
Mamta Tripathi
नई दिल्ली: दबाव की राजनीति में माहिर आजम खान (Azam Khan) को यूपी में होने वाले लोकसभा उपचुनाव (UP Lok Sabha by-election) ने मौका दे ही दिया और अखिलेश को आजम खान का हाल चाल लेने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल आना पड़ा जबकि जेल से निकले हुए आजम खान को दस दिन से ज्यादा का वक्त हो चुका है. आजमगढ़ और रामपुर की लोकसभा सीटों पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए अखिलेश (Akhilesh Yadav) को आजम के टूटे दिल का हाल लेने आना पड़ा. विधानसभा चुनाव में पूरा जोर लगाने के बाद भी अखिलेश महज 111 सीटें ही जीत पाए थे जिसमें से 34 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे. मुसलमानों ने विधानसभा चुनाव में एकतरफा वोट समाजवादी पार्टी को दिया था.
अखिलेश के सामने वोट बैंक को बचाए रखना बड़ी चुनौती
आजम की नाराजगी की खबरों के बाद से अखिलेश के लिए इस वोट बैंक को अपने साथ बनाए रखना मुश्किल हो रहा था. रामपुर में बिना आजम खान के बिना सपा का कोई अस्तित्व नहीं है ये बात सब जानते हैं. आजम खान जेल से छूटने के बाद दो दिन लखनऊ में रहे थे मगर उस वक्त अखिलेश और मुलायम सिंह यादव दोनों से ही नहीं मिले थे. मगर कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजने के बाद से ही आजम खान थोड़ा नरम पड़े और उन्होने बातचीत की गुंजाइश बनाई. बता दें कि आजम खान को जेल से बाहर निकलवाने में कपिल सिब्बल की बड़ी भूमिका रही है और आगे भी आजम खान के कई केसेस को वो अभी भी सुप्रीम कोर्ट में देखेगें. ऐसी हालत में कपिल सिब्बल की बात का मान रखना भी आजम की मजबूरी है.
उप चुनाव में पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर
आजम खान 27 महीने जेल में रहे मगर अखिलेश उनसे मिलने तक नहीं गए यहां तक कि विधानसभा चुनाव में सपा के लिए करो या मरो वाली स्थिति थी तब भी. ऐसे में सियासी जानकारों का मानना है कि 26 जून को होने वाले उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर हैं क्योंकि दोनों ही सीटों पर मुस्लिम वोटर ही निर्णायक है और दोनों सीटें अभी तक सपा के पास थीं. 6 जून तक उम्मीदवारों का नामांकन दाखिल करना है.
मुख्तार अब्बास नकवी हो सकते हैं भाजपा के उम्मीदवार
रामपुर से भाजपा केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को प्रत्याशी बना सकती है क्योंकि नकवी का नाम राज्यसभा उम्मीदवारों की लिस्ट में भी नहीं है ऐसे में 6 महीने के भीतर उन्हें किसी भी सदन का सदस्य बनना पड़ेगा वरना मंत्री पद भी छोड़ना होगा. हालांकि मुख्तार अब्बास नकवी की 2009 के लोकसभा चुनावों में जमानत जब्त हो चुकी है. उस वक्त जयाप्रदा सपा के टिकट से यहां से जीती थीं. ऐसे में रामपुर का उपचुनाव काफी दिलचस्प होने के आसार हैं क्योंकि बसपा पहले ही इस सीट से चुनाव ना लड़ने की घोषणा कर चुकी है.
तंजीन फातिमा के नाम पर तैयार हुई सपा
कांग्रेस के नेता भी दिल्ली में आजम खान से गंगाराम अस्पताल में मिल चुके हैं साथ ही ये आश्वासन भी मिला है कि अगर आजम खान के परिवार से कोई चुनाव लड़ेगा तो वो अपना प्रत्याशी नहीं उतारेंगे. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मानें तो अखिलेश यादव आजम खान की पत्नी तंजीन फात्मा के नाम पर तैयार हो गए हैं. आजम की पत्नी होने के नाते मुस्लिम महिलाओं की सहानुभूति भी उनके लिए इस चुनाव में काफी फायदेमंद होगी. विधानसभा के चुनाव में आजम खान की सीट पर तंजीन फात्मा ने ही चुनाव प्रचार किया था और आजम खान को लोगों की सहानुभूति वोटों के रूप में मिली थी. तंजीन फात्मा राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर रहीं है, वो एक बार राज्यसभा तो एक बार विधानसभा की सदस्य रह चुकी है.
शिवपाल यादव का दांव उल्टा पड़ा
हालांकि इस पूरे प्रकरण में प्रगतिशील पार्टी के मुखिया शिवपाल यादव का दांव उल्टा पड़ता दिख रहा है. उत्तराधिकार की लड़ाई में साइकिल सिम्बल तो ना ले पाए थे शिवपाल यादव मगर उन्होंने सोचा था कि समाजवादी पार्टी का एम-वाई समीकरण तोड़ कर वो अपने पक्ष में कर लेगें.
दलितों ने मायावती से बनाई दूरी
राजनीतिक विश्लेषक अशोक वानखेड़े का मानना है कि विधानसभा चुनाव में पिछड़ी जातियों की गोलबंदी करने में भाजपा सफल रही थी, किसी अन्य पार्टी को मौका ही नहीं मिला उसके ऊपर केन्द्र की कल्याणकारी योजनाओं की कोई काट किसी भी विपक्षी दल के पास नहीं थी. यहां तक कि दलितों का भी मायावती से मोहभंग हो गया और 8 प्रतिशत जाटव वोट भी भाजपा में शिफ्ट हो गया. ऐसे में समाजवादी पार्टी मुसलमानों की नाराजगी बिल्कुल नहीं मोल लेना चाहती. एन ब्लाक वोट किया था मुस्लिमों ने सपा को. रामपुर लोकसभा सीट पर 50 प्रतिशत मुसलमान है और आजमगढ़ सीट पर भी 42 प्रतिशत.
विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही लगातार समाजवादी पार्टी के अंदर विरोध के स्वर उठ रहे थे जिसको दबाने के लिए भी आजम खान का पार्टी में रहना जरूरी था क्योंकि कई विधायक खुले और दबे स्वर में सपा पर मुस्लिमों की अनदेखी का आरोप लगा रहे थे.वैसे भी सहयोगी दल अखिलेश पर दबाव की राजनीति कर रहे हैं चाहें वो रालोद हो या सुभासपा. ऐसे में रूठों का मना लेना ही अखिलेश का सबसे बड़ा सियासी दांव होगा.
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Tags: Akhilesh yadav, Azam Khan, Rampur news, Uttar pradesh news
FIRST PUBLISHED : June 03, 2022, 05:00 IST
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