बनाने का बीड़ा उठाया. पौलमी इस विषय में बताते हुए कहती हैं कि शुरुआत में हम लोगों ने थोड़ी-थोड़ी किताबें बांटनी शुरू की. उसके बाद धीरे-धीरे हमने जब और भी लोगों की मदद करने के विषय में सोचा तो हमने यह ऑर्गेनाइजेशन बनाने का निर्णय लिया.

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बाएं तरफ अनिर्बान और दाएं तरफ पौलमी.

पौलमी बताती हैं कि शुरुआत में जब हम लोग अपनी कार लेकर लोगों के पास, बच्चों के पास जाते थे. तो कई शराबी लोगों की बातों का सामना करता पड़ता था. बच्चे और महिलाएं भी नहीं आया करती थीं. फिर धीरे-धीरे हालात सुधरते गए लेकिन अभी भी जब नए गांव में जाते हैं तो कई शराबियों का सामना करना पड़ता है. लेकिन हम चुनौतियों से पीछे नहीं हटते बल्कि उनका डटकर सामना करते हैं. लोगों को समझाते हैं और कई बच्चे हमारे साथ पढ़ रहे हैं.

सफलता का किस्सा 

अनिर्बान बताते हैं कि कुछ सालों पहले हमने एक लड़की को गांव में पढ़ाना शुरू किया था. उसके माता-पिता नहीं हैं. उसका पालन पोषण उसकी मौसी करती हैं. वो जब कक्षा 9वीं में थी तब हमने पढ़ाना शुरू किया था. फिर उसने 12वीं पास की तो उसे नर्सिंग का कोर्स करवाया और अब उसका कॉलेज से कैंपस सिलेक्शन हो गया है. ये हमारे लिए बहुत खुशी की बात है. इसी तरह ऐसी कई सारी महिलाएं जो खुद का रोजगार कर रही हैं. पौलमी से बात करने पर बताती हैं कि एक महिला जिसके पति की मृत्यु हो चुकी है. वो पहले घरेलू हिंसा का शिकार हो चुकी है. उसके पति के पीटे जाने पर उसके एक कान का पर्दा फट गया था. जिसके कारण उन्हें एक कान में सुनाई नहीं देता है. वो हमसे जुड़कर मशरूम कल्टीवेशन का काम सीख कर मशरूम उगाती, बेचती हैं और खुद ही सैनेटरी पैड बनाकर भी बेचती हैं. हमारे साथ ही अब दूसरी महिलाओं को भी ट्रेनिंग देने का काम करती हैं.

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अब तक कई बच्चों और महिलाओं का भविष्य संवारने में कामयाब रहे.

इतने तरीकों से करते हैं समाजसेवा 

पौलमी बताती हैं कि उनके साथ अब तक 8 हजार से ज्यादा महिलाएं जुड़ चुकी हैं. साथ ही 32 गांवों के 10 हजार से ज्यादा बच्चे मोबाइल लाइब्रेरी से जुड़ चुके हैं. इन सबको छोड़कर अमेरिका में पीएचडी करने जाना सही नहीं लगा. हमारी मोबाइल लाइब्रेरी में 8300 से ज्यादा किताबें हैं. सारी किताबें बच्चों के अलग-अलग विषयों और पाठ्यक्रमों की हैं. इसके अलावा महिलाओं को हम मशरूम की खेती सिखाने का काम करते हैं. खेती सिखाने से लेकर उन्हें मार्केट में कैसे बेचना है वहां तक उनकी पहुंच बनाने का काम भी करते हैं. इसके साथ ही हम अपनी मोबाइल लाइब्रेरी से ही सैनेटरी पैड मुफ्त बांटते हैं और महिलाओं को सैनेटरी पैड्स बनाना सिखाते भी हैं. जिससे की वे स्वयं बनाकर बेचकर मुनाफा कमा सकें. पैड्स बनाने में जरूरी सामान भी मुफ्त में उपलब्ध करवाते हैं. शहर के कई लोग इस काम में हमारी मदद कर रहे हैं. कई लोग हमें किताबें दान में देते हैं जो हम जरूरतमंद बच्चों तक पहुंचाते हैं. एक बच्चे को किताब 3 महीने के लिए दी जाती है जिसके बाद उसे वापस ले लेते हैं जिससे कि दूसरे बच्चे के पढ़ने के काम आ सके. वो बताती हैं कि मजदूरों के बच्चे शहर के बच्चों की तरह हर एक विषय के लिए तो अलग-अलग ट्यूशन लगा नहीं सकते हैं. इसलिए हम उन्हें एक विषय पढ़ाने के लिए गुरुदक्षिणा के रूप में केवल 10 रुपये लेते हैं.

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लोगों को संदेश 

वे कहते हैं कि हमें खुद के लिए तो करना ही चाहिए. लेकिन जो जानकारी से वंचित हैं ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए. हमें साथ मिलकर लोगों की मदद करनी चाहिए क्योंकि साथ मिलकर हम लोग ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद कर सकते हैं.

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