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नई दिल्‍ली. ‘नीतीश के लिए महिलाएं वोट बैंक एक हकीकत है, जिसको लेकर उनकी प्रतिबद्धता कम नहीं होने जा रही है लेकिन जहरीली शराब के कारण हो रही मौतों से मुंह फेर लेना कब तक संभव है? सत्ता पक्ष और विपक्ष के लोग जो आज नीतीश को घेरने की बात करते हैं, उन्हें ये समझना होगा कि शराबबंदी का फैसला सभी दलों का समूहिक फैसला था. फिर इसे लागू करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ नीतीश की कैसे हुई?’

बिहार में शराबबंदी पर सवाल अब तक सिर्फ विपक्ष के चंद नेता उठाते थे लेकिन अब अपने ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से “कड़वे” सवाल करने लगे हैं. अचानक ऐसा क्या हो गया कि महागठबंधन के लोगों ने नीतीश कुमार को आईना दिखाना शुरू कर दिया है? बिहार में शराब मिलती है और पीने वाले शराब का सेवन चोरी-चुपके करते हैं, ये भी सबको ज्ञात है.
मसला है, पकड़े कौन जाते हैं?

अगर गरीब ने थोड़ी सी पी ली तो क्या हुआ?
पकड़े गरीब या दलित समुदाय के लोग ज़्यादा जाते हैं, जो पहले भी देसी तरीके से शराब बनाकर पीते थे और आज भी कमोबेश पीते ही हैं. पूर्व सीएम जीतन राम मांझी खुलेआम कहते रहते हैं कि गरीब आदमी अगर एक पाव शराब पी ही ले तो क्या बिगड़ जाता है, दिन भर की मिहनत के बाद थोड़ी सी शराब पीने से अच्छी नींद आएगी और वो अगले दिन बढ़िया काम कर सकेगा.
खैर, मांझी की शराब संबंधी टिप्पणी को बिहार में कोई गंभीरता से नहीं लेता है. पर राज्य में हालत ऐसे हैं कि पीने वाले ले-देकर पुलिस से पल्ला छुड़ा लेते हैं, जमानत लेने के लिए नियम कानून को लचीला बनाया गया है लेकिन सब निर्भर करता है पुलिस के ऊपर. पुलिस चाहे तो मामले को गंभीर बना दे, चाहे तो घटनास्थल से बेल देकर छोड़ दे.

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बिहार सरकार ने कुछ महीने पहले बेल की शर्तों को लेकर नरम किया और पिछले दिनों नीतीश कुमार ने बातों ही बातों में कह दिया कि अब ज़्यादा ध्यान शराब बेचने वालों और तस्करों पर देना हैं, जो प्रदेश में एक समानान्तर अर्थव्यवस्था चला रहे हैं. जितने मुंह हैं उतनी बातें हैं लेकिन सच्चाई यही है कि पूरे राज्य में शराब धड़ल्ले से बिक रही है.

अब सवाल करने वालों में विपक्ष कम, अपने ही लोग ज़्यादा
कहा जा सकता है कि गाँव-गाँव में पीने का पानी भले ही न पहुँच सका हो लेकिन शराब की कोई कमी नहीं है. ऐसा पहले पेप्सी और कोला के लिए कहा जाता था, अगर ऐसा है तो शराबबंदी का क्या मतलब हुआ? ऐसा पूछने वालों में अब महागठबंधन के लोग ज़्यादा शामिल हो गए हैं. प्रदेश के उद्योग मंत्री के ऊपर बाहर से निवेशकों को लुभाने का दवाब रहता है, बिहार में अक्सर ये बहस होती रहती है कि क्या प्रदेश के बाहर से आए लोगों को शराब की सुविधा मिलनी चाहिए? खास कर बाहर से आने वाले निवेशकों के लिए बिहार में शराब क्यों नहीं मिलनी चाहिए, जैसा कि गुजरात जैसे राज्य में होता है. बिहार के उद्योग मंत्री समीर महासेठ ने वैशाली में सभा को संबोधित करते हुए अपनी ही सरकार पर सवाल उठाते हुए शराबबंदी को असफल करार दिया.

बिहार में शराब की समानान्तर अर्थव्यवस्था
बिहार का मंत्री अगर राज्य में एक समानान्तर अर्थव्यवस्था की बात कर रहा हो तो उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए. कोई इसे सालाना 20,000 करोड़ बता रहा है कोई 25,000 करोड़.
जद (यू) के वरिष्ठ नेता और संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने शराबबंदी को “असफल” करार दिया. सवाल उठाने वालों में काँग्रेस की विधायिका प्रतिमा कुमारी भी थी, जिन्होने राशन की दुकान पर शराब बेचने की मांग कर डाली ताकि राज्य का राजस्व भी बढ़े और लोगों को वैध शराब पीने की इजाज़त भी मिल जाए.

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बिहार जैसे राज्य में शराब रोक पाना असंभव है
ध्यान देने लायक बात है कि बिहार, एक तरफ उत्तरप्रदेश, झारखंड और बंगाल से घिरा हुआ है, वहीं नेपाल के साथ बिहार के सात जिलों की सीमा मिलती है, जहां आवाजाही पर कोई रोक-टोक नहीं हैं. बिहार पुलिस ने पिछले दिनों पटना हाइ कोर्ट में जो आंकड़े पेश किए उसके हिसाब से शराबबंदी की अलग अलग धाराओं में 3,48,170 मामले दर्ज हुए और 4,01,855 गिरफ्तारियाँ भी हुई हैं. बिहार सरकार के अधिकारियों ने अदालत में ये भी माना कि शराबबंदी की अलग अलग धाराओं में गिरफ्तार हुए लोगों की वजह से बिहार की जेलें भर गई हैं.
अदालत में जो बात सामने आई उसके मुताबिक ज़्यादातर गिरफ्तार हुए लोगों की उम्र 18-35 वर्ष के बीच है, जो किसी भी व्यक्ति की जिंदगी का बहुत ही महत्वपूर्ण पड़ाव होता है. शराबबंदी का एक साइड इफैक्ट जिसकी चर्चा बहुत कम हो रही है, वो है, कम उम्र लड़कों (10-25 वर्ष) में बढ़ता ड्रग्स का ओवरडोज़. 2015 से पहले बिहार जैसे राज्य में ड्रग्स के मामले बहुत कम दर्ज होते थे लेकिन अब गाँजा/चरस और भांग का प्रयोग काफी बढ़ गया है.

नीतीश के लिए महिलाएं एक बड़ी वोट बैंक 
नीतीश कुमार सरकार के लिए शराबबंदी एक ऐसा मसला है जिसके जरिये वो समाज को नशा से दूर करके सामाजिक विकास करना चाहते हैं. महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहते हैं. नीतीश के लिए महिलाएं एक ऐसा वोट बैंक हैं, जिसको लेकर उनकी प्रतिबद्धता कम नहीं होने जा रही है.

लेकिन जहरीली शराब के कारण हो रही मौतों से मुंह फेर लेना कब तक संभव है?
क्या नकली शराब और दूसरे राज्यों से स्मगल की जा रही शराब की बिक्री पर रोक पूर्णतया संभव है, फिलहाल ऐसे में नीतीश कुमार को सोचना होगा. जो लोग शराबबंदी पर प्रश्न उठा रहे हैं, उन्हें भी आलोचनाओं से आगे बढ़कर विकल्प सुझाना होगा क्योंकि 2016 में शराबबंदी का फैसला नीतीश कुमार अकेला नहीं, एक समूहिक फैसला था.

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(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

Tags: Bihar politics, Chief Minister Nitish Kumar, Liquor Ban

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