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मर्डर मिस्ट्री फिल्में बनाने में बहुत ध्यान रखना पड़ता है. इस तरह की कहानियों में कई ट्रैक्स एक साथ चल रहे होते हैं, लगभग हर किरदार पर क़त्ल का शक जाता ही है, कत्ल की कई वजहें भी नज़र आती हैं लेकिन केस सुलझने के बजाये हमेशा उलझता रहता है. बहुत कम मर्डर मिस्ट्री फिल्में ऐसी हैं जिसमें क़त्ल की वजह वाकई दमदार नजर आती है और जिस शख्स पर अंततः इलज़ाम आता है वो बड़े ही शातिर ढंग का खूनी निकलता है. अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज तमिल फिल्म इरुधि पक्कमकी शुरुआत तो बहुत अच्छे ढंग से होती है, और थोड़े समय तक फिल्म में कातिल को खोजने का काम भी बड़े ही सलीके से चलता है लेकिन जैसे जैसे परतें खुलती जाती हैं, दर्शकों को कहानी की अविश्वसनीयता का झटका लगता है और फिर कहानी पटरी से उतर जाती है, उसका गियर टूट जाता है. हालाँकि तमिल भाषा में कई मर्डर मिस्ट्री फ़िल्में बनी हैं और सफल भी हुई हैं, इरुधि पक्कम आखिर में निराश करती है.

कहानी भी बड़ी अजीब सी है. जब लिखी गयी होगी तब ज़रूर इसमें रहस्य और रोमांच की भावना जागी होगी लेकिन जब अधपके कलाकारों के साथ इस तरह की फिल्म बनती है तो साफ लगता है कि इस कहानी को बेहतर लिखा जाना चाहिए था. लेखक-निर्देशक मनो की यह पहली ही फिल्म है. उनका इरादा जरूर यही होगा कि कत्ल की वजह पहले तो साफ नजर आये लेकिन धीरे धीरे कहानी कुछ इस तरह उलझ जाए कि देखने वाले को सोचना पड़े कि कातिल आखिर है कौन. अफसोस की फिल्म में ये बात कहीं उभर कर नहीं आती. इयल एक उपन्यासकार है जो अपनी ज़िन्दगी के आस पास की सच घटनाओं पर किताब लिखती है और अक्सर इन सभी घटनाओं में मुख्य पात्र वो स्वयं होती है. पढ़ने वालों को उसकी कहानियों में असली सच्चाई नजर आती है. फिल्म की शुरुआत में ही उसके घर में एक अनजान शख्स आता है और उसका खून कर देता है. पुलिस इंस्पेक्टर कुमार (राजेश बालचंद्रन) जल्द ही खूनी तक पहुंच जाते हैं तभी खूनी उन्हें बताता है कि कत्ल उसने किया तो है लेकिन उसे इसके लिए एक अनजान शख्स ने पैसे दिए थे, वो मकतूल को जानता भी नहीं है. केस के उलझने की शुरुआत होती है. इयल के बॉयफ्रेंड मिथुन से पूछताछ होती है और शक उसी पर जाता है लेकिन इंस्पेक्टर कुमार की तहकीकात उसे इयल के पहले बॉयफ्रेंड प्रशांत (विग्नेश) तक ले जाती है. एक एक करके रहस्यों से पर्दा उठता रहता है. सबसे बड़ी बेवकूफी ये दिखाई जाती है कि इयल अपने आखिरी और अधूरे उपन्यास में असलियत पर से पर्दा उठा चुकी है और उसने वो इंस्पेक्टर कुमार को भेज दी है. भेद खुलता है और कातिल गिरफ्तार हो जाता है.

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एक भी कलाकार का अभिनय अच्छा नहीं है. अमृता, विग्नेश और राजेश का अभिनय औसत है. सिनेमाटोग्राफी इस औसत है जिस वजह से रहस्य का माहौल भी नहीं बनता है. मर्डर मिस्ट्री फिल्मों में चेहरा छुपाने की प्रथा है या जुर्म कुछ इस तरह से दिखाया जाता है कि करने वाले का पता नहीं चलता. इरुधि पक्कम में ऐसा कुछ नहीं होता. सहयोगी कलाकार तो अत्यंत साधारण हैं और इस तरह की फिल्म में पूरी तरह से मिसिफट हैं. फिल्म का बजट भी सीमित ही नज़र आता है तो प्रोडक्शन की क्वालिटी भी कमजोर है. फिल्म की अच्छी बात ये है कि फिल्म छोटी है और कुल जमा 90 मिनट में खत्म हो जाती है. इयल का किरदार काफी बोल्ड बनाने की भरसक कोशिश की गयी है. एक इरोटिक थ्रिलर उपन्यास लिखने के लिए इयल स्वयं अलग अलग पुरुषों के साथ सम्बन्ध बनती है ताकि उसकी कहानी में असलियत आ सके. ये लॉजिक समझ से परे है. प्यार और सेक्स को अलग अलग रखने की लेखक की कोशिश अमृता के अभिनय की वजह से अविश्वसनीय लगती है. कहानी में ट्विस्ट तो काफी डाले गए हैं. एक समय पर आ कर निर्देशक की ताकत जवाब दे जाती है और दर्शकों के सामने असली कातिल आ जाता है लेकिन इंस्पेक्टर को ये गुत्थी सुलझाने में समय लग जाता है. आमिर खान करीना कपूर की फिल्म तलाश में भी रहस्य दर्शकों को पहले ही पता चल गया था इसलिए वो फिल्म नहीं चली.

एडिटर राम पांडियन की ये दूसरी ही फिल्म है और शायद यही वजह है कि उनका काम परिपक्व नज़र नहीं आता. निर्देशक मनो की तो ये पहली फिल्म है और सिवाय इस बात के कि फिल्म की अवधि कम है इसलिए थोड़ी रफ़्तार ठीक ठीक लगती है लेकिन इसमें रोमांच बिलकुल नहीं है. दर्शकों को किरदार से कोई अपनापन महसूस नहीं होता. इस तरह की फिल्मों में सेक्स भी बड़े ही कैजुअल तरीके से फिल्माया गया है तो दर्शकों को पूरी फिल्म देखने की वजह भी समझ नहीं आती. फ्लैशबैक के दृश्य एक पल में अच्छे हैं और दूसरे पल में कमजोर. ऐसी फिल्म तो तभी देखी जा सकती है जब कोई और अच्छी फिल्म देखने के लिए न हो और सस्ती सुन्दर कमजोर अभिनेताओं वाली तमिल थ्रिलर देखने से आपको कोई गुरेज न हो. अन्यथा इस फिल्म को न देखें तो भी चलेगा.

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डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

Tags: Amazon Prime Video, Film review

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