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हाइलाइट्स

सरकारी दस्तावेजों के अनुसार मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 को हुआ था.
मैथिलीशरण गुप्त की बैठक को ‘निकुंज’ के नाम से जाना जाता है.
महात्मा गांधी ने मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि की पदवी दी थी.

रिपोर्ट: शाश्वत सिंह

झांसी. भारत में दो कवियों को राष्ट्रकवि का दर्जा दिया गया है. पहले मैथिलीशरण गुप्त और दूसरे रामधारी सिंह दिनकर. मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि की पदवी महात्मा गांधी ने दी थी. झांसी के चिरगांव में सेठ रामचरण गुप्त और काशीवाई के घर जन्मे मैथिलीशरण गुप्त हिंदी खड़ी बोली के महत्वपूर्ण कवि थे,जिनकी रचनाओं का स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान रहा. उनके इसी योगदान को देखते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि कहकर संबोधित किया था. सरकारी दस्तावेजों के अनुसार उनका जन्म 3 अगस्त 1886 को हुआ था. हिंदू पंचांग के अनुसार उनका जन्म सावन की तीज के दिन हुआ था.

मैथिलीशरण गुप्त ने अपना पूरा जीवन झांसी के चिरगांव में बने अपने घर में बिताया. उस जमाने में कच्ची दीवारों से बनाए गए घर को आज हवेली के नाम से जाना जाता है. उनके परिवार द्वारा गुप्त जी की बैठक और उनके लिखने के स्थान को आज भी मूल स्वरूप में ही सुरक्षित रखा गया है. उनकी पुत्रवधु शांति गुप्त ने बताया कि पूरे घर को पक्का किया गया, लेकिन उनके बैठक जिसे ‘निकुंज’ के नाम से जाना जाता है, उसे आज भी वैसे ही सुरक्षित रखा गया है. उसमें गोबर भी लीपा जाता है.

निकुंज में बसी हैं राष्ट्रकवि की यादें
मैथिलीशरण गुप्त के निकुंज में अगर आप जायेंगे तो आपको एक तरफ देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा 1954 उन्हें दिया गया पद्मभूषण सम्मान दिखेगा, तो दूसरी तरफ उनकी अपने साथी राज्यसभा सांसदों के साथ 1952 की तस्वीर भी दिख जायेगी. इसके साथ ही उस बैठक में मैथिलीशरण गुप्त की कृतियों को भी रखा गया है. घर के एक हिस्से में वह जगह भी है जहां बैठकर मैथिलीशरण गुप्त अपनी कविताएं लिखा करते थे. उनकी पुत्रवधु शांति गुप्त ने बताया कि उन्हें प्रकृति के बीच रहना पसंद था, इसलिए वह अधिकतर अपनी बगिया में ही बैठकर अपना लेखन का काम करते थे.

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खाना नहीं ‘भोजन’ कहना चाहिए
शांति गुप्त ने बताया कि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन बहुत ही सादगी भरा था. वह सुबह 5 बजे उठ जाया करता थे. अपने नित्य कार्यों से निवृत्त होकर वह 6 बजे नाश्ता किया करते थे. नाश्ते में वह एक कप चाय और बासी पूड़ी खाना पसंद करते थे. इसके बाद वह अपने बगीचे में टहलते थे और लोगों से मिलते थे. दोपहर 12 बजे वह स्नान करने जाते थे. उसके बाद पूजा करके भोजन करते थे. शांति गुप्त ने बताया कि उन्हें खाना शब्द से चिढ़ थी. वह कहते थे कि ‘भोजन’ शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए. भोजन में उन्हें देसी बुंदेली खाना ही पसंद था.

साहित्य प्रेमियों के लिए तीर्थ है राष्ट्रकवि का घर
शांति गुप्त ने बताया कि आज भी बहुत लोग मैथिलीशरण गुप्त के घर और समाधि को देखने और नमन करने आते हैं. सबसे ज्यादा पीएचडी करने वाले विद्यार्थी यहां आते हैं. घर से कुछ दूरी पर ही मैथिलीशरण गुप्त की समाधि भी है. आज भी लोग राष्ट्रकवि की समाधि पर फूल चढ़ाने आते हैं. यह समाधि झांसी शहर से 40 किलोमीटर की दूरी पर चिरगांव की नवीन सब्जी मंडी के बिल्कुल सामने स्थित है. आप अपने निजी वाहन या झांसी में चलने वाली इलेक्ट्रिक बस से यहां तक पहुंच सकते हैं.

मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख रचनाएं

नर हो, न निराश
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को

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मनुष्यता
विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸
मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी.
हुई न यों सु–मृत्यु तो वृथा मरे¸ वृथा जिये¸
मरा नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए.
यही पशु–प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे.

चेतना
अरे भारत! उठ, आँखें खोल,
उड़कर यंत्रों से, खगोल में घूम रहा भूगोल!
अवसर तेरे लिए खड़ा है,फिर भी तू चुपचाप पड़ा है.
तेरा कर्मक्षेत्र बड़ा है,पल पल है अनमोल.
अरे भारत! उठ, आँखें खोल.

मातृभूमि
नीलांबर परिधान हरित तट पर सुन्दर है.
सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है.
नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडन हैं.
बंदीजन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है.
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की.
हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की.

जय भारत-भूमि-भवानी!
जय भारत-भूमि-भवानी!
अमरों ने भी तेरी महिमा बारंबार बखानी.
तेरा चन्द्र-वदन वर विकसित शान्ति-सुधा बरसाता है,
मलयानिल-निश्वास निराला नवजीवन सरसाता है.
हदय हरा कर देता है यह अंचल तेरा धानी,
जय जय भारत-भूमि-भवानी!

Tags: Jhansi news, Mahatma gandhi, Maithilisharan Gupta

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