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ये तो बहुत अच्छी बात है कि कई दर्शक, भारतीय लेखकों के अंग्रेजी में लिखे हुए उपन्यास नहीं पढ़ते वरना लेखक रवि सुब्रमनियन की 2017 में लिखी किताब ‘द बेस्टसेलर शी रोट’ पढ़ लेते तो उस पर आधारित वेब सीरीज ‘बेस्टसेलर’ तो कभी न देखते. जितनी कमज़ोर किताब थी, वेब सीरीज उसकी काफी सारी कमियों पर पर्दा डालने में कामयाब हुई है और एक औसत से बेहतर बुक एडाप्टेशन के स्वरुप में अमेजॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई है. रवि मूलतः एक इन्वेस्टमेंट बैंकर हैं और कई अंतर्राष्ट्रीय बैंक्स में ऊंचे पदों पर काम कर चुके हैं. लेखन की तृष्णा जागी तो उन्होंने बैंकिंग इंडस्ट्री के इर्द गिर्द क्राइम, ड्रामा और सस्पेंस के साथ फायनांशियल थ्रिलर्स की रचना की. जैसा कि होता है, उनकी लेखनी में किताब दर किताब बेहतरी और परिपक्वता आती चली गयी. असली घटनाओं को लेकर वो बैंकिंग इंडस्ट्री के अंदर चल रहे स्कैम्स को आम पाठकों के लिए किताब की रचना करते हैं. उनकी सबसे कमजोर किताब ‘द बेस्ट सेलर शी रोट’ को लेकर वेब सीरीज बनाने का रिस्क कम लोग उठाते लेकिन निर्माता सिद्धार्थ पी मल्होत्रा और सपना मल्होत्रा ने लेखिका द्वय एल्थिया कौशल और अन्विता दत्त की कलमकारी पर भरोसा दिखाया और किताब में लिखे सभी बकवास फार्मूला से मुक्ति पाकर उसे एक बेहतरीन थ्रिलर में बदल लिया.

बेस्टेलर नाम की इस वेब सीरीज को दर्शक शायद उतना न देखें या पसंद न करें लेकिन ये किताब से स्क्रीन तक का सफर बहुत ही सफल लेखन की निशानी है. एपिसोड छोटे हैं, करीब 32-33 मिनट के और इसलिए 8 एपिसोड में इस कहानी को समेटा जा सका है, जबकि किताब पढ़ कर इस पर शॉर्ट फिल्म भी न बनायीं जाती. किताब में कुल जमा तीन प्रमुख किरदार हैं, एक नायक, एक नायिका और एक नायक की पत्नी. ये समझना आसान है कि कहानी में एक्स्ट्रा-मैरिटल सम्बन्ध का मसाला जरूर होगा. नायक कि पत्नी को अचानक इबोला हो जाता है रास्ते से भटका हुआ नायक, अपनी प्रेयसी (जो बेस्टसेलिंग राइटर बनने के लिए नायक का फायदा उठा रही है) से सम्बन्ध तोड़ कर अपनी बीवी के पास लौट जाना चाहता है. अपनी प्रेयसी की किताब के लॉन्च पर वो अपनी पत्नी से सबके सामने माफी मांग कर अपनी पत्नी के पास लौट जाता है और प्रेयसी अपने घावों को लेकर रह जाती है. इस कहानी पर तो स्वाभाविक तौर पर कोई वेब सीरीज नहीं बनाता लेकिन इस कहानी का आधार लेकर एक विस्तृत क्राइम, रिवेंज ड्रामा और सस्पेंस से भरी वेब सीरीज लिखी जाए तो जरूर देखने में मजा आ सकता है. वेब सीरीज की कहानी है तो बहुत सरल लेकिन उसके बारे में लिखने से पूरा कथानक समझ आ जायेगा इसलिए उसकी समीक्षा नहीं की जानी चाहिए.

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अर्जन बाजवा का करियर ग्राफ कभी भी ऊपर जाएगा इसमें संदेह ही है. उनके हिस्से अभी तक एक जैसे ही रोल आते रहे हैं या उन्हें ऐसे रोल मिलते हैं जिनमें उनके करने का कुछ खास होता नहीं है. इस वेब सीरीज में उनका किरदार तो अच्छा है लेकिन अर्जन ने किरदार में अपनी तरफ से कोई इज़ाफ़ा नहीं किया है. उनके पास स्कोप बहुत था, और फ्लैशबैक में जहां उनके किरदार की असली रंगत की वजह सामने आती है वो बहुत प्रभावशाली नहीं नज़र आये. अर्जन की पत्नी का रोल गौहर खान ने किया और बखूबी निभाया. ग्लैमर इंडस्ट्री में कई सालों से सक्रिय गौहर को अभिनय के मौके कम मिलते हैं लेकिन जब भी मिलते हैं वो उसका भरपूर फायदा उठा लेती हैं. यह रोल शायद उनके लिए एकदम सटीक था, उनके किरदार में कई जगह उतार चढ़ाव भी आते हैं और वो हर रंगत में प्रभावी रही हैं. श्रुति हसन का हिंदी वेब सीरीज में ये पहला रोल था, इसके पहले उन्होंने एक अंग्रेजी वेब सीरीज ‘ट्रेडस्टोन’ में भारतीय किरदार निभाया था. श्रुति वैसे तो बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी हैं लेकिन उनकी अभिनय क्षमता में उनके पिता कमल हासन का कोई योगदान नजर नहीं आता. उनका रोल एक जटिल रोल बन सकता था लेकिन श्रुति की सीमित अभिनय क्षमता की वजह से रोल का प्रभाव कमज़ोर ही रहा. मुंबई डायरीज में एक अच्छे रोल के बाद सत्यजीत दुबे ने इस वेब सीरीज में भी काफी अच्छा काम किया है. उनका किरदार भी कुछ इस तरह से रचा गया है कि दर्शकों को उस से नफरत और सहानुभूति एक साथ होती है. सबसे अच्छा रोल मिथुन चक्रवर्ती के हिस्से आया है और उन्होंने अपने अनुभव से इस रोल में कई आयाम जोड़े हैं. सोनाली कुलकर्णी का रोल छोटा है और कुछ विशेष करने को था नहीं. बाकी कलाकार सामान्य ही रहे हैं.

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जर्मन निर्देशिका डगमर कमलाह के सहायक के तौर पर अपना करियर शुरू करने वाले मुकुल अभ्यंकर ने हिंदी टेलीविज़न की करीब डेढ़ दशक बतौर निर्देशक तक सेवा की है और अब तक मिसिंग और डॉक्टर आय लव यू जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया है. बेस्टसेलर उनकी पहली वेब सीरीज है. जब पटकथा अच्छी लिखी हुई हो तो निर्देशक का काम काफी आसान हो जाता है. मुकुल ने बेस्टसेलर को ठीक ठीक निर्देशित कर लिया है हालाँकि मुकुल की कोई ख़ास छाप नज़र नहीं आती है. जाने माने सिनेमेटोग्राफर समीर आर्य की पारखी नज़र से कुछ शॉट्स बहुत ही खूबसूरत बने हैं. कहानी का ओपनिंग सीक्वेंस और मुंबई की स्काइलाइन के शॉट्स लाजवाब हैं, किसी हॉलीवुड फिल्म की याद दिलाते हैं. टेलीविज़न सीरीज सीआईडी के एडिटर सचिन्द्र वत्स से बेहतर काम की उम्मीद थी, थोड़ी निराशा हाथ लगी है. कहानी का सस्पेंस, दर्शक दूसरे या तीसरे एपिसोड में ही समझ जाते हैं. कहानी में सस्पेंस पैदा करने के लिए और फिर अंत में राज़ खोलने के लिए फ्लैशबैक का महत्व होता है लेकिन इसे प्राथमिकता नहीं देकर एडिटर ने नाइंसाफी की है.

कुल जमा ये कहा जा सकता है कि ये वेब सीरीज है तो बेहतर, लेकिन बेस्टसेलर नहीं हैं. रवि सुब्रमनियन की किताब जितनी बोरिंग और लचर थी, उसकी तुलना में ये वेब सीरीज काफी बेहतर बनी है. एकसाथ बिंज वॉचिंग करें या टुकड़ों टुकड़ों में देखें, किसी बेहतर कॉन्टेंट की अनुपलब्धता हो तो इसे देख सकते हैं.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :
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Tags: Amazon Prime Video, Film review

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