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कहते हैं शिक्षा भविष्य का पासपोर्ट होती है, एक शिक्षित व्यक्ति ही खुद के लिए और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकता है…लेकिन क्या शिक्षा के ये मंदिर असल में सिर्फ रोबोट्स पैदा करने वाली फैक्ट्री में बदल गए है ? ऐसे रोबोट्स जिनमें ना भावनाएं हैं, ना संवेदनाएं हैं..बस है तो सिर्फ एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़…हैरानी इस बात की है इस होड़ ने स्कूली बच्चों के साथ साथ उनके माता पिता को भी मशीनों में बदल दिया है, ऐसी मशीनें जिनका मकसद सिर्फ अपने बच्चों को कामयाब Product के रुप में तैयार करना है.

हम ऐसा क्यों कह रहे हैं इसे समझने के लिए एक ख़बर और एक आंकड़े पर ध्यान दीजिए.  ख़बर पुड्डुचेरी के करइकल की है जहां एक महिला ने 8वीं क्लास में पढ़ने वाले एक बच्चे को सिर्फ़ इसलिए ज़हर दे दिया क्योंकि वो बच्चा अपनी क्लास में हमेशा अव्वल आता था और उस महिला का बच्चा हमेशा दूसरे नम्बर पर आता था. मरने वाले बच्चे का नाम था.. बाला. जो महिला आरोपी है उसका नाम है सागेरानी विक्टोरिया. इस महिला ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है. महिला ने पुलिस को बताया कि उसे इस बात की तकलीफ़ थी कि बाला हमेशा क्लास में Top करता था और दूसरी गतिविधियों में भी हमेशा उसके बच्चे से आगे रहता था.

आरोपों के मुताबिक महिला ने कोल्ड्रिंक में ज़हर मिलाकर 8वीं में पढ़ने वाले बाला को दिया जिससे उसकी मौत हो गई. जिस महिला ने बाला को ज़हर दिया उसकी मानसिकता क्या रही होगी, उसका बच्चा भी शायद पढ़ाई में बुरा नहीं था, बाला सर्वश्रेष्ठ था तो उसका बच्चा भी अच्छा प्रदर्शन करता था लेकिन वो अपने बच्चे को पहले पायदान पर देखना चाहती थी…पर उसने लकीर बड़ी करने की बजाय, दूसरे की लकीर को मिटाना सही समझा और एक होनहार बच्चे की हत्या कर दी…..

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आप अगर मां बाप हैं और आपके घर में भी स्कूली बच्चे हैं जिन पर हमेशा अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव रहता है तो आप थोड़ी देर ज़रा आत्म विश्लेषण कीजिए और सोचिए कि क्या आपको भी तब बुरा लगता है जब पड़ोसी का बच्चा पढ़ाई मे, खेल कूद में, म्यूज़िक क्लास में, डांसिग क्लास में, स्केटिंग में आपके बच्चे को पछाड़ देता है…उस समय हारता कौन है…आप ? या आपका बच्चा ?

NCERT यानी National Council of Educational Research and Training ने इसी हफ़्ते कुछ आंकड़े जारी किए हैं. ये आंकड़े जिस सर्वे के आधार पर जारी हुए हैं उसमें 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के छठी से 12वीं कक्षा तक के क़रीब पौने चार लाख बच्चे शामिल थे. इस सर्वे में शामिल 33 प्रतिशत बच्चों ने माना कि वो पियर प्रेशर का शिकार हैं, यानी वो अपने साथ पढ़ने वाले बच्चों के साथ होने वाली तुलना और उनके प्रदर्शन को लेकर दबाव में रहते हैं और इसी वजह से वो हमेशा एंग्ज़ाइटी में भी रहते हैं यानी उन्हें डर सताता है कि उनके साथ पढ़ने वाला बच्चा उनसे आगे निकल जाएगा.

अब आप सोचिए ये डर खुद बच्चे का होता है या फिर वो इसलिए घबराता है क्योंकि अगर उसने औरों के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो उसके मां बाप उसके साथ क्या सलूक करेंगे ? इसी सर्वे में 81 प्रतिशत बच्चों ने बताया कि उन्हें परीक्षा का डर सताता है , 27 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो अपने स्कूल से नाखुश हैं, 45 प्रतिशत बच्चे तो अपनी शारीरिक बनावट से भी खुश नहीं है यानी 45 प्रतिशत बच्चों को लगता है कि वो दूसरों की तरह सुंदर नहीं दिखते.

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अगर ऐसा ही सर्वे इन बच्चों के मां बाप के बीच किया गया होता तो शायद ज्यादातर मां बाप भी यही कहते कि उन्हें हमेशा ये डर रहता है कि उनका बच्चा दूसरों से पिछड़ ना जाए वो हमेशा इस बात को लेकर एंग्ज़ायटी में रहते हैं. लेकिन ये दबाव, ये एंग़्ज़ाइटी, ये तुलना आखिर क्यों ? अच्छा प्रदर्शन करने में, खुद को बेहतर बनाने में और प्रतियोगिता की भावना रखने में कोई बुराई नहीं है, प्रतियोगिता की ये भावना ही आपको कुछ नया सिखाती है और आप जीवन में आगे निकलने का प्रयास करते हैं लेकिन ज़रा एक मिनट के लिए सोचिए कि भारत में क़रीब 25 करोड़ बच्चे स्कूल जाते हैं, क्या ये सभी बच्चे अपनी क्लास में अव्वल आ सकते हैं ?

क्या ये सभी बच्चे डांस कंपटीशन में पहले नंबर पर आ सकते हैं , क्या सभी को म्यूज़िक बजाने में महारथ हासिल हो सकती है ? क्या सभी स्केटिंग चैंपिययनशिप जीत सकते हैं ? इसका जवाब है नहीं ऐसा नहीं हो सकता और ऐसा होता भी नहीं है लेकिन ये ज़रूर हो सकता है कि जो बच्चा पढ़ाई में अच्छा नहीं है वो शायद अच्छा क्रिकेट खेलता हो, जो क्रिकेट में अच्छा नहीं है वो बढ़िया पेंटिंग कर लेता हो, जिसे पेंटिंग का शौक नहीं है शायद वो कुकिंग में हाथ आज़माना चाहता हो कोई भी परफेक्ट नहीं होता, और कोई भी जिंदगी के हर क्षेत्र में हमेशा नंबर 1 नहीं हो सकता पर हर कोई स्पेशल हो सकता है, उसमें कोई ना कोई ऐसी खासियत हो सकती है जो शायद औरों में ना हो इसलिए अपने बच्चों में खामियों को नहीं खासियत को ढूंढिए, अपने अधूरे सपनों को अपने बच्चों के ज़रिए पूरा मत कराइये, बल्कि उन्हें खुद के लिए नए सपने देखने की प्रेरणा दीजिए.

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(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

Tags: Dreams and ambitions

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