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पटना43 मिनट पहलेलेखक: प्रणय प्रियंवद

सोशल एक्टिविस्ट हिमांशु कुमार।

सोशल एक्टिविस्ट हिमांशु कुमार, प्रेम कुमार मणि और प्रमोद रंजन की किताब ‘समय से संवाद’ का लोकार्पण करने पटना पुस्तक मेले में आए। उन्होंने छत्तीसगढ़ में अपनी पत्नी के साथ मिलकर 22 वर्षों तक छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में वनवासी चेतना आश्रम चलाया है। स्थानीय आदिवासी भाषा गोंडी सीखी और आश्रम के माध्यम से आदिवासियों को कानून के तहत उनके अधिकारों तक पहुंचने में मदद करने के लिए काम किया।

हाल के महीनों में हिमांशु कुमार तब सुर्खियों में फिर से आए जब सुप्रीम कोर्ट ने उन पर पांच लाख का जुर्माना लगाया। यह जुर्माना हिमांशु पर नक्सल विरोधी अभियान के दौरान छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की न्यायेत्तर हत्या की जांच को लेकर 13 साल पुरानी याचिका को खारिज करते हुए लगाया गया। उन्होंने जुर्माना देने से इंकार कर दिया। आगे पढ़िए उनसे एक्सक्लूसिव बातचीत –

सवाल- सुप्रीम कोर्ट से जो आपकी लड़ाई है ये कैसी लड़ाई है?

जवाब- सुप्रीम कोर्ट से लड़ाई नहीं है। भारतीय समाज में आदिवासियों के साथ जो अन्याय सदियों से हो रहा है। अभी पूंजीवाद का जो नया दौर आया है और आदिवासियों की हत्याएं हो रही हैं, उनकी जमीनें हड़पी जा रही हैं। महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहा है, सैनिककरण हो रहा है उनके इलाके का, उस हिंसा के बारे में भारतीय समाज को बताना कि आदिवासी के ऊपर हमला है और उनके लिए न्याय की मांग की। लेकिन न्याय के बदले अन्याय हुआ।

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सवाल- सुप्रीम कोर्ट आपकी बात क्यों नहीं समझता या फिर आदिवासियों की बात क्यों नहीं समझ पा रहा?

जवाब-असल में जो अन्याय करने वाले हैं वो इतने बड़े ताकतवर हैं कि सरकारों को चलाते हैं, सरकारों को फंड करते हैं। वे सिस्टम के मालिक हैं। मामला सिस्टम के एक्सपोज करने का था। ये साबित हो जाता कि राज्य ही अपनी जनता की हत्या कर रहा है। सरकारें आदिवासियों की हत्या कर रही है। तो ये बात सुप्रीम कोर्ट कैसे स्वीकार कर लेता। वह भी तो सिस्टम का ही हिस्सा है।

सवाल- लेकिन सुप्रीम कोर्ट को सरकार का हिस्सा नहीं माना जाता?

जवाब- हां संविधान तो यही कहता है। लेकिन इस समय में कोर्ट जिस तरह से सरकारों के पक्ष में लगातार फैसले दे रहा है और सुप्रीम कोर्ट से अपेक्षा ये की जाती थी कि सरकार के गलत कामों के खिलाफ वह बोले, उनको रोके। लेकिन यह नहीं हो रहा है। हमारी लड़ाई यही है कि संविधान का पालन कीजिए। सरकारें पूंजीपतियों के दबाव में काम कर रही है, आप सुप्रीम कोर्ट हैं इस पर रोक लगाइए। जनता पर रोने वाले अत्याचार को रोकिए।

सवाल – आप एक युद्ध की बात इन दिनों कर रहे हैं कि जो छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के खिलाफ हो रहा है वह बिहार और उत्तरप्रदेश के किसानों के खिलाफ भी शुरू हो जाएगा। इसे थोड़ा संक्षेप में समझाएं।

जवाब- मैंने कहा कि पूंजीवाद अगर फैलता नहीं है तो वह खत्म हो जाता है। पूंजीवादी आदिवासी इलाकों में जिस तरह से भारतीय सैन्य बलों का सहारा लेकर युद्ध कर रहा है वह आदिवासी इलाकों तक ही नहीं रुकेगा। अगला हमला भारत के एग्रीकल्चर पर है। वह कोशिश भारत के नए कृषि बिलों के जरिए की गई थी। भारत के किसान इस खतरे को समझ गए थे।

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इसलिए किसानों ने जोरदार प्रतिरोध किया और सरकारी को फौरी तौर पर तो झुका दिया है। मैं उसी खतरे की बात कर रहा हूं। किसान समझ रहे हैं कि पूंजीपतियों का अगला हमला किसानों की जमीन पर है। जो हिंसा आदिवासियों के खिलाफ हो रही है वह हिंसा किसानों के खिलाफ कुछ ही सालों में शुरू हो जाएगी।

सवाल- आपने मंच से बताया कि चार-पांच बार आपकी हत्या की कोशिशें की जा चुकी हैं। आपको डर नहीं लगता कि आपकी हत्या की कोशिश फिर तो नहीं होगी? इसके बाद आपकी ओर से चलाए जा रहे आंदोलनों का क्या होगा?

जवाब- देखिए मरना जो है वह एक विचार है, क्योंकि मृत्यु का अनुभव किसी को नहीं होता। तो मैं विचार से क्यों डरूं। जब मृत्यु आएगी तो मुझे पता नहीं चलेगा। मृत्यु का अनुभव तो होता नहीं, मैं जीवन का अनुभव ले रहा हूं।

सवाल- एक और सवाल, आप पर सुप्रीम कोर्ट ने कितना जुर्माना किया और आपने क्या जवाब दिया?

जवाब- पांच लाख का जुर्माना सुप्रीम कोर्ट ने मुझ पर यह कह कर किया कि आपने जो 16 आदिवासियों की हत्या का मुकदमा कोर्ट में लाया है वह झूठा है। वो सारे आदिवासी दिल्ली आए गए। वह बच्चा भी आ गया जिसकी अंगुलियां सीआरपीएफ द्वारा काटी गईं थीं। वह भी दिल्ली आ गया। मैंने कोर्ट में कहा कि अगर मै जुर्माना चुका देता हूं तो इसका मतलब यह होता कि सारे आदिवासी झूठ बोल रहे हैं। मैं यह कैसे स्वीकर कर लूं कि आदिवासी झूठ बोल रहे हैं। और फिर न्याय मांगना जुर्म हो गया। मैं पूछता हूं तीस्ता सीतलवाड़ पर किस बात का जुर्माना!

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सवाल- आपने पांच लाख रुपए का जुर्माना नहीं दिया। आप बाहर हैं, जेल में नहीं हैं?

जवाब- हां वहीं तो। आदिवासी दिल्ली आए, काफी जोरदार हंगामा हुआ, दुनिया भर से काफी सपोर्ट आया। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट को अपना फेस सेव करना पड़ा। आजादी के बाद आदिवासियों पर सबसे बड़ा हमला था आदिवासियों पर जिसमें डेढ़ साल के बच्चे का हाथ काट दिया गया हो, उसकी मां के सिर में चाकू मार दिया गया हो, मौसी का गला काट दिया गया हो और राज्य के बलों के द्वारा किया गया हो और सुप्रीम कोर्ट पीटिसनर पर फाइन लगा दे। दुनिया में यह मैसेज गया कि भारत के सुप्रीम कोर्ट को क्या हो गया है। ये कैसा विहैबियर है!

सवाल- आंदोलन से डर गया सुप्रीम कोर्ट?

जवाब- मैं नहीं कहता कि सुप्रीम कोर्ट डर गया। लेकिन एक शर्मिंदगी का अहसास जरूर हुआ होगा।

सवाल- सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने अंदर झांका?

जवाब- बिल्कुल सुप्रीम कोर्ट को अपने अंदर झांकना ही चाहिए।

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