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पटना3 मिनट पहलेलेखक: प्रणय प्रियंवद
आज राजद सुप्रीमो लालू यादव का 75वां जन्मदिन है। फुलवारिया में जन्मे लालू भारतीय राजनीति का वो किरदार हैं जो झुग्गी-झोपड़ी और पगडंडियों से होकर संसद तक पहुंचे। चरवाहा स्कूल खोलने वाले लालू को IIM और हार्वर्ड तक से उन्हें लेक्चर के लिए बुलावा आया। 1970 में छात्र संघ से राजनीति में कदम रखने वाले लालू के बर्थडे पर भास्कर एक स्पेशल रिपोर्ट लेकर आया है जो उनके जीवन के अनछुए पहलू को बताएगी। पढ़िए इस प्रभावशाली नेता की कहानी…
‘लालू प्रसाद की जीवन यात्रा अनेक उतार-चढ़ावों, उपलब्धियों और विफलताओं से भरी रही है, जिसमें उन्हें ढेर सारा प्यार मिला, तो तीखी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा।’ ये बातें सोनिया गांधी ने ‘गोपालगंज टू रायसीना : माई पॉलिटिकल जर्नी’ किताब के प्रस्तावना में कही है। अपने जीवन की राजनीतिक यात्रा पर केंद्रित इस किताब को उन्होंने स्वयं नलिन वर्मा के साथ लिखा है।
मेरी आवाज में दहाड़ थी
लालू प्रसाद ने अपनी जीवनी ‘गोपालगंज टू रायसीना’ में लिखा है कि मेरा जीवन बेहद मामूली ढंग से शुरू हुआ। मेरे आसपास सब कुछ इतना साधारण था कि उससे साधारण कुछ और हो ही नहीं सकता। उन्होंने बताया, ‘हम लगातार इसी भय में जीते थे कि हमारे सिर के ऊपर की छत कोई तूफान न उड़ा ले जाए या बरसात में उससे पानी न चूने लगे।’

उन्होंने अपने पिता के बारे में बताया है कि वे हमेशा एक लाठी साथ रखते थे। उनकी आवाज बेहद दमदार थी और जब वह चिल्लाते थे तो उसे एक मील दूर तक सुना जा सकता था। वह गरीब जरूर थे लेकिन साहसी थे।’ लालू प्रसाद के पास उनके पिता की फोटो नहीं होने का अफसोस है। अपनी गरीबी को बयान करते हुए उन्होंने लिखा है, ‘एक बार जब मैं बहुत छोटा था तब मुझे हाथ से सिली गई बनियान मिली थी। लेकिन मैं न तो रोजाना नहा पाता था और न ही नए कपड़े को धो पाता था, क्योंकि मेरे पास बदलने के लिए कोई और बनियान ही नहीं थी।’

अपने बड़े भाई की कहानी बताते हुए लालू प्रसाद ने लिखा है, ‘मेरे बड़े भाई गुलाब राय को एक अजीब बीमारी हो गई थी। वह अक्सर बीमार पड़ जाते और मर जाते थे। जैसे ही कफन खरीदकर घर लाया जाता और उनके शरीर को उससे ढ़ंककर उन्हें श्मशान ले जाया जाता वह अचानक जिंदा हो जाते। वह कई बार इसी तरह मर गए और जिंदा हो गए।’ अपनी पढ़ाई के दिनों के बारे में बताया, ‘मुझे मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त था। मैं स्कूल के सारे पाठ बहुत जल्दी कंठस्थ कर जाता था। कॉलेज के दिनों को याद करते हुए लालू ने कहा है कि- मेरी आवाज में दहाड़ थी।’
बीमारी से लाचार लालू को जल्दी पासपोर्ट नहीं मिल रहा
लालू प्रसाद की किडनी ठीक से काम नहीं कर रही। वह फोर्थ यानी कि लास्ट स्टेज में है। उन्हें कभी भी किडनी डायलिसिस की जरूरत पड़ सकती है। इसकी नौबत आए उससे पहले वे सिंगापुर के डॉक्टर से जाकर दिखाना चाहते हैं। डॉक्टरों ने राय दी तो वे किडनी ट्रांसप्लांट भी वहीं कराना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने पासपोर्ट लौटाने और देश से बाहर जाने की इजाजत सीबीआई कोर्ट से मांगी है। उनका पासपोर्ट सीबीआई ने अपने पास रख लिया है। वे डाइबिटीज, ब्लड प्रेशर, ह्रदय रोग, किडनी में स्टोन, तनाव, प्रोस्टेट का बढ़ना, यूरिक एसिड के बढ़ने आदि कई बीमारियों से भी ग्रस्त हैं। उन्हें नेफ्रोलॉजिस्ट, कार्डियोलॉजिस्ट और एंडोक्राइनोलॉजिस्ट की कई बार एक साथ जरूरत पड़ती है। इसके बावजूद वे विधान सभा की सीढ़ियां चढ़ते हुए या पटना एयरपोर्ट से कार तक पैदल आते हुए यह दिखाना चाहते हैं कि वो स्वस्थ हैं।

तस्वीर 2006 की है, जब लालू यादव IIM अहमदाबाद में लेक्चर देने गए थे। तब उन्होंने रेलवे में अपने काम को लेकर खूब वाहवाही बटोरी थी।
कई मामलों में उन्हें सशरीर कोर्ट में हाजिर होना पड़ रहा
लालू को कभी डोरंडा कोषागार मामले में तो कभी बांका, चाईबासा, दुमका आदि मामलों में कोर्ट आना-जाना पड़ता रहा। उन पर कई छोटे-छोटे मुकदमे भी हैं जिसमें एमपी-एमएलए कोर्ट भी जाना पड़ता है। आय से अधिक संपत्ति मामले की आंच उनके बच्चों तक पहुंच चुकी है। कभी टिकट देने के बदले जमीन लिखवाने का आरोप तो कभी रेल मंत्री रहते लेन-देने कर नौकरियां बांटने का आरोप। लालू प्रसाद की हालत यह है कि वे चुनाव नहीं लड़ सकते। हाल में उनके कई ठिकानों पर सीबीआई ने एक साथ छापेमारी की। पटना स्थिति राबड़ी देवी के आवास पर भी पूरे दिन छापेमारी चली। उनके समर्थकों का आक्रोश भी खूब दिखा।

तस्वीर 2006 की है। तत्कालीन रेल मंत्री लालू यादव दिल्ली में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल और व्हार्टन बिजनेस स्कूल के छात्रों से मिलते हुए। फोटो-सोनदीप शंकर
सत्ता से दूर उनकी पार्टी और कई सवाल
लालू प्रसाद की पार्टी विधान सभा में सबसे ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद सत्ता से बाहर है। अपने बेटे तेजस्वी यादव को उन्होंने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है, लेकिन परिवार के अंदर के अंतर्कलह को वे बखूबी समझते हैं। गंभीर बीमारी के बावजूद उन्होंने दो उपचुनावों में मंच पर जाकर भाषण दिया। हालांकि, दोनों जगह तारापुर और कुशेश्वर स्थान में उनकी पार्टी हार गई।
क्या लालू अब गेम चेंजर नहीं रह रह गए हैं? इस सवाल पर राजनीतिक पंडितों का मानना है कि लाल कृष्ण आडवाणी के राम रथ को रोकने वाले, उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजने वाले लालू, भाजपा के खिलाफ कोई आंदोलन खड़ा करने की ताकत नहीं रखते। वे और उनकी पार्टी चुनाव से पहले सत्ता में आना चाहती है, लेकिन सारे तिकड़म फेल हैं। जब हाल में सीबीआई की छापेमारी हुई तो उनके समर्थकों ने कहा कि तेजस्वी और नीतीश की नजदीकियों की वजह से यह छापेमारी हुई।
लालू प्रसाद के बड़े बेटे ने अलग संगठन बना लिया छात्र जनशक्ति परिषद और वे रोक नहीं पाए। परिवारवाद के आरोपों के बीच बेटी मीसा भारती को उन्होंने फिर से राज्यसभा भेज दिया। धनपतियों को राज्यसभा और विधान परिषद भेजने का आरोप उनकी समाजवादी छवि पर सवाल है। 1990 के बिहार और अब के बिहार में बड़ा अंतर है।
लेखक श्रीकांत ने अपनी किताब राज और समाज में लिखा है कि सत्ता मिलने के बाद लालू प्रसाद यादव ने सरकारी फाइलों में दिलचस्पी कम दिखलाई लेकिन तेजी से छा जाने की तरकीबें खूब ढूंढ़ी। इसी क्रम में चरवाहा स्कूलों की खोज की और गरीबों के बच्चों के बाल काटने और नहलवाने का सिलसिला शुरू किया।

लालू प्रसाद ने अपनी समस्याएं खुद विकसित की- प्रेम कुमार मणि
नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के साथ राजनीति करने वाले प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि लालू प्रसाद 74 के संघर्ष से आए नेता हैं। सामान्य परिवार से आए। ऐसा व्यक्ति पहली बार बिहार की राजनीति में एक नंबर की कुर्सी पर 1990 में आया। पूरे बिहार में दलित-पिछड़े समूह ने उनका स्वागत किया। उपेक्षितों की भावनाओं को साकार किया। नायक के रुप में उभरे। लेकिन उन्होंने अपनी समस्याएं खुद विकसित कर लीं। मुश्किल घड़ी में संघर्ष को कैसे देखें वे समझ नहीं पा रहे हैं। अब 1990 का दौर खत्म हो चुका है। 90 में जन्मा बच्चा 32 साल का हो गया है। नई पीढ़ी की राजनीति, मनोविज्ञान को 70 के दशक के लोग समझ नहीं रहे हैं। वे अस्वस्थ भी चल रहे हैं। मेरी कामना है कि वे स्वस्थ हों। मैं फिर कहूंगा कि अपने ऊपर की जिम्मेदारी का निर्वहन उन्होंने नहीं किया।
राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद उन्हें छोड़ देना चाहिए था। नई पीढ़ी के हाथ में पोलित ब्यूरो जैसी टीम होती। राजद या लालू प्रसाद की समस्याओं को उन्होंने स्वयं निर्मित की हैं। वे चाहेंगे तो निजात पा सकता है। लेकिन वे परिवारवाद में घिर गए हैं। बिहार की जनता को वे मूर्ख समझते हैं जबकि बिहार की जनता मूर्ख नहीं है। 2020 में उनकी पार्टी लालू की वजह से नहीं बल्कि तेजस्वी की वजह से अच्छी स्थिति में आई। उनको सद्बुद्धि मिले। समाजवादी विरासत की राजनीति आज पिछड़ रही है और वह लालू प्रसाद के परिवारवाद की वजह से है।

एक-एक कर जानिए लालू को किस मामले में कितनी सजा हुई है
- चारा घोटाला के चाईबासा कोषागार से 37.70 करोड़ रुपए की अवैध निकासी मामले में लालू प्रसाद यादव को 5 साल की सजा सुनाई गई थी। साथ ही उन पर 25 लाख का जुर्माना भी लगाया गया था।
- देवघर कोषागार से 89.27 लाख रुपए की अवैध निकासी के मामले में उन्हें 3.5 साल की सजा मिली थी। इस मामले में उन पर 10 लाख का जुर्माना लगाया गया था।
- चाईबासा कोषागार से 33.13 करोड़ की अवैध निकासी के एक और मामले में लालू प्रसाद को पांच साल की सजा और दस लाख का जुर्माना लगाया गया था।
- दुमका कोषागार से 3.13 करोड़ रुपए अवैध निकासी मामले में CBI कोर्ट ने इस मामले में सात-सात साल की सजा सुनाई है। इन दोनों मामलों में लालू प्रसाद पर 60 लाख का जुर्माना भी लगाया गया था।
- डोरंडा कोषागार से अवैध 139 करोड़ रुपए की निकासी के मामले में लालू प्रसाद यादव को पांच साल की सजा सुनाई गई है। वहीं 60 लाख का जुर्माना लगाया गया है।
- बांका कोषागार से अवैध 46 लाख रुपए निकासी मामले में अभी सुनवाई चल रही है। इसमें फैसला आना अभी बाकी है।
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