
मुंबईः 1980 में नायट्टू (Nayattu) नाम की एक मलयालम फिल्म (Nayattu Malayalam Movie) रिलीज हुई थी जो सुपर हिट हुई थी, उसका कारण था कि वो अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) की फिल्म “ज़ंजीर (Zanjeer)” का रीमेक थी. 2021 में इसी टाइटल की फिल्म नेटफ्लिक्स पर आयी है, और कमाल की बात है कि इस फिल्म को देखना अपने आप में एक अनुभव माना जाएगा. एक बेहद संजीदा मूल कथा पर एक बेहद बुद्धिमत्तापूर्ण फिल्म है नायट्टू, जिसमें आप मुख्य कलाकारों के साथ कुछ इस क़दर जुड़ जाते हैं कि उनकी बेचारगी महसूस होने लगती है.
कहानी एक थाने के 3 पुलिस कर्मियों की है, जिसमें से महिला पुलिसकर्मी की और उसके रिश्तेदार, एक छुटभैये नेता, के बीच जायदाद को लेकर झगड़ा चल रहा है. विवाद थाने तक आ जाता है और महिला के दो सहकर्मी, उस नेता को जेल में डाल देते हैं. नेता के साथी उसकी गिरफ़्तारी और पुलिस द्वारा की गयी मारपीट का वीडियो बना लेते हैं, और बड़े नेताओं को मामले में कूदना ही पड़ता है. इस दौरान, उस छुटभैये नेता के एक साथी का एक्सीडेंट हो जाता है और वो मर जाता है. इलज़ाम लगता है इन पुलिसकर्मियों पर. राज्य के मुख्यमंत्री को समर्थन के लिए एक जाति विशेष के नेताओं का समर्थन जरूरी होता है तो वो इन पुलिसकर्मियों को रास्ते से हटाने के लिए कमिश्नर पर दबाव बनाते है. तीनों पुलिसकर्मी भाग निकलते हैं, पुलिस को चकमा देते रहते हैं और आखिर में इन तीनों में से एक आत्महत्या कर लेता. कहानी का अंत इतना मार्मिक है कि देखते हुए शब्द नहीं निकलते.
तीन प्रमुख कलाकार हैं – पुलिस अफसर प्रवीण माइकल (कुंचको बोबन), एसीपी मणियन (जोजू जॉर्ज) और निमिषा सजयन जिन्हें हमने हाल ही में “द ग्रेट इंडियन किचन” और “वन” नाम की फिल्मों में देखा है. कुंचको एक बहुत अनुभवी और सफल हीरो हैं, वहीँ जोजू कई मलयालम फिल्मों में काम भी कर चुके हैं और फिल्में प्रोड्यूस भी कर चुके हैं. फिल्म के निर्देशक हैं मार्टिन प्रकट जो मूलतः एक फोटोग्राफर हैं और उनके द्वारा खींची गयी सेलिब्रिटीज की फोटोग्राफ्स मलयालम मैगज़ीन वनिता में अक्सर प्रकाशित होती रहती हैं. 2010 में उन्होंने सुपरस्टार मम्मूटी के साथ “बेस्ट एक्टर” नाम की फिल्म बनायीं थी जो की सभी मायनों में सुपरहिट रही. हालाँकि मार्टिन ने पिछले 11 सालों में कुल 3 फिल्में डायरेक्ट की हैं और नायट्टू, उनकी चौथी फिल्म है.
मलयालम फिल्मों में कुछ बातें तयशुदा रहती हैं और शायद इसलिए उनकी कहानी, उनके किरदार और उनकी पटकथा पर विश्वास किया जा सकता है. मलयालम फिल्मों में कहानी हमेशा केरल में ही रहती है, बहुत कम ऐसा होता है कि किसी और प्रदेश का कोई ज़िक्र भी होता है. मलयालम फिल्मों में शहर और गांवों में ज़मीन आसमान का अंतर नहीं नजर आता, व्यवसायीकरण के नंगे नाच से केरल अभी भी अछूता है. मलयालम फिल्मों में अभिनेता बिलकुल अभिनय करते हुए नज़र नहीं आते बल्कि ऐसा लगता है कि किसी और कमरे में कुछ कर रहे थे, और अब अचानक कैमरे के सामने आ गए हैं. ये कला की जीत है.
जब कलाकार पुलिसवाले बनते हैं तो ऐसा लगता है कि निजी ज़िन्दगी में भी ये पुलिस वाले ही हैं और इन्हीं की ज़िंदगी पर ये फिल्म बना दी गयी है. किस कलाकार को कितना स्क्रीन टाइम मिलेगा, ये कहानी तय करती है, कलाकार नहीं. रोल छोटा हो या बड़ा, किसी भी कलाकार को करने में कोई हिचक नहीं होती इसलिए हर एक के अभिनय में हर बार एक नया डायमेंशन जुड़ जाता है.
फिल्म एक थ्रिलर है, सोशल ड्रामा भी है और साथ में राजनीति में जातिगत हस्तक्षेप का ऐसा पतित चित्रण है कि पुलिस के आला अधिकारी अपने ही डिपार्टमेंट के बेक़सूर अधिकारियों को फंसाने और उन्हें मारने के लिए स्पेशल टास्क फ़ोर्स भेज देता है. तीनों पुलिसकर्मी अपने अनुभव और सामान्य बुद्धिमत्ता से कैसे पुलिस की नाक के नीचे से निकल जाते हैं, वो बहुत सुखद लगता है. केरल बहुत सुन्दर नज़र आता है, चारों तरफ हरियाली, मुन्नार के पहाड़, घुमावदार रास्ते और नेचुरल ब्यूटी जिसकी वजह से सिनेमेटोग्राफर शिजु खालिद का काम आसान हो जाता है. लेकिन रात के दृश्यों में स्ट्रीट लाइट्स की मदद से कमाल दृश्य बने हैं.
कैमरे की उपस्थिति किसी भी सीन में एक कलाकार की तरह होती है. जेजू की आत्महत्या का दृश्य बहुत ही प्रभावी ढंग से शूट किया है. फिल्म के एडिटर हैं महेश नारायणन जिनकी वजह से फिल्म ने पूरे 124 मिनिट में थ्रिलर होने का एहसास बनाये रखा है. महेश नए ज़माने के एडिटर हैं और उनकी फिल्में अक्सर फिल्म को सही दिशा में ले जाती हैं, दर्शकों को बांध के रखती हैं और पूरे समय मूल कथा से दूर नहीं जाती है. इस फिल्म में उनकी एडिटिंग का जादू देखने को मिलेगा. फिल्म बहुत अच्छी है. देखने लायक है. इस पर समय खर्च किया जा सकता है.undefined
डिटेल्ड रेटिंग
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Tags: Film review, Movie review, Tollywood
FIRST PUBLISHED : May 16, 2021, 14:59 IST
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