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Detail Review: ज़ी5 पर हाल ही में एक बेहतरीन वेब सीरीज रिलीज़ की गई है- ‘दुरंगा’. वैसे तो ये एक सफल कोरियन ड्रामा “फ्लावर ऑफ़ इविल” का भारतीय अडॉप्टेशन है, लेकिन लेखक चारुदत्त आचार्य और निर्देशक प्रदीप सरकार और ऐजाज़ खान ने इसका भारतीयकरण इतने नाज़ुक और संवेदनशील अंदाज़ में किया है कि लगता ही नहीं कि ये एक अडॉप्टेशन है. इस सीरीज को देखकर ओरिजिनल सीरीज देखने पर साफ़-साफ़ नज़र आता है कि एक बुद्धिमान लेखक, बेहतरीन निर्देशक और रचनात्मक रूप से जानकार प्रोड्यूसर (गोल्डी बहल) का टीम वर्क कितना सफल है.

न सिर्फ इसमें किरदारों की पृष्ठभूमि पर विशेष मेहनत की गयी है बल्कि सीरीज में होने वाली घटनाओं को भी भारतीय परिवेश में सजाया गया है ताकि वो एक सही अडॉप्टेशन बने, नक़ल नहीं. दुरंगा एक देखने लायक वेब सीरीज है और साइकोलॉजिकल थ्रिलर के शौकीनों को निश्चित ही पसंद आएगी. इरा जयकर पटेल (दृष्टि धामी) एक पुलिस अफसर है जो एक मर्डर केस की तहकीकात कर रही होती है जहां उसे कुछ ऐसे सबूत मिलते हैं जो इसे एक 17 साल पुराने सीरियल मर्डर केस से जोड़ते हैं. जांच के दौरान ही, उसी तर्ज़ पर एक और मर्डर हो जाता है. पुराने सीरियल मर्डर केस पर एक जर्नलिस्ट विकास सरोदे (अभिजीत खांडकेकर) ने एक वीडियो ब्लॉग बनाया होता है इसलिए उसे बुलाया जाता है. जैसे-जैसे सबूत मिलते जाते हैं, शक की सुई इरा के पति समित पटेल (गुलशन देवैया) की और मुड़ जाती है.

क्या समित सच में वही है जो वो नज़र आता है या फिर वो कोई ऐसा शख्स है जो पुराने सीरियल मर्डर्स और नए मर्डर्स से जुड़ा हुआ है? क्या जर्नलिस्ट विकास का इन मर्डर्स से कोई कनेक्शन है? क्या समित के माता पिता राजेश खट्टर और दिव्या सेठ का इस केस से कोई ताल्लुक है? या फिर कोई तीसरा ही है जो इस पूरे खेल का असली खिलाडी है और वो पुलिस के शक के घेरे में कभी आता ही नहीं है? 9 एपिसोड की ये अच्छी रफ़्तार और हैरतअंगेज़ पटकथा वाली इस सीरीज में इस पूरे प्रकरण की असलियत सामने लाने की कोशिश की गयी है. सीरीज एक ऐसे मोड़ पर आकर रुकी है जहां दर्शकों को काफी कुछ समझ आ चुका है लेकिन बस क़त्ल की वजह समझ नहीं आ रही है. इसका सीजन 2 जल्दी आएगा लेकिन पहला सीजन कुछ अनुत्तरित प्रश्नों को छोड़ कर ख़त्म हुआ है.

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ये सीरीज लेखक चारुदत्त आचार्य के नाम है. चारुदत्त कई वर्षों से हिंदी फिल्मों में बतौर पटकथा लेखक सक्रिय हैं लेकिन पिछले कुछ अर्से में उनकी पहचान बनना शुरू हुई है. समसामयिक विषयों पर प्रतिक्रिया रखने वाले चारुदत्त ने रवीना टंडन वाली वेब सीरीज “आरण्यक” भी लिखी थी. रिया चक्रवर्ती की एक असफल किन्तु मनोरंजक फिल्म सोनाली केबल के निर्देशक भी चारुदत्त ही थे. उन्होंने इस कोरियन वेब सीरीज को पहले आत्मसात किया और फिर मूल कहानी का परत दर परत भारतीयकरण किया है.

गांव की पृष्ठभूमि को बड़े ही जतन से शहर की कहानी में पिरोया गया है. किसी एक किरदार को प्राथमिकता नहीं दी गयी है. सभी को अपने अपने हिस्से के रोल से कहानी को आगे बढ़ाने के लिए रचा गया है. अभिषेक बाणे और उसके पिता बाला बाणे (ज़ाकिर खान) के बीच कोई बड़ा या महत्वपूर्ण दृश्य नहीं है फिर भी अभिषेक बाणे की पर्सनालिटी पर उसके पिता का प्रभाव पूरी सीरीज में दीखता रहता है. अभिषेक की बहन प्राची (बरखा सेनगुप्ता) की पूरी पर्सनालिटी एक ही सीन में, एक ही डायलॉग में दिखा दी गयी है. लेखक बेहतरीन हो तो ऐसा प्रभाव देखने को मिलता रहता है.

शुरू के कुछ एपिसोड प्रदीप सरकार ने निर्देशित किये हैं. ये टेलीविज़न का फार्मूला है. टेलीविज़न के धारावाहिक को शुरू से लोकप्रिय बनाने के लिए किसी अनुभवी और सफल निर्देशक से शुरूआती एपिसोड निर्देशित कराये जाते हैं और जब धारावाहिक सफल हो जाता है तो किसी भी निर्देशक से बचे हुए एपिसोड बनवा लिए जाते हैं. हालांकि इस वेब सीरीज में कभी ऐसा नज़र नहीं आता कि ये एपिसोड प्रदीप ने निर्देशित किया है और ये वाला ऐजाज़ खान ने. इसकी दो वजहें हैं. ऐजाज़ खान एक मंजे हुए निर्देशक हैं और प्रदीप सरकार की ही तरह एड फिल्मों में काफी माना हुआ नाम हैं. दूसरा ऐजाज़ एक ऐसी घराने से ताल्लुक रखते हैं जहां इस्मत चुगताई, सिनेमेटोग्राफर नरीमन ईरानी और अनवर सिराज उनके रिश्तेदार हैं और ऐजाज़ के पिता भी महान फिल्म मदर इंडिया में निर्देशक मेहबूब खान के सहायक के तौर पर काम कर चुके हैं. ऐजाज़ की फिल्में द वाइट एलीफैंट, बांके की क्रेजी बारात और हामिद को दर्शकों और फिल्म फेस्टिवल्स ने बहुत पसंद किया.

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अभिनय की चर्चा करना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि गुलशन इस वेब सीरीज में एकदम सटीक कास्ट हैं. गुलशन कई बार एक साइकोपैथ की तरह नज़र आते हैं और उनकी नकली हंसीं भी बड़ी रहस्यमयी और खतरनाक है. इस सीरीज में भी उनकी अभिनय की रेंज देखने को मिलेगी. अपनी बेटी के साथ उनके रिश्ते से लेकर जब वो अपनी बहन को कहते हैं कि वो अपनी पत्नी से प्यार नहीं करते, वो अत्यंत ही विश्वसनीय नज़र आते हैं. दृष्टि को बहुत लम्बे समय के बाद परदे पर देखा है. पिछले साल डिज्नी+ हॉटस्टार पर रिलीज़ वेब सीरीज द एम्पायर में मुग़ल सम्राट बाबर की बड़ी बहन ख़ानज़दा बेग़म के किरदार में नज़र आयी थीं. इस सीरीज में उनका काम अपेक्षाकृत कम लगता है लेकिन सबसे ज़्यादा इमोशनल ग्राफ इन्हीं के किरदार में हैं.

अपने पति पर शक करने की वजह से उनके जीवन के उतार चढाव उनके चेहरे पर नज़र आते हैं. ज़ाकिर खान के हिस्से एक भी डायलॉग नहीं हैं लेकिन वो सीरीज में छाये हुए हैं. अभिजीत खांडकेकर मराठी धारावाहिकों में बड़े लोकप्रिय हैं और “माज़्या नवऱ्या ची बाइको” धारावाहिक में गुरुनाथ शुभकर के रोल में वे अत्यंत प्रसिद्द हुए हैं. उनका रोल महत्वपूर्ण है लेकिन वो थोड़ी ओवर एक्टिंग करते हैं, शायद टेलीविज़न धारवाहिकों की आदत की वजह से. बाकी कलाकार जैसे राजेश खट्टर, दिव्या सेठ, बरखा सेनगुप्ता, निवेदिता अशोक सराफ इत्यादि के रोल छोटे हैं. सरप्राइज के तौर पर अमित साध भी हैं जो संभवतः अगले सीजन में बड़ी भूमिका निभाते नज़र आएंगे.

दुरंगा का अर्थ होता है ऐसा शख्स जो दोहरी ज़िदगी जी रहा हो. साइकोलॉजिकल थ्रिलर को पसंद करने वाले इसे ज़रूर पसंद करेंगे. इस सीरीज को देखना चाहिए क्योंकि जब जब लगता है कि केस सुलझ गया, तब तब मामला और उलझ जाता है और दर्शक जल्द से जल्द केस को सुलझा लेना चाहते हैं. ऐसा भारतीय वेब सीरीज में कम ही होता है.

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डिटेल्ड रेटिंग

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