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नागौर. मेहनत इतनी खामोशी से करो कि सफलता शोर मचा दे. जी हां, इसी कहावत को चरितार्थ करती है नागौर की एक बेटी की कहानी, जिसने महज 16 साल की उम्र में गोल्ड मेडल जीत लिया. नागौर के मेड़ता तहसील के जारोड़ा गांव की रहनेवाली रितिका बिश्नोई ने बंगलुरु में हाल में हुई नेशनल साइकिलिंग प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता है. उन्होंने 30 किलोमीटर लंबी रेस मात्र 20 मिनट में पूरी कर दी और इस स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतकर जिले के साथ-साथ प्रदेश का नाम भी रोशन किया.

रितिका बिश्नोई नागौर के मेड़ता तहसील के छोटे से गांव जारोड़ा की रहनेवाली हैं. इनके पिता का नाम रामरत्न बिश्नोई है. रितिका बिश्नोई ने नेशनल साइकिलिंग में 20 किलोमीटर की रेस में गोल्ड मेडल जीता है. वह वर्तमान समय में बीकानेर जिले में रहती हैं. एक बार साइकिलिंग करते वक्त रितिका का एक्सीडेंट हुआ. डॉक्टर ने नेशनल साइकिलिंग में भाग लेने से रोक दिया. लेकिन रितिका में मेडल जीतने की चाह इस कदर बलवती थी कि उन्होंने जमकर मेहनत की. अपनी चोट जल्द दुरुस्त करने की हरसंभव कोशिश की. और सब ठीक होने के बाद रेस में हिस्सा लिया.

रितिका ने बताया कि एक वर्ष पहले भाई को देखकर उन्होंने साइकिल चलाना शुरू किया. क्योंकि इनके भाई ने साइकिलिंग रेस में कई मेडल जीते हैं. भाई को देखकर इन्होंने भी साइकिलिंग की प्रैक्टिस शुरू की और आज 1 वर्ष के अंदर बंगलुरु में गोल्ड मेडल जीता है.

रितिका ने बताया कि बीकानेर में रोजाना वे 60 से 70 किलोमीटर साइकिलिंग करती हैं. हफ्ते में एकबार 150 किलोमीटर तक साइकिल चलाना उनकी आदत में शुमार है. वह बताती हैं कि रोजाना 4 से 5 घंटे तक साइकिल चलाती हूं.

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रितिका ने कहा कि भाई से प्रेरित होकर साइकिल चलाना शुरू किया. मेरी इस काबिलियत को तराशने में कोच राजेंद्र विश्नोई ने दिन-रात मेरे साथ मेहनत की और मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया. मैं इस सफलता का श्रेय पूरे परिवारवालों को देना चाहूंगी.

गोल्ड मेडल जीतने के बाद रितिका विश्नोई जब लौटीं, तो मेड़ता रोड जंक्शन पर उनका स्वागत राजस्थानी अंदाज में साफा व माला पहनाकर किया गया. उनकी इस उपलब्धि पर उनके प्रशंसको ने कंधे पर उन्हें बैठाकर पूरे गांव में घुमाया.

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FIRST PUBLISHED : January 16, 2023, 15:49 IST

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