explainer e0a495e0a58de0a4afe0a4be e0a4b9e0a588 e0a4b5e0a58b e0a4a8e0a4bee0a4b0e0a58de0a495e0a58b e0a49fe0a587e0a4b8e0a58de0a49f e0a49c

हाइलाइट्स

इसमें पूछताछ करने वाले को सोडियम पेंटोथाल का इंजेक्शन दिया जाता है
ये इंजेक्शन बहुत तेजी से असर करता है लेकिन इसकी अवधि ज्यादा लंबी नहीं होती
लेकिन इस टेस्ट के लिए हमेशा अदालत की मंजूरी जरूरी होती है

दिल्ली पुलिस श्रृद्धा हत्याकांड में हत्यारोपी आफताब अमीन पूनावाला का नार्को टेस्ट कराना चाहती है. उसे लग रहा है कि वो उससे कुछ छिपा रहा है. हालांकि अभी पक्का नहीं है कि पुलिस को इसके लिए अदालत से अनुमति मिलेगी या नहीं. आमतौर पर अभियुक्त इसके लिए कोर्ट में जाकर इसकी मंजूरी नहीं देने की अर्जी लगा देता है.

ये टेस्ट क्या होता है, इसे क्यों लाई डिटेक्टर टेस्ट के नाम से भी जाना जाता है.इसमें सोडियम पेंटोथैल का इंजेक्शन दिया जाता है और फिर ये इंजेक्शन का केमिकल शरीर के अंदर तेजी से असर दिखाता है.

सवाल – क्या हैं नारको एनालिसिस टेस्ट?
इस परीक्षण के ज़रिए किसी व्यक्ति का झूठ पकड़ने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल होता है. कार्डियो कफ को संवेदनशील इलेक्ट्रोड्स भी कहा जाता है. इसे आरोपी के शरीर के कई पॉइंट्स पर लगाया जाता है जिससे उसका ब्लड प्रेशर, सांस या नब्ज़ की गति, खून के प्रवाह और पसीने की ग्रंथियों में बदलाव को जांचा जा सकता है. इस तकनीक का मकसद ये जांचना होता है कि आरोपी सच बोल रहा है या झूठ या वह सवाल का जवाब नहीं जानता.

सवाल – किस केमिकल का इस्तेमाल इस टेस्ट में होता है?
– नारको​ एनालिसि​स टेस्ट में केमिकल तकनीक का इस्तेमाल होता है. इसमें आरोपी को सोडियम पेंटोथैल ड्रग का एक इंजेक्शन दिया जाता है ताकि वह सम्मोहन ​जैसी स्थिति में पहुंच जाए और उसकी कल्पनाशीलता तकरीबन रुक जाए. इस स्थिति में चूंकि वह कल्पना नहीं कर पाता इसलिए माना जाता है कि वह सच बोल रहा है. इस ड्रग को ‘ट्रुथ सीरम’ भी कहा जाता है, जो सर्जरी के कुछ मामलों में एनिस्थीसिया के तौर पर भी इस्तेमाल होती है.

READ More...  ट्विटर बैन से बौखलाए ट्रम्प ने कहा-मुझे और मेरे समर्थकों को चुप नहीं कराया जा सकता

News18 Hindi

क्या होती है नार्को टेस्ट की प्रक्रिया. हालांकि दुनियाभर में इसकी आलोचना भी होती रही है. (न्यूज18)

सवाल – क्या है इस तकनीक का इतिहास?
– 19वीं सदी में एक इतालवी क्रिमिनोलॉजिस्ट सीज़ार लोम्बोर्सो ने पूछताछ के दौरान अपराधी के ब्लड प्रेशर में आने वाले अंतर को जांचने वाली एक मशीन बनाई थी. इसी तरह की तकनीक पर काम होता रहा और 1914 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम मार्स्ट्रन ने ऐसी ही लेकिन कुछ एडवांस मशीन बनाई और उसके बाद कैलिफोर्निया पुलिस के जॉन लार्सन ने 1921 में.

सवाल – क्यों है इस टेस्ट को लेकर विवाद?
पहली बात तो ये कि इन टेस्ट्स को लेकर जो परिणाम सामने आए हैं, उनमें 100 फीसदी सटीक नतीजे नहीं मिले हैं इसलिए इनकी विश्वसनीयता पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जाता.

सवाल – भारत में होता है इन परीक्षणों का इस्तेमाल?
– इन परीक्षणों को भारत में केस सुलझाने में मदद के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसके लिए कानूनी प्रावधान हैं और बगैर मंज़ूरियों के ये टेस्ट नहीं किए जा सकते. हाल में उत्तर प्रदेश के उन्नाव रेप मामले में ये परीक्षण किए गए थे. इससे पहले अपनी बेटी शीना बोरा की हत्या के मामले में आरोपी इंद्राणी मुखर्जी के मामले में मई 2017 में ये टेस्ट किए गए थे.

सवाल – क्या जिस शख्स का नार्को टेस्ट करना हो, उसकी इजाजत लेनी जरूरी होती है?
– इस प्रकार के टेस्ट को करने के लिए कोर्ट की परमिशन की जरूरत होती है. बिना कोर्ट की अनुमति कोई भी इस प्रकार का टेस्ट नहीं कर सकता है. इसके साथ साथ इस टास्क को करने के लिए उस व्यक्ति की भी इजाजत लेनी होती है जिस व्यक्ति के साथ ये टेस्ट किया जा रहा हो.

READ More...  राजस्थान और पंजाब में बढ़ी पराली जलाने की घटना, केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने बोला हमला

सवाल – नार्को टेस्ट में शरीर किस प्रभाव में होता है?
– नार्को टेस्ट करते समय अभियुक्त को जब सोडियम पेंटोथॉल दिया जाता है तो उसको इसका नशा होने लगता है. वह ऐसी ऐसी अवस्था में चला जाता है, जहां उसके लिए झूठ बोलना मुश्किल हो जाता है. तब वह पूछे गए सवालों का सच जवाब देता है.

सवाल – क्या पोलिग्राफिक टेस्ट भी इसी की तरह होता है?
– नहीं पोलिग्राफिक टेस्ट मनोवैज्ञानिकक रिस्पांस के आधार पर होता है, ये तब होता है जब ये लगने लगता है कि ये शख्स झूठ बोल रहा है या उसकी बातें असल तथ्यों से अलग हैं. इसमें कोई इंजेक्शन नहीं दिया जाता. ना ही शरीर के साथ कोई उपकरण लगाकर पल्स रेट, रक्त चाप और दूसरी हरकतों को रिकॉर्ड करते हैं.

Tags: Cruel murder, Murder case, Murder In Delhi, Narcotics, Polygraph Test

Article Credite: Original Source(, All rights reserve)