joji review e0a4b5e0a4bfe0a4b2e0a4bfe0a4afe0a4ae e0a4b6e0a587e0a495e0a58de0a4b8e0a4aae0a580e0a4afe0a4b0 e0a495e0a580 e0a4aee0a588e0a495
joji review e0a4b5e0a4bfe0a4b2e0a4bfe0a4afe0a4ae e0a4b6e0a587e0a495e0a58de0a4b8e0a4aae0a580e0a4afe0a4b0 e0a495e0a580 e0a4aee0a588e0a495

Joji Review: फिल्मों में कहानियों का अभाव कई वर्षों से महसूस किया जाता रहा है. सभी निर्माता और निर्देशक अपने लिए एक ऐसी कहानी ढूंढते रहते हैं जो कि उनके लिए सफलता की गारंटी साथ लेकर आये. फिल्मों की शुरुआत में पौराणिक ग्रन्थ, ऐतिहासिक किस्से-कहानियां, महाकाव्यों और नाटकों से कहानी उठायी जाती थी और उन पर फिल्में बनायीं जाती थी. भारत की पहली स्वदेशी फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ भी ऐसी ही एक पौराणिक कथा पर आधारित थी. धीरे धीरे फिल्मकारों ने नए लेखकों की खोज की लेकिन फिल्मों के 100 साल से ज़्यादा के इतिहास में सबसे ज़्यादा जिस लेखक की कहानियों का उपयोग, सदुपयोग और दुरुपयोग हुआ है वो है इंग्लिश लेखक- विलियम शेक्सपियर. इनके द्वारा लिखे गए नाटकों पर इतनी फिल्में बन चुकी हैं कि हिसाब मुश्किल है. दो प्रतिष्ठित घरानों की लड़ाई में पनपते प्रेम की कहानी ‘रोमियो जूलिएट’, अपनी सुन्दर पत्नी से ईर्ष्या रखने वाला ‘ऑथेलो’, अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् अपनी माँ के प्रेमी से जलता ‘हैमलेट’ या फिर अपने किरदार बदल कर रहने वाली लड़कियों वाली ‘एज़ यू लाइक इट’ या मालिक-नौकर के जुड़वाँ भाइयों की दास्तान वाली ‘कॉमेडी ऑफ़ एरर्स’. कई फिल्में ऐसी हैं जो बार बार बनायीं जाती हैं, और कहानी का कोई न कोई अंश शेक्सपीयर की लेखनी से प्रभावित नज़र आ ही जाता हैं.

हिंदी फिल्मों में विशाल भारद्वाज ने मक़बूल (मैकबेथ), ओमकारा (ऑथेलो) और हैदर (हैमलेट) जैसी फिल्में बनायीं हैं. विशाल के बाबा यानी हम सबके चहीते गुलज़ार साहब ने ‘कॉमेडी ऑफ एरर्स’ पर अंगूर फिल्म बनायीं थी. रोमियो जूलिएट पर तो जाने कितनी फिल्में बनी हैं – कयामत से क़यामत तक से लेकर गोलियों की रासलीला: रामलीला तक. कुछ तमिल और तेलुगु निर्देशकों ने भी शेक्सपीयर के नाटकों को फिल्मों में तब्दील किया है लेकिन हाल ही में रिलीज़ मलयालम फिल्म ‘जोजी’ ने इन सबको पीछे छोड़ते हुए, मैकबेथ का एक नया रूप दर्शकों के सामने रखा है. अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज़ ये फिल्म ज़बरदस्त है और इसे देखा जाना चाहिए.

मैकबेथ की कहानी में राजा के सेनापति मैकबेथ को युद्ध में विजय मिलती है और उसके राजा बनने की भविष्यवाणी की जाती है. इन बातों से मैकबेथ पर असर नहीं होता लेकिन मैकबेथ की पत्नी इस बात को गंभीरता से लेती है और वो मैकबेथ को मजबूर करती है कि वो राजा को मार कर उसकी गद्दी हथिया ले. प्रेम में अंधा मैकबेथ, राजा की हत्या कर देता है और खुद सिंहासन संभाल लेता है. राजा बनने के बाद मैकबेथ अपने दुश्मनों का खात्मा करने में लग जाता है. इस दौरान मैकबेथ की पत्नी को अपने किये पर खुद से घृणा होने लगती है. उसकी बिगड़ती मानसिक हालत से मैकबेथ भी परेशान हो जाता है. दुश्मनों का सफाया करते करते वो एक युद्ध में मारा जाता है. सत्ता के लालच और एक महत्वाकांक्षी जीवन संगिनी की वजह से एक योद्धा का हश्र क्या होता है, इस नाटक की मूल कथा थी.

READ More...  Film Review: तमिल फिल्म 'Enemy' में पटकथा से दुश्मनी क्यों निकाली गई है?

मलयालम फिल्म जोजी में मुख्य किरदार है जोजी (फहाद फॉसिल) जो कि पिता कुटप्पन (सनी पीएन) के साथ रहता है. जोजी के दो बड़े भाई, जोमोन (बाबूराज) और जैसन (जे मुण्डाकायम) भी उसी घर में रहते हैं. पिता बड़ा ही अनुशासित जीवन व्यतीत करते हैं, पूरी जायदाद की देखभाल करते हैं और घर खर्च पर भी पूरा नियंत्रण रखते हैं. जोमोन का तलाक हो चुका है और उसका बेटा पॉपी भी उन्हीं के साथ रहता है. मझले भाई जैसन की पत्नी बिन्सी (उन्नीमाया प्रसाद) और जोजी के बीच कुछ खास रिश्ते हैं ऐसा नज़र आता है. जोजी नाकारा है और कुछ करता नहीं है. एक दुर्घटना में कुटप्पन को दिल का दौरा पड़ता है और उन्हें पैरालिसिस हो जाता है. बिन्सी अपने ससुर के कठोर अनुशासन से और कंजूसी से त्रस्त हो कर जोजी को कुछ करने के लिए कहती रहती है. जोजी, मौके का फायदा उठा कर अपने पिता को गलत दवाइयां दे कर मार डालता है. कुछ समय बाद सबसे बड़े भाई जोमोन को जोजी पर शक हो जाता है तो जोजी अपने भतीजे की एयरगन से अपने बड़े भाई का भी खून कर देता है. मझले भाई द्वारा पूछे जाने पर जोजी उलटे सीधे किस्से सुनाने लगता है लेकिन जोमोन के शरीर में मिले एयरगन के छर्रों की वजह से जोजी को पुलिस पकड़ने आ जाती है. जोजी आत्महत्या की कोशिश करता है और अंत में एक ज़िंदा लाश की तरह अपनी बची हुई ज़िन्दगी बिस्तर पर बिताने के लिए मजबूर हो जाता है.

एक राजा की कहानी को केरल के कोट्टायम के किसी हिस्से में कल्पना करना बड़ा अजीब लगता है मगर लेखक श्याम पुष्करन के अपनी लेखनी को पिछले कुछ सालों में जिस धार से नवाज़ा है उसका एसिड टेस्ट है ‘जोजी’. मलयालम फिल्में कहानी में नवीनता के लिए जानी जाती रही हैं. श्याम इस नवीनता के शिखर पर विद्यमान कुछ पटकथा लेखकों में शामिल है. उनकी लिखी फिल्म महेशइंते प्रतिकारम के स्क्रीनप्ले के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरुस्कार से नवाज़ा जा चुका है. फहाद फासिल के लिए वो कई फिल्में लिख चुके हैं और सभी की सभी अत्यंत लोकप्रिय हुई हैं. महेशइंते प्रतिकारम के निर्देशक थे दिलीश पोथन और दिलीश ही जोजी के भी निर्देशक हैं.

READ More...  Entertainment TOP-5: 'थैंक गॉड' का फर्स्ट लुक वायरल, 'विक्रम वेधा' का ट्रेलर आउट

श्याम और दिलीश ने एक और फिल्म ‘थोड़ीमुथालूम दृसाक्षीयम’ भी बनायीं है जिसमें भी फहाद मुख्य अभिनेता थे और इसे सर्वश्रेष्ठ मलयालम फिल्म का नेशनल अवॉर्ड और करीब 4 दर्ज़न अन्य अवॉर्ड भी मिल चुके हैं. जोजी, अब तक कि इनकी सबसे स्याह फिल्म है. फिल्म में एक भी रिश्ता सामान्य नहीं है. अनुशासन प्रिय पिता, तलाकशुदा बड़ा बेटा, मझले बेटे की पत्नी का सबसे छोटे बेटे से अनजाने क़िस्म का रिश्ता, सबसे छोटे बेटे का नाकारा होना और पैसा बनाने के लिए अलग अलग तरह की स्कीम सोचना, अपने ही पिता और बड़े भाई की हत्या करना. ये देख कर एक बार तो सोचना पड़ता है कि 500 पहले की शेक्सपीयर के किरदारों और आज के लोगों में कुछ भी नहीं बदला है. जो पाशविक प्रवृत्तियां पहले थीं वो आज भी मौजूद है. सत्ता और पैसे की भूख, वैसे की वैसी बरकरार है. ऐसे में उस लेखक की कल्पना को सलाम करने का मन करता है.

फिल्म के प्रोड्यूसर फहाद, दिलीश और श्याम हैं. तीनों को एक दूसरे के काम करने की तकनीक पसंद हैं. फहाद को ऐसे लेखक और निर्देशक मिल जाते हैं जो उनसे अलग अलग तरह का काम करवा लेते हैं और दिलीश और श्याम को एक ऐसा अभिनेता मिल जाता है जिसको रोल की लम्बाई से कुछ लेना देना नहीं है, जिसको अपने किरदार के नेगेटिव होने का कोई डर नहीं है और उसको अपनी इमेज की तो कोई भी परवाह नहीं है. मलयालम फिल्में देखने वाले ये बात दावे के साथ कह सकते हैं कि उन्हें फहाद फासिल बहुत पसंद हैं, लेकिन वो किस किरदार में पसंद हैं ये कहना मुश्किल है. फहाद की अभिनय की रेंज इतनी बड़ी है कि आजकल के किसी भी अभिनेता के लिए ये संभव नहीं है कि वो उसका मुक़ाबला कर सकें. हिंदी फिल्मों में शायद इरफ़ान के पास इतनी बड़ी रेंज थी. फहाद अपने हर किरदार के लिए कुछ नयापन लाते ही हैं. कभी कोई मैनेरिस्म, कभी अपनी बिल्ट बदल लेंगे, कभी कपड़ों के साथ एक्सपेरिमेंट कर लेंगे ताकि देखने वाले फहाद की कोई निश्चित छवि न बना सकें. अभिनय में पानी होना है फहाद फासिल होना. पिता कुटप्पन की भूमिका में सनी पीएन ने एक ज़मींदार किस्म के दबंग व्यक्ति को भूमिका निभाई है. 70 से ऊपर के उम्र की किरदार में अपनी बॉडी के प्रति सजग, एक एक पैसे का हिसाब रखने वाले, पैरालिसिस के बावजूद भी अपने बेटे को खर्च के लिए हज़ार रुपये का चेक देने वाले किरदार में उन्होंने जान डाल दी. बाकी किरदार अपनी जगह पर एकदम परफेक्ट हैं. हर किसी का काम नपातुला है. ये लेखक की काबिलियत है.

READ More...  Mumbai Diaries 26/11 Review: मुंबई डायरीज 26/11 दुःख पर बनी सबसे सुखद वेब सीरीज

जस्टिन वर्गीस के संगीत ने कमाल किया है. कुछ सीन में संगीत का आना एक और किरदार के आने की अनुभूति देता है. केरल नैसर्गिक सुंदरता का नमूना है और इसकी खूबसूरती को परदे पर उतारने के लिए सिर्फ एक अदद कैमरे की ज़रुरत होती है. शिजू खालिद का कैमरा पूरे दृश्य को एक गंभीरता प्रदान करता है खासकर जब फहाद नहर के किनारे सिगरेट पीते नज़र आते हैं या घर के पिछवाड़े बने हुए कुँए में मछली पकड़ने का काम करते हैं.

जोजी, देखने लायक है. विलियम शेक्सपीयर को एक तरह का ट्रिब्यूट है जो कि अब तक बनी भारतीय फिल्मों से बिलकुल अलग है. केरल के हरे भरे इलाकों में मैकबेथ की रहस्यमयी कहानी को एक बिलकुल अनूठे रूप में देखने का आनंद कुछ और है.undefined

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

Tags: Amazon Prime Video, Entertainment, Film review

Article Credite: Original Source(, All rights reserve)