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- Shivanand Tiwari Remembered The Old Days; Sharad Was The Pivot Of Bihar’s Politics For Three Decades
पटनाएक घंटा पहले
प्रख्यात समाजवादी नेता जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान में राजद मेंबर शरद यादव का 75 वर्ष में निधन हो गया। राजद के बड़े नेता शिवानंद तिवारी ने उनके साथ बिताए पुराने दिनों को याद किया। उन्होंने बताया कि लालू शरद भाई के कारण ही मुख्यमंत्री बन पाए थे।
सबसे पहले पढ़िए 52 साल पहले का वो किस्सा…
यह 1970 की बात है। बावन साल पहले की। दिन, महीनों के हिसाब से यह बाकायदा एक उम्र होती है। मैंने शरद यादव जी के साथ इस उम्र को जिया । खूब जिया । जमकर यारी दोस्ती तो कायदे का मतभेद भी। उनके निधन की खबर से खुद को अचानक बहुत कमजोर समझने लगा हूं। वे मेरी ताकत थे।
बहुत सक्रिय संसदीय राजनीति के हिसाब से 1991 में उनका बिहार आगमन हुआ। और तब से वे यहीं के, हम सबके होकर रह गए। उन्होंने मधेपुरा से लोकसभा का चुनाव जीता। रमेंद्र कुमार रवि को टिकट मिला था। उनकी जगह शरद भाई को लड़ाया गया। यह जनता दल का दौर था । बीपी सिंह की सरकार गिर गई थी। लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री बनाने में उनकी बड़ी भूमिका रही।
पार्टी के बड़े नेताओं में से कुछ लोग रामसुंदर दास को सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। रघुनाथ झा भी मैदान में आ गए। ऐसे में शरद भाई के कारण ही लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बन पाए। शरद भाई ने जदयू का भी नेतृत्व किया। एनडीए के राष्ट्रीय संयोजक रहे। इस रूप में उनकी इच्छा सबको जोड़कर रखने की रही। हालांकि इसमें उनको कामयाबी नहीं मिली।
राजद के वरिष्ठ नेता और शरद यादव के सहयोगी रहे पूर्व मंत्री श्याम रजक ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। उन्हें याद करते हुए कहा है कि 1990 में जब लालू यादव मुख्यमंत्री बने थे तो उसमें सबसे बड़ी भूमिका शरद यादव की रही थी। शरद यादव और चंद्रशेखर ने मिलकर लालू यादव के खिलाफ डमी कैंडिडेट रघुनाथ झा को खड़ा किया था। इसी सदाकत आश्रम के बृजमोहन स्मारक के पास विधायक दल की बैठक हुई थी और नेता चुना गया था। तब ज्यादा से ज्यादा लोगों ने लालू यादव के पक्ष में अपना समर्थन दिया था।
श्याम रजक कहते हैं कि 2013 में महागठबंधन बनाने में शरद यादव की बड़ी भूमिका रही ही थी। 2022 में भी शरद यादव ने लालू यादव और नीतीश कुमार को मिलाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। शरद ने ही सीएम नीतीश कुमार से भी बात की थी और लालू यादव को भी इस गठबंधन के लिए फिर से तैयार किया था। आज जो महागठबंधन बना है, वह पूरी तरह से शरद यादव की ही देन है।

राहुल गांधी ने छतरपुर में उनके आवास पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
शरद यादव ऐसे राजनेता थे जो तीन राज्यों बिहार, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश से सांसद चुने गए…
बिहार के मधेपुरा से 4 बार, मध्यप्रदेश के जबलपुर से 2 बार और उत्तर प्रदेश के बदायूं से 1 बार सांसद चुने गये। देश में पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी तो उस एनडीए गठबंधन के वो संयोजक भी बने।
अभी उनके पुत्र राजद के मेंबर हैं तो बेटी सुभाषिणी यादव ने पहली बार पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से चुनाव लड़ा। शरद खुद वर्ष 1974 में पहली बार सांसद बने थे।
वो वर्ष 1986 और 2014 में राज्यसभा सांसद भी रहे। वर्ष 1989-90 में वो पहली बार केन्द्र सरकार में कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बने। वर्ष 1999 में वो केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री, वर्ष 2001 में श्रम मंत्री और 2002 में उपभोक्ता मामलों के मंत्री बने।

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राजनीति के कई अहम पड़ाव की पटकथा लिखी
शरद यादव लगभग तीन दशक तक बिहार की राजनीति के धुरी थे। 1990 से लेकर अंतिम दम तक उनकी राजनीति का केंद्र बिहार रहा। लालू यादव को सीएम बनाने से लेकर 18 वर्षों तक उनके विरोध में राजनीति करने और मार्च 2022 को अपनी पार्टी का राजद में विलय करने तक उनकी हर राजनीतिक पहलकदमी में कहीं न कहीं बिहार रहा।
लालू यादव के सफल किडनी ट्रांसप्लांट हुआ तब उन्होंने सोशल मीडिया पर खुशी भरी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। दिल्ली में हुए राजद के राष्ट्रीय अधिवेशन को भी उन्होंने संबोधित किया। कुल मिलाकर देखा जाए तो शरद यादव ने ही बीते तीन दशक में बिहार की राजनीति के कई अहम पड़ाव की पटकथा लिखी। चाहे वह लालू को सीएम बनाने, उनके विरोध में नीतीश कुमार का साथ देने, प्रदेश में महागठबंधन का प्रयोग करने का हो या फिर राजद में वापसी का रहा हो। शरद ही सबके केंद्र में रहे।

RJD ने अपने ट्विटर अकाउंट से उनकी ये फोटो शेयर की है।
उनसे मिलने वालों में जिसमें वह राजनीतिक सूझबूझ देखते थे, उसके बारे में कहा करते थे… यह पॉलिटिकल आदमी है। आशय होता था समाज की समझ रखने वाला, इसी फार्मूले से उन्होंने हिन्दी पट्टी में समाजवादी सोच वाले नेताओं की एक पीढ़ी तैयार की। खासकर बिहार में।
वह नीतीश कुमार से बेहद करीब थे। लेकिन,2017 में जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़ा तब शरद-नीतीश के बीच ऐसी खटास पैदा हुई कि उन्हें जेडीयू से निकाल दिया गया। शरद ने 2019 में विपक्ष को एक करने की कोशिश की। तब वह फिर लालू प्रसाद के करीब आये।
उन्होंने पूरे देश में विपक्षी नेताओं के साथ साझी विरासत यात्रा शुरू की। राहुल गांधी से भी उनकी नजदीकियां बढ़ी। 2019 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद शरद यादव बीमार रहने लगे थे। वह दो टूक बोलते थे।
इस कारण कई बार विवादों में भी आए। वह पिछड़ों के हितों की मजबूत आवाज थे और मंडल आंदोलन का अगुवा चेहरा तो थे ही।
नहीं रहे शरद यादव:दिल्ली में आवास पर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया पार्थिव शरीर; कल होगा अंतिम संस्कार

JDU के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का दिल्ली के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। उनकी बेटी सुभाषिनी यादव ने रात पौने 11 बजे सोशल मीडिया पर उनके निधन की जानकारी दी। शुभाषिनी ने ट्वीट में लिखा, ‘पापा नहीं रहे’। उनकी उम्र 75 साल थी। दिल्ली के छतरपुर में उनके आवास पर पर्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। कल होशंगाबाद के बाबई तहसील के आंखमऊ गांव में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
शरद यादव चार बार बिहार के मधेपुरा सीट से सांसद रहे हैं। वे जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के अध्यक्ष के साथ केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं। पूर्व मंत्री की तबीयत बिगड़ती जा रही थी और उन्हें गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने बयान जारी कर कहा कि शरद यादव को अचेत अवस्था में फोर्टिस में आपात स्थिति में लाया गया था। जांच करने पर उनकी कोई पल्स या रिकॉर्डेबल ब्लड प्रेशर नहीं था।
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