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वेंकटेश प्रभु कस्तूरी राजा नाम सुनकर अजीब लगता है, ऐसा लगता है कि दक्षिण भारत का कोई पंडित, शास्त्रार्थ करने के लिए उद्यत है. ये नाम सुनकर ऐसा कभी लगता ही नहीं है कि ये एक ऐसे फिल्म कलाकार का असली नाम है जो अपने किसी भी रोल में सबसे ज़्यादा विश्वसनीय नज़र आता है. लगता है कि ये रोल लिखा ही उसको और उसकी पर्सनालिटी को देख कर गया है. या यूं कहें कि पहले इस कलाकार को स्टडी किया गया, वो क्या क्या कर सकता है ये देखा गया और फिर फिल्म लिखी गयी, लेकिन ये बात उनकी हर फिल्म में उनके द्वारा निभाए हर किरदार पर लागू होती है. ये शख्स हैं तमिल सुपर स्टार धनुष.

फिल्म: कर्णन
भाषा: तमिल
ड्यूरेशन: 159 मिनट्स
ओटीटी: अमेजन प्राइम वीडियो

हिंदी फिल्मों में हीरो गोरा चिट्टा, लम्बा, तगड़ा, बॉडी बिल्डर और सम्पूर्ण 16 कलाओं में निपुण होता है. धनुष ये बात को तार तार कर देते हैं. धनुष का रंग गोरा नहीं है. वो बॉडी बिल्डर भी नहीं हैं. 5 फुट 5-6 इंच की लम्बाई है. चेहरा साधारण सा है. बल्कि शकल से कई बार इतने सिंपल लगते हैं कि कोई दूसरी बार देखे भी नहीं. मगर धनुष की काया का कोई काम नहीं हैं, धनुष का अभिनय एक ऐसी काया है जो दर्शकों को महसूस होती है. धनुष का अभिनय आशा भोसले की आवाज़ है जिसे भौतिक रूप से महसूस किया जा सकता हो. हाल ही में अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज़ “कर्णन” फिल्म देखने से एहसास होता है कि ये शख्स किसी भी भूमिका में कैसे फिट हो जाता है.

कर्णन, दक्षिण भारत में व्याप्त जाति प्रथा पर प्रहार करती एक खूंखार फिल्म है. ऊंची जाति के लोगों ने अपने गांव के लिए एक बस स्टॉप बना लिया है जहां बस रूकती है. कर्णन (धनुष) पास के गांव में रहने वाला एक युवक है जो पढ़ लिख कर पुलिस या आर्मी में नौकरी करना चाहता है. उसका गांव पिछड़ी जाति वालों का गांव है इसलिए वहां बस नहीं रूकती और बस स्टॉप बनने भी नहीं दिया जाता. इसके अलावा, उनके साथ जातिसूचक अपमान होते रहते हैं. न पुलिस और न प्रशासनिक तंत्र उनकी पीड़ा का कोई संज्ञान लेते हैं. ऐसी परिस्थिति में धनुष अपने पूरे गांव के डर को ख़त्म करने का बीड़ा उठाता है और विद्रोह कर देता है. पुलिस और प्रशासन उनका दमन करने के लिए गांव में घुस जाते हैं और गांव वालों को बेरहमी से मारते हैं. अपनी नौकरी जॉइन करने के लिए जाता कर्णन, बीच रास्ते से लौट आता है और फिर अपने गांव की रक्षा के लिए हथियार उठा कर पुलिस वालों के साथ लड़ाई लड़ता है. फिल्म के अंत में धनुष जेल से लौट कर अपने गांव के लोगों को एक बेहतर ज़िन्दगी जीते देख कर खुश हो जाता है.

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फिल्म की कहानी लिखी है निर्देशक मारी सेल्वाराज ने. उनकी पहली फिल्म पारियेरुम पेरुमल भी जाति प्रथा पर आधारित थी और उसने न सिर्फ बॉक्स ऑफिस हिला दिया था बल्कि कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अवॉर्ड फंक्शन में छाई हुई थी. थोट्टुकोड़ी के पुलियांगुलाम गांव में मारी ने अपनी ज़िन्दगी के कई दिन गुज़ारे. गांव पिछड़ा हुआ था. जाती और वर्ण व्यवस्था से परेशान था मगर सब यहां फिल्मों के शौक़ीन थे. मारी की फिल्मों के प्रति दीवानगी यहीं शुरू हुई. लॉ की पढाई करने घर से निकले मारी, चुपचाप हीरो बनने चेन्नई भाग गए. 12 साल तक स्ट्रगल कर के बाद उन्होंने 2018 में पहली फिल्म बनायीं और कर्णन उनकी दूसरी फिल्म है. फिल्म में पुलियांगुलाम गांव है, और शूटिंग थोट्टुकोडी में हुई है.

फिल्में, राइटिंग और एडिटिंग की टेबल पर रची जाती हैं और कर्णन इसका जीवंत उदाहरण है लेकिन इस फिल्म की कल्पना धनुष के बगैर करना असंभव है. एक युवक जो गांव में समय काट रहा है, अपने दादा के साथ गांव में व्यस्त रहने के तरीके ढूंढता है, कभी जुआ खेलता है, कभी अपनी गर्लफ्रेंड के साथ घूमता रहता है… वहां से धनुष के अंदर उबलता जवालामुखी जब तक फट नहीं पड़ता, तब तक का सफर इस फिल्म में धनुष के चेहरे और आंखों में देखा जा सकता है. इसको दिखाने के लिए निर्देशक ने एक गधे का इस्तेमाल किया है जिसको भागने से रोकने के लिए आगे के दो पैरों में रस्सी बांध दी जाती है. ये किरदार शायद कोई और अभिनेता निभा ही नहीं सकता था. धनुष के चेहरे में एक सौम्यता दिखती है और वहीं हिंसा के दृश्यों में वो हिंसक नज़र आते हैं. सच्चा कलाकार हमेशा बेहतरीन होता है. जो धनुष के फैन हैं उन्हें तो देखनी ही चाहिए लेकिन जो धनुष की प्रतिभा के अभी तक कायल नहीं हुए हैं उन्हें भी कर्णन में उनका काम देखना चाहिए. इसी किस्म की एक फिल्म वे पहले भी कर चुके हैं – असुरन.

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जाति प्रथा का प्रभाव दिखाने के लिए कई छोटे छोटे किस्से, फिल्म की कहानी में रखे गए हैं. किरदारों के नाम हैं – कर्णन अर्थात कर्ण, द्रौपदी, दुर्योधनम और बच्चे का नाम है अभिमन्यु. पुलिस स्टेशन में गांववालों को पूरे दिन खड़ा रखा जाता है और उन्हें छुड़ाने के लिए गांव के लड़के एक ट्रैक्टर में जाते हैं. इस दृश्य में एक तितली का आना और फड़फड़ाना, गज़ब संकेत है. पूरी कहानी में बस स्टॉप का न होना एक बड़े मोटिफ की तरह काम करता है. फिल्म की शुरुआत में ही एक लड़की रास्ते पर गिर कर मर जाती है और पूरा ट्रैफिक आसपास चलता रहता है. बस स्टॉप न होने की वजह से वो लड़की दम तोड़ देती है. उसी लड़की की आत्मा का मोटिफ दिखा कर स्टोरी टेलिंग में एक अलग एक्सपेरिमेंट भी किया है. जाति प्रथा से पीड़ित लोगों को दर्शाने के लिए इस से खूंखार किसी किरदार का इस्तेमाल नहीं हो सकता था. लेखक और निर्देशक मारी ने अपनी दूसरी फिल्म में भी डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को सांकेतिक श्रद्धांजलि दी है. गांव के मुहाने पर एक मूर्ति लगी है जिसका सर नहीं होता, इसका भी कहानी में उल्लेख मर्मस्पर्शी है. गांव में छपा मारते पुलिस दल को एक कुर्सी नहीं मिलती, ये व्यवस्था के खिलाफ एक आर्तनाद है. एक बूढ़ी महिला को उठाकर शौच के लिए ले जाते एक युवा का दृश्य को देखते वक़्त आप उस गांव का दर्द महसूस कर सकते हैं.

फिल्म में महिला पात्र सशक्त भूमिका में हैं. फिल्म की हीरोइन रजिशा कपिला, मलयालम फिल्मों में उभरता नाम हैं. एक गांव की लड़की की भूमिका निभाने के लिए रजिशा ने अपनी पूरी पर्सनालिटी में परिवर्तन कर लिया और उनकी मासूमियत फिल्म का अहम् भाग है. धनुष की बहन के किरदार में हैं लक्ष्मीप्रिया चंद्रमौली, जो कि भारत की ओर से क्रिकेट खेल चुकी हैं, और पिछले कुछ सालों से लीक से हट कर बनी तमिल फिल्मों में काम कर रही हैं. जब गांव के पुरुष कर्णन का साथ नहीं देते तो गांव की महिलाऐं उसके सामने ढाल बन कर खड़ी हो जाती हैं. इसके अलावा कर्णन में प्रसिद्ध कॉमेडियन योगी बाबू हैं जिनका किरदार संजीदा है. फिल्म में नकारात्मक भूमिका यानि पुलिस एसपी कन्नापीरन के किरदार में हैं अनुराग कश्यप के फेवरेट सिनेमेटोग्राफर नटी यानि नटराज सुब्रमणियम. छोटे से रोल में किरदार से घृणा पैदा कराने में सफल नटी कभी कभी एक्टिंग करते हैं और बहुत सशक्त किरदार निभाते हैं. ये रोल उन्होंने बहुत ही बढ़िया तरीके से निभाया है.

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सिनेमेटोग्राफर थेनी ईश्वर अत्यंत प्रतिभाशाली हैं. कर्णन में एक आधार स्तम्भ कैमरा वर्क भी है. आर्ट और कमर्शियल शॉट्स के बीच का संतुलन बनाये रखता है. एडिटिंग सेल्वा आरके हैं जिन्होंने अच्छा काम किया है. संगीत का डिपार्टमेंट संतोष नारायण के पास है जो कि निर्देशक मारी के अच्छे मित्र हैं. धनुष के लिए वो पहले भी तीन हिट फिल्मों में म्यूजिक दे चुके हैं. सुखद बात यह है कि फिल्म का संगीत फिल्म का हिस्सा ही लगता है. भाषा की बैसाखी की जरूरत ही नहीं पड़ती. मांजानथी पुराणम गाना बहुत ही भावनात्मक है और इस के आखिर में धनुष द्वारा शराब पी कर किया गया डांस फिल्म को अभूतपूर्व ऊंचाई प्रदान करता है. आप फिल्मों और कहानियों से प्रेम करते हैं, तो कर्णन एक शानदार फिल्म है. धनुष का अभिनय फिल्म के बाद तक दिलो दिमाग पर छाया रहेगा.undefined

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

Tags: Dhanush, Film review

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