
पटनाएक घंटा पहलेलेखक: बृजम पांडेय
पटना में आंदोलन के दौरान एक पार्टी से जुड़े प्रदर्शनकारी।
सेना बहाली की ‘अग्निपथ’ योजना को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शनों पर राजनीति अब खूब हो रही है। अब यह विरोध -प्रदर्शन युवाओं के हाथों से निकल राजनीतिक दलों के हाथ में पहुंच गया है। वजह साफ है कि पहले दो दिनों तक राजनीतिक दलों ने हंगामा कर रहे युवाओं को देखा और परखा। उसके बाद इन युवाओं के समर्थन के नाम पर हंगामे में शामिल हो गए। जब उग्र युवाओं के साथ राजनीतिक दल के कार्यकर्ता शामिल हुए तो हंगामा और भी उग्र हो गया।
पिछले दो दिनों में ‘अग्निपथ’ का विरोध कर रहे उपद्रवियों ने 15 ट्रेनों को फूंक दिया, तोड़-फोड़, आगजनी, लूटपाट भी किया। अब सवाल यह उठता है कि राजनीतिक दलों को इस हंगामें में शामिल होकर क्या फायदा मिलेगा? ‘अग्निपथ’ का विरोध कर रहे युवाओं को इससे क्या फायदा होगा?
आंदोलन से राजनीतिक दलों को फायदा ज्यादा, युवाओं को नुकसान
अक्सर सरकार के खिलाफ होने वाले आंदोलनों में विपक्ष की पार्टियां किसी तरह अपने लिए जगह ढूंढती हैं। यही वजह है कि ‘अग्निपथ’ योजना के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों में हजारों-लाखों छात्रों का शामिल होना, विपक्षी दलों के लिए मौका था कि वो सरकार की नीतियों और योजनाओं पर हमला कर सके। विपक्ष को यह मौका बैठे-बिठाए मिल गया। राजनीतिक दलों को इसके लिए अलग से कोई भीड़ जुटाने की जरूरत नहीं पड़ी।
ऐसे मौकों पर राजनीतिक दलों के कुछ नेता या फिर कार्यकर्ता भीड़ का नेतृत्व करने लगते हैं। भले हजारों की भीड़ में कुछेक नेता हो लेकिन नेतृत्व को लेकर राजनीतिक दल उसपर हावी हो जाते हैं। लेकिन असली बात यह है कि आंदोलन में राजनीतिक दलों के शामिल होने से युवाओं का मूल मुद्दा गौण हो जाएगा। युवा जिस उद्देश्य के साथ यह आंदोलन कर रहे हैं, राजनीतिक दल उसे और भी उग्र कर उन्हें सरकार की नजर में अपराधी बना रहे हैं।
कैसे अपराधी बन जाएंगे आंदोलनकारी युवा?
शनिवार को ही बिहार के ADG (लॉ एंड ऑर्ड) संजय सिंह ने साफ शब्दों में कहा है कि ”जो लोग आंदोलन कर रहे हैं, यदि पकड़े गए तो ‘अग्निपथ’ तो क्या, किसी भी पथ के लायक नही रहेंगे।” मतलब प्रशासन ने आंदोलन में जिन युवाओं को गिरफ्तार किया और उनपर FIR दर्ज हुई, तो वो फौज की किसी तरह की नौकरी के लायक नहीं बचेंगे। इस तरह कुछ देर के लिए आंदोलन में शामिल होकर राजनीतिक दल सत्ता पर दबाव तो बना लेंगे, लेकिन कई हजार युवाओं का भविष्य अंधाकारमय हो जाएगा।
नेतृत्वहीन आंदोलनों का फायदा उठाती हैं पॉलिटिकल पार्टियां
नेतृत्वहीन आंदोलन कभी सफल नहीं हो पाता है। इसी का फायदा राजनीतिक दल उठाते हैं। इस आंदोलन में भी यही हुआ, इसका नेतृत्व कोई नहीं कर रहा था। लेकिन संख्या बल हजारों में थी। ऐसे में राजनीतिक दलों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू किया।
‘अग्निपथ’ योजना को लेकर कुछ भ्रम भी फैलाए गए। आंदोलन को और भी उग्र कर दिया गया। यही वजह है कि शनिवार को CPIML ने बिहार बंद का आह्वान कर दिया, जिसका समर्थन सभी विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ NDA में शामिल जीतनराम मांझी की HAM ने भी किया। अब स्थिति यह हो गई कि सड़क पर छात्र कम, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता ज्यादा दिख रहे हैं।
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