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नई दिल्ली. ‘बड़ा गामा पहलवान बन रहा है’. एक दौर था, जब किसी भी शख्स की ताकत को बताने के लिए यह जुमला इस्तेमाल होता था. घर-घर में यह नाम गूंजता था. आज उसी गामा पहलवान का 144वां जन्मदिन है. कुश्ती की दुनिया में गामा पहलवान का कद कितना बड़ा था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जन्मदिन के मौके पर गूगल ने भी डूडल बनाकर उन्हें सम्मान दिया है. आज ही के दिन यानी 22 मई, 1878 को अमृतसर के जब्बोवाल गांव में द ग्रेट गामा या गामा पहलवान का जन्म हुआ था. वो एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार से आते थे और उनके पिता मुहम्मद अजीज बक्श दतिया के तत्कालीन महाराजा भवानी सिंह के दरबार में कुश्ती लड़ा करते थे.

जब गामा पहलवान 6 साल के थे, तो पिता का इंतकाल हो गया था. लेकिन तबतक उनके पहलवान बनने की शुरुआत हो चुकी थी. पिता के जाने के बाद गामा पहलवान के नाना नून पहलवान ने उन्हें और उनके भाई को कुश्ती के दांव-पेंच सिखाने की जिम्मेदारी उठाई. इसके बाद मामा ईदा पहलवान ने भी गामा और उनके भाई को तराशा. गामा पहलवान पहली बार दुनिया की नजर में आए, तब उनकी उम्र केवल 10 बरस थी. यह साल था 1888 का. तब जोधपुर में सबसे ताकतवर शख्स की खोज के लिए एक प्रतियोगिता हुई थी. इसमें 400 से अधिक पहलवानों ने हिस्सा लिया था और गामा अंतिम 15 में शामिल थे.

जोधपुर के महाराज इतनी कम उम्र में गामा की ताकत देखकर हैरान रह गए थे. इसी वजह से उन्होंने गामा को विजेता घोषित कर दिया था. इसके बाद पिता की तरह गामा भी दतिया महाराज के दरबार में पहलवानी करने लगे.

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कड़ी प्रैक्टिस करते थे गामा
कम उम्र में ही गामा का नाम हर जगह गूंजने लगा. वो रोज 10 घंटे से ज्यादा प्रैक्टिस करते थे और दमखम बढ़ाने के लिए अखाड़े में एक दिन में 40 पहलवानों से कुश्ती लड़ते थे. आपको जानकार हैरानी होगी कि वो हर दिन 5 हजार बैठक और 3 हजार दंड किया करते थे. कभी-कभी 30 से 45 मिनट तक एक डोनट के आकार का उपकरण पहनकर, वो ट्रेनिंग करते थे, जिसका वजन 100 किलो था. यही नहीं, वो रोज 6 देसी चिकन, 10 लीटर दूध, आधा लीटर घी, डेढ़ लीटर मक्खन, बादाम का शरबत और 100 रोटी खाया करते थे.

कैसा रहा गामा पहलवान का करियर?
गामा पहलवान अपने 5 दशक लंबे पहलवानी के करियर में अपराजित रहे. 10 साल की उम्र से उन्होंने अखाड़े में दांव-पेंच आजमाने शुरू किए और इसके बाद जिसके खिलाफ भी कुश्ती लड़ी, जीत ही हासिल की. उन्होंने सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में लोगों को प्रेरित किया. इसमें ब्रूस ली जैसे दिग्गज शामिल हैं. 1910 में वो लंदन गए थे. तब गामा ने खुली चुनौती दी थी कि वो किसी भी वेट कैटेगरी के तीन पहलवानों को महज 30 मिनट में धूल चटा देंगे. हालांकि, उनकी इस चुनौती को बाकी पहलवानों ने हल्के में लिया. काफी समय तक किसी ने गामा पहलवान की चुनौती स्वीकार नहीं की.

ऐसे में गामा ने हैवीवेट पहलवानों को चुनौती दी. उन्होंने विश्व चैंपियन स्टैनिस्लॉस जैविस्को, फ्रैंक गॉच को चुनौती दी या तो वह उन्हें हरा देंगे या इनाम में जो राशि मिलेगी वो उन्हें देकर घर लौट जाएंगे. गामा की चुनौती लेने वाले पहले पहलवान अमेपिका के बेंजामिन रोलर थे. गामा ने पहली बार में रोलर को 1 मिनट 40 सेकेंड में चित कर दिया और दूसरे को 9 मिनट 10 सेकेंड में. दूसरे दिन उन्होंने 12 और पहलवानों को हराया. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. भारत लौटे तो 5 फीट 8 इंच के कद वाले गामा पहलवान रुस्तम-ए-हिंद भी बने.

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हिंदू परिवारों की जान बचाई थी
बंटवारे के वक्त गामा पहलवान पाकिस्तान में ही रह गए थे. लेकिन उन्होंने तब हिंसा में कई हिंदू परिवारों की जान बचाई थी. पाकिस्तान की सरकार ने उनका ध्यान नहीं रखा और जीवन के आखिरी दिनों में पैसों की तंगी से वो जूझते रहे. 1960 में 82 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई. लेकिन, आज भी भारत और पाकिस्तान में उनके नाम का डंका बजता है.

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