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हाइलाइट्स

रोधक्षमता उस क्षमता को कहते हैं जो शरीर को रोगों से बचाव की ताकत देती है यानि रोगों के खिलाफ लड़ने के लिए एंटीबॉडीज तैयार करती है
कुछ लोगों में कुछ रोगों से लड़ने की ताकत पैदा होने से होती है तो कुछ लोग ये ताकत वैक्सीन या खानपान या दवाओं के जरिए हासिल करते हैं
बहुत सी बीमारियां जो कभी दुनिया में महामारियां बनकर उभरीं उनमें से ज्यादातर से बचाव के लिए बन चुकी हैं वैक्सीन

चीन और दुनिया के कई देशों में जबकि कोरोना फिर बढ़ने लगा है, ऐसे में हर कोई ये चाह रहा है कि वो कोरोना को लेकर इम्युनिटी डेवलप कर ले. ये इम्युनिटी वैक्सीन तो हमें देती ही है. साथ ही हमारे शरीर में भी रोगों से लड़ने की गजब की प्रतिरोधक क्षमता होती है, जो शरीर खुद विकसित कर लेता है. ये क्षमता क्या होती है, कैसे शरीर इसको विकसित करता है, इसे जानना चाहिए.

शरीर की बीमारी के कीटाणुओं (बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ) के खिलाफ लड़ने और बीमारी के बाद ठीक होने की प्राकृतिक क्षमता को प्रतिरोध क्षमता या रोध क्षमता कहते हैं. जिस तरह किसी व्यक्ति में बीमारी के प्रतिरोध क्षमता होती है, उसे वह बीमारी नहीं लगती, जबकि दूसरो को वह बीमारी लग सकती है.

सवाल – आमतौर पर शरीर बीमारियों से कैसे लड़ता है?
– माइक्रोब (microb) और पैरासाइट (Parasite) आदमियों में कई बीमारियां फैलाते हैं. बीमारी फैलाने वाले कीटाणु एक प्रकार का जीव विष शरीर में छोड़ते हैं, जो बहुत जटिल होता है. सामान्य तौर पर माइक्रोबों से बचने की शरीर में प्राकृतिक शक्ति होती है. पहले तो वो इन्हें अंदर घुसने ही नहीं देती. दूसरे श्वेत रक्त कण इन माइक्रोबों को मार देते हैं. लेकिन अगर इनकी संख्या श्वेत रक्त कणों से ज्यादा हो जाती है तो ये कीटाणु रूपी माइक्रोब शरीर के लिए घातक हो जाते हैं, तब हमारे श्वेत रूधीर कण इनसे हमारी रक्षा नहीं कर पाते.

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इम्युनिटी भी दो तरह की होती है – विशेष और सामान्य. विशेष रोधक्षमता को अर्जित रोधक्षमता भी कहते हैं (प्रतीकात्मक तस्वीर- news18)

सवाल – एंटीबॉडीज क्या होती हैं कैसे विषाणुओं से लड़ती हैं?
– बहुत से व्यक्तियों में रोधक्षमता प्रणालियां बहुत ताकतवर होती हैं. मनुष्य के खून में कुछ एंटीबॉडीज होती हैं, जो रोग के कीटाणुओं को नष्ट कर देती है. एक प्रकार की एंटीबॉडी एक ही प्रकार के रोग से जीवाणु से लड़ सकती है.

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सवाल – क्या हर एंडीबॉडीज अलग तरह की होती हैं?
– हर एंटीबॉडी में अलग अलग गुण होते हैं. कुछ एंटीबॉडीज माइक्रोब द्वारा छोड़े गए विषाणुओं या विष के प्रभाव को खत्म कर देते हैं. इनमें से कुछ माइक्रोबों को एक जगह इकट्ठा कर देते हैं, जिससे श्वेत रक्त कण उन पर आसान से हमला कर सकें. कुछ और एंटीब़ॉडीज वैक्टीरिया को गला कर मार देती है.

सवाल – क्या होती है इम्युनिटी, ये कैसे मिलती है?
– कभी कभी रक्त प्लाज्मा में कुछ मात्रा में एंटीबॉडीज को स्थायी तौर पर छोड़ दिया जाता है, इससे शऱीर भविष्य में वायरस या बैक्टीरिया द्वारा होने वाले हमले से बचाव करता है. लोगों को इन बीमारियों के लिए प्रतिरोधक क्षमता देता है. ऐसे लोग तब प्रतिरोधी क्षमता हासिल कर चुके लोग कहलाते हैं. इस रोधक क्षमता को इम्युनिटी भी कहते हैं.

सवाल – सामान्य तौर पर इम्युनिटी कितने तरह की होती हैं?
– इम्युनिटी भी दो तरह की होती है – विशेष और सामान्य. विशेष रोधक्षमता को अर्जित रोधक्षमता भी कहते हैं, जो कोविड से बचाव के लिए हम वैक्सीन के जरिए हासिल करते हैं. इनकी एक मियाद होती है, उस समय ये अर्जित इम्युनिटी हमें बचाती है. ये किसी तय बीमारी से हमें बचाती है. कुछ वैक्सीन जीवनपर्यंत हमारे शरीर के अंदर उस बीमारी की इम्युनिटी बना देती हैं तो कुछ वैक्सीन तय समय तक ही प्रभावी होती हैं.
सामान्य रोधक्षमता सामान्य तौर पर लोगों की रक्षा बीमारियों से करती है. ये या तो माइक्रोबों को मारती है या फिर उनकी बढोतरी को रोकती है.

सवाल – क्या बचपन से ही हममें कुछ इम्युनिटी खुद ब खुद आ जाती है?
– कुछ लोगों में बचपन से ही कुछ बीमारियों से लड़ने की इम्युनिटी होती है. ऐसा माना जाता है कि उनमें पैदाइशी तौर पर नेचुरली ये इम्युनिटी विकसित हो गई है. इस तरह के लोग कई तरह की महामारियों का शिकार नहीं होते.

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सवाल – क्या ये सही है कि एक बार अगर एक बीमारी हो गई तो दोबारा नहीं होगी?
– विज्ञान कहता है सामान्य तौर पर एक बार जो बीमारी आदमी को हो जाती है, ज्यादातर जीवन में दोबारा नहीं होती. हालांकि इसके अपवाद भी हैं, जो कोरोना में देखने में आए. हालांकि ये भी होता है कि एक बार जो बीमारी हो जाती है, वो जब दूसरी बार होती है तो उसकी तीव्रता शरीर पर उतनी नजर नहीं आती, शरीर उनका मुकाबला भी पहले से बेहतर तरीके से कर लेता है. चेचक एक बार जिसको हो जाता है, वो दोबारा नहीं होता, क्योंकि शऱीर उनके खिलाफ इतनी एंटीबॉडीज बना लेता है कि जिंदगीभर उससे रक्षा कर सकता है.

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कोई भी व्यक्ति एंटीजेन के इलाज से अपने अंदर रोधक्षमता बढ़ा सकता है. इसे आर्टिफिशियल इम्युनिटी कहते हैं. वही काम वैक्सीन करती है (image-canva)

सवाल – कोई वैक्सीन कैसे काम करती है?
– कोई भी व्यक्ति एंटीजेन के इलाज से अपने अंदर रोधक्षमता बढ़ा सकता है. इसे आर्टिफिशियल इम्युनिटी कहते हैं. आमतौर पर शरीर को दी जाने वाली वैक्सीन में उसी बीमारी के कमजोर वायरस शरीर के अंदर पहुंचाए जाते हैं ताकि समय आने पर वो उस बीमारी के वायरस का मुकाबला करने में सक्षम रहें.

सवाल – क्या वैक्सीन उसी वायरस से ही तैयार की जाती है?
– इसे चेचक के  वैक्सीन के जरिए समझते हैं. चेचक की वैक्सीन एडवर्ड जेनर ने तैयार की थी. इसको बछड़े या घोड़े के खून में चेचक का वायरस पहुंचाकर तैयार किया जाता है. बछड़े या घोड़े के खून में जाकर ये कमजोर पड़ जाता है. ये कमजोर वायरस टीके के रूप में इकट्ठा कर लिया जाता है. फिर इस टीके को मानव शरीर में पहुंचाा जाता है.  आमतौर पर वैक्सीन वायरस को कमजोर, निष्क्रिय या मृत करके ही उससे बनाई जाती हैं.

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सवाल – वैक्सीन लगवाने पर इम्युनिटी कैसे मिलती है?
– यही वजह है कि जब हम कोई वैक्सीन लगवाते हैं तो इससे कमजोर वायरस  के शरीर में प्रवेश होने के चलते हमें एक या दो दिन बुखार जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है. क्योंकि ये वायरस कमजोर होता है लिहाजा जब शऱीर पर उस बीमारी का वायरस शरीर में पहुंचता तो शरीर में उसकी मौजूदगी एंटीबॉडीज बनाती है. जो चेचक के खिलाफ कई सालों तक रोधक्षमता का काम करती है.

सवाल – कोरोना के खिलाफ वैक्सीन कितनी असरदार है?
– अब तमाम बीमारियों के लिए ऐसी वैक्सीन बन चुकी हैं, जो कभी महामारियां थीं, जिनसे लाखों करोड़ों लोगों की मौत हुई लेकिन अब उनकी वैक्सीन लगने के बाद वो बीमारियां घातक नहीं रह गई हैं. फिलहाल कोरोना पर भी जो वैक्सीन आई है, वो अभी कुछ तक के लिए ही एंटीबॉडीज की क्षमता देती है लेकिन उम्मीद है कि जो रिसर्च चल रही हैं, उससे हमें ऐसी वैक्सीन जरूर मिल जाएगी जो जीवनपर्यंत इस रोग से लड़ने की क्षमता प्रदान करेगी.

सवाल – हर्ड इम्युनिटी क्या होती है, इसका जिक्र कोरोना के दौर में क्यों खूब हुआ?
– वैसे अब एक तीसरी इम्युनिटी की बात भी कोरोना के दौर मे खूब हुई है, जिसे हर्ड इम्युनिटी कहते हैं. हर्ड इम्युनिटी, संक्रामक बीमारियों के खिलाफ अप्रत्यक्ष रूप से बचाव होता है. यह तब होता है जब आबादी या लोगों का समूह या तो वैक्सीन लगने पर या फिर संक्रमण से उबरने के बाद उसके खिलाफ इम्युनिटी विकसित कर लेती है. समूह की इस सामूहिक इम्युनिटी को ही हर्ड इम्युनिटी कहते हैं.

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