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Goodbye Review: हम अक्‍सर अपने परिवार में या दोस्‍तों में ये बातें करते हैं कि हम शादी कैसी चाहते हैं या कोई बर्थडे कैसे सेलीब्रेट करना चाहते हैं. पर मरने के बाद हमें कैसे जाना है, हमारी मौत कैसी होगी इस बात का ज‍िक्र करना भी बुरा माना जाता है, इसकी तैयारी तो भूल ही जाइए. इसी सवाल के इर्द-ग‍िर्द बुनी गई है न‍िर्देशक व‍िकास बहल की फिल्‍म ‘गुडबाय’. ये स्‍लाइस-ऑफ-लाइफ ड्रामा मौत की कहानी के बीच व्‍यंग के जरिए हास्‍य पैदा करने की कोशिश करता है. व‍िकास बहल ही ‘गुडबाय’ रश्मिका मंदाना के ल‍िए बॉलीवुड के दरवाजे खोल रही है. आइए आपको बताते हैं कि कैसी है ये फिल्‍म.

Goodbye कहानी है एक गायत्री भल्‍ला और हरीश भल्‍ला के पर‍िवार की. उनके 4 बच्‍चे हैं और ये सभी अपनी नौकर‍ियों के चलते दूसरे शहरों और देशों में रहते हैं. उनकी बेटी तारा एक वकील है और अपने बॉयफ्रेंड के साथ रहती है. बड़ा बेटा अमेर‍िका में रहता है, छोटा बेटा भी क‍िसी दूसरे देश में रहता है. गायत्री भल्‍ला का अचानक न‍िधन हो जाता है और हरीश अपने बच्‍चों तक ये जानकारी पहुंचाने की कोशिश कर रहा है. तारा सबसे पहले अपने घर पहुंचती है, फिर करण और फिर गायत्री-हरीश का गोद ल‍िया बच्‍चा अंगद. हरीश अपने बच्‍चों से बेहद नाराज नजर आता है क्‍योंकि उसे लगता है कि उन्‍हें अपनी मां का मौत का उतना दुख नहीं है ज‍ितना होना चाहिए. वहीं तारा इसलि‍ए परेशान है क्‍योंकि अपनी मां के अंतिमसंस्‍कार की क‍िसी भी रीति-र‍िवाज से वह कनेक्‍ट फील ही नहीं कर पाती. वह बार-बार उनके लॉज‍िक और साइंस ढूंढने की बात करती है… ये कहानी गायत्री के जाने और उसके बाद इस ब‍िखरे हुए परिवार को उन सारे-रीति र‍िवाज को पूरे करने की कहानी है.

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व‍िकास बहल की इस कहानी से पहले प‍िछले 2 सालों में न‍िर्देशक बनीं सीमा पाहवा की ‘राम प्रसाद की तेरहवी’ और उमेश ब‍िष्‍ट की ‘पगलैट’ जैसी फिल्में सामने आ चुकी हैं जो ‘मौत के बाद ज‍िंदगी चलती रहती है’ जैसे संदेश को द‍िखा चुकी हैं. पर ‘गुडबाय’ का सेटअप एक अल्‍ट्रा मॉर्डन फैमली में द‍िखाया गया है. साथ ही इसमें रश्मिका के क‍िरदार के जरिए उन सारे सवालों को उठाया गया है, जो अक्‍सर नई पीढ़ी के युवा पूछते या कहते हुए नजर आते हैं जैसे, ‘ये रीति-र‍िवाज क्‍या हैं, इनके पीछे लॉज‍िक क्‍या है…’. रश्मिका भी वही कर रही हैं. हालांकि मुझे कई जगह रश्मिका की च‍िड़च‍िड़ाहट एक्‍स्‍ट्रा लगी. साथ ही वह बार-बार ये बोल रही हैं कि ‘मां अपनी मौत पर ये सब नहीं चाहती थीं.’ लेकिन कहानी के क‍िसी ह‍िस्‍से में ये स्‍टेबल‍िश नहीं क‍िया गया कि वह ऐसा क्‍यों कह रही है. एक बेटी जो मां का फोन बार-बार इंग्‍नोर कर रही है, उसके मैसेज का र‍िप्‍लाई नहीं दे रही, वह अचानक मां की मौत पर उनकी बातें बोल रही है.

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रश्मिका मंदाना, अम‍िताभ बच्‍चन की बेटी बनीं हैं.

फिल्‍म का फर्स्‍ट-हाफ काफी प्र‍िड‍िक्‍टेबल है पर फिर भी बंधा हुआ है. पड़ोसनों का कुर्सी के लिए इंतजार, शमशानघाट में वॉट्सअप ग्रुप बनाने की कोशिश जैसी चीजें सीधे तौर पर ‘असंवेदनशीलता’ को दर्शाती हैं. वहीं पड़ोसी बने आशीष व‍िद्यार्थी अपने परफॉर्मेंस में गजब रहे हैं. उन्‍हें देखकर आपको अपने आस-पास के ऐसे अंकल याद आ ही जाएंगे. एक्टिंग की बात करें तो परफॉर्मेंस में सभी को शानदार नंबर म‍िलते हैं. अपने-अपने क‍िरदार में हर कोई फिट रहा है. उनके इमोशंस पूरी तरह स्‍क्रीन पर नजर आए हैं.

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ये फिल्‍म कहानी, एक्‍ट‍िंग जैसे पैरामीटर्स पर आंकी जाए तो इसपर बात अलग तरीके से होगी लेकिन इस बात में दोराहे नहीं हैं कि ‘गुडबाय’ देखते हुए कई ऐसे पल आएंगे जब आप अपने आंसू रोक नहीं पाएंगे. एक सीन में गोलगप्‍पे वाला आता है और गायत्री जी को बुलाने के ल‍िए कहता है. ये सुन करण बने पवेल गुलाटी ‘मां’ को आवाज लगाने लगते हैं. यकीन मान‍िए ये सीन आपको अंदर से ह‍िलाकर रख देगा. फिल्‍म देखते हुए कई बार आपका मन होगा कि आप अभी दूसरे शहर में रह रहे आपने मम्‍मी-पापा को तुरंत फोन करें और उनसे कहें कि ‘आप बहुत जरूरी हो… I Love You Maa Papa’. और यही इस फिल्‍म की सफलता है. अच्‍छी बात ये है कि फिल्‍म में कहीं भी आपको व‍िलेन नहीं म‍िलेंगे, न बेटा बेटी में और न ही पत्‍नी के मौत के बाद झुंझुलाते प‍िता में.

हालांकि फर्स्‍ट हाफ ज‍ितना कहानी-ड्र‍िवन है, सेकंड हाफ उतना ही फील गुड फेक्‍टर की अती ल‍िए हुए है. साथ ही सेकंड हाफ में फिल्‍म बेहद म्‍यूज‍िकल हो जाती है. सेकंड हाफ शुरू होते ही सुनील ग्रोवर की एंट्री होती है और हरिद्वार का ये पूरा ट्रैक काफी एंटरटेन‍िंग है. इस फिल्‍म की कहानी से आप इत्तेफाक रखे या न रखें, पर ये फिल्‍म आपके भीतर इमोशन्‍स का सैलाब लाने की ताकल रखती है. मेरी तरफ से इस फिल्‍म को 2.5 स्‍टार.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :
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Tags: Amitabh bachchan, Rashmika Mandanna

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