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हाइलाइट्स

देशभर की निचली अदालतों में मौत की सजा के फैसले बढ़े
मृत्युदंड की सजा सुनाने से पहले होना चाहिए सभी बातों पर गौर
क्यों सु्प्रीमकोर्ट ने इस मामले को बड़ी पीठ को सौंपा

आजकल देशभर में निचली अदालतों में फांसी की सजा में काफी बढोतरी हुई है. कई जगह अदालतें दोषसिद्धि के दिन ही मौत की सजा सुना देती हैं. आमतौर पर यही होता है. लेकिन देश में एक दो राज्यों में इस परंपरा को तोड़ते हुए दोषसिद्धि के दिन के बाद समय लेकर सजा सुनाई है. सुप्रीम कोर्ट ने इन मृत्युदंड की सजाओं को लेकर खुद संज्ञान लिया. अब इस पर सुप्रीम कोर्ट इस सजा को लेकर गाइडलाइंस बनाना चाहता है ताकि मृत्युदंड की सजा पाए शख्स को बचाव का और मौका दिया जा सका.

गुजरात की निचली अदालतों में फांसी की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई है. राज्य की अदालतों के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, इस साल अगस्त तक 50 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई है, जबकि 2006 और 2021 के बीच 46 लोगों को फांसी की सजा दी गई,

मध्य प्रदेश में एक नीति है अगर वहां सरकारी वकील का प्रोमोशन इस बात निर्भर करता है कि उसने कितनी मौत की सजा दिलवाई है. मध्य प्रदेश में मौत की सजा पाया शख्स सही तरीके से कानून मदद भी नहीं ले पाता.

इसी से संंबंधित एक इरफान नाम के शख्स की याचिका जब सुप्रीम कोर्ट में पहुंची तो देश की शीर्ष अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि मौत की सजा को लेकर अब देश में एक स्पष्ट गाइडलाइंस की जरूरत है ताकि इसमें दोष साबित होने के बाद भी दोषी को बचाव का अवसर मिले और वह अपनी सजा बदलवा सके.

इस मामले को अब सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय सबसे बड़ी पीठ को सौंप दिया गया है, जो इसकी गाइडलाइंस तय करेगी. उम्मीद है ये गाइडलाइंस फिर देशभर की अदालतों के लिए एक नजीर का काम कर सकेंगी.

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सवाल – क्यों सौंपा गया ये मामला बड़ी पीठ को?
– सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि मृत्युदंड पाए शख्स को पूरा मौका सजा कम करने के लिए मिलना चाहिए. कई बार कई ऐसी बातें होती हैं जो अदालत तक नहीं पहुंच पाती. कई बार अदालतें इस मामले को हर कसौटी पर नहीं कसतीं. अब ऐसी सजा पर हर उस पक्ष को सुना जाना चाहिए ताकि अदालत इस बात पर खुद सही तरीके से विचार कर सके कि क्या वाकई मृत्युदंड की जरूरत है या सजा को बदला भी जा सकता है.
क्या इस न्यायप्रक्रिया में और सुधार होगा
– दरअसल सुप्रीम कोर्ट की मंशा तो यही है. जिस तरह के फैसले देश में पिछले कुछ दिनों में मृत्युदंड के हुए हैं, उसमें सुप्रीम कोर्ट को लगता है न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है. इसलिए उसने इसे संज्ञान में भी लिया. सजा सुनाते समय जिस तरह आकलन होता है, उस पर शीर्ष कोर्ट बदलाव चाहता है.

सवाल – क्या दोषसिद्धि के बाद उसी दिन मृत्यु की सजा सुनानी जरूरी है?
– ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट इस धारणा को भी बदलना चाहता है. आमतौर पर मौत के आरोपी पर जिस दिन आरोप साबित होता है, उसी दिन अदालत बगैर देर किए उसे मौत की सजा सुना देती हैं. हालांकि तमिलनाडु में एक मामले में इसे बदला गया है. सुप्रीम कोर्ट भी यही चाहता है कि आरोप साबित होने के बाद भी अदालतों को सजा सुनाने में कुछ समय लेना चाहिए.

सवाल – बड़ी पीठ में इसे कैसे देखा जाएगा?
– बड़ी पीठ इस मामले को ज्यादा स्पष्टता और समान दृष्टिकोण से देखेगी. जब 05 जजों की पीठ में इस पर बहस और विचार होगा तो बड़े फलक पर इसे लेकर नई बातें भी उभरेंगी. नई व्यवस्था बन सकेगी. चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने इसे बड़ी पीठ को रेफर करते हुए ये भी गौर किया कि मौत की सजा उसी दिन सुनाने और दोषी की बात और सुनने को लेकर भी परस्पर विरोधी निर्णय हैं.

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सवाल – पीठ क्या होती है?
– सुप्रीम कोर्ट में नियमित सुनवाई के लेकर खास मामलों को लेकर पीठ होती है, जिसमें जजों की संख्या अलग अलग होती है. आमतौर पर अधिकांश मामलों की सुनवाई दो न्यायाधीशों की बेंच करती है, जिसे डिविजन बेंच कहा जाता है. कभी कभी तीन जजों की पीठ भी फैसले करती है. वो थोड़ा और महत्वपूर्ण मामले होते हैं

सवाल – संविधान पीठ या सबसे बड़ी पीठ क्या होती है?
– संविधान पीठ सर्वोच्च न्यायालय की सबसे बड़ी पीठ होती है. इसे सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, इसमें 05 या अधिक न्यायाधीश शामिल होते हैं. हालांकि इन पीठों का गठन व्यवस्था अलग अलग तरीके से होती है जिसे सुप्रीम कोर्ट में लिस्टिंग करना भी कहते हैं.

सवाल – क्या है सुप्रीम कोर्ट में केसों की सुनवाई की नई लिस्टिंग प्रणाली?
– नई लिस्टिंग प्रणाली के अनुसार, मंगलवार, बुधवार और बृहस्पतिवार को नियमित सुनवाई के मामलों को भोजनावकाश से पहले लिया जाता है और विविध मामलों को लंच के बाद सूचीबद्ध किया जाता है. नए चीफ जस्टिस का कहना है कि ऐसा करने से ज्यादा केसों पर सुनवाई हो पा रही है और ज्यादा फैसले हो रहे हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट की ही एक पीठ ने कहा कि मामलों को सूचीबद्ध (लिस्टिंग) करने की नई प्रणाली के कारण उन्हें विविध मामलों की सुनवाई के लिए कम समय मिलता है.

सवाल – सुप्रीम कोर्ट में बेंच प्रणाली कैसे शुरू हुई?
– भारत के संविधान द्वारा उच्चतम न्यायालय के लिए मूल रूप से दी गयी व्यवस्था में एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई थी. इस संख्या को बढ़ाने का दायित्व संसद पर छोड़ा गया था. शुरुआती सालों में न्यायालय के सामने पेश मामलों को सुनने के लिए सुप्रीम कोर्ट की पूरी पीठ एक साथ बैठा करती थी.
हालांकि न्यायालय के काम में जब बढोतरी होने लगी तो लंबित मामले बढ़ने लगे. तब भारतीय संसद द्वारा न्यायाधीशों की मूल संख्या को 08 से बढ़ाकर 1956 में ग्यारह (11), 1960 में चौदह (14), 1978 में अठारह (18), 1986 में छब्बीस (26), 2008 में इकत्तीस (31) और 2019 में चौंतीस (34) तक कर दी गई.
न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि के बाद अब कई सालों से वो 02-03 न्यायपीठों (जिन्हें ‘खंडपीठ’ कहा जाता है) के रूप में सुनवाई करते हैं

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सवाल – संवैधानिक मामलों में पीठ कितनी बड़ी होती है?
– संवैधानिक मामले और ऐसे मामले जिनमें विधि के मौलिक प्रश्नों की व्याख्या देनी हो. उसकी सुनवाई 05 या इससे अधिक न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जाती है, जिसे संवैधानिक पीठ कहा जाता है.

Tags: Capital punishment, Death penalty, Death sentence, Supreme Court, Supreme court of india

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