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नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने अपनी रजिस्ट्री से यह बताने को कहा है कि क्या किसी अदालत का मौजूदा निर्णय या ऐसा कोई निर्देश है, जिसके तहत यौन अपराधों के मामलों में जमानत अर्जी या अपील में पीड़ित या मुखबिर को पक्षकार बनाया जा सकता हो. न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने कहा, “… आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 439 (1-ए) और 24 सितंबर, 2019 को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार, केवल यह आवश्यक है कि कुछ अपराधों में जमानत अर्जी पर सुनवाई के समय पीड़ित/ मुखबिर या किसी अधिकृत व्यक्ति की सुनवाई की जाए. अगली तारीख से पहले, इस सवाल के जवाब में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए.”

इसके बाद, अदालत ने मामले की सुनवाई छह जनवरी, 2023 तक के लिए स्थगित कर दी. उच्च न्यायालय एक बच्ची के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति की जमानत अर्जी पर सुनवाई कर रहा था. यह घटना इसी वर्ष की है. आरोपी के खिलाफ यहां जैतपुर थाने में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था.

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अदालत ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जमानत याचिका पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है. अदालत ने जेल अधीक्षक से अपेक्षित अद्यतन सूची भी मांगी.

उच्च न्यायालय ने जांच अधिकारी को शिकायतकर्ता को यह सूचित करने का भी निर्देश दिया कि जमानत अर्जी पर सुनवाई की अगली तारीख पर उसकी उपस्थिति आवश्यक है.

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