
यह बाघ कुंडेरा रेंज के बसव के खेतों में होकर बनास नदी पार कर हाड़ौती के जंगल मे पहुंचा था. हाड़ौती से यह जीरोता, भड़गपुरा, भरतून की पहाड़ी होते हुए लालपुर उमरी की पहाड़ी में पहुंचा था. काफी दिनों तक लालपुर उमरी में भटकने के बाद टाइगर ने एक बार फिर से जीरोता की राह पकड़ ली थी. इसके बाद जीरोता से बनास नदी को पार करते हुए सपोटरा होते हुए करौली के कैलादेवी अभयारण्य पहुंच गया. इससे पहले टाइगर-टाइग्रेस टेरेटरी की तलाश में रणथंभौर से निकलकर करौली के कैलादेवी अभयारण्य में पहुंच चुके हैं. इनमें बाघ टी-80 यानी तूफान, बाघ टी-47 यानी मोहन, बाघ टी-72 यानी सुल्तान, बाघिन टी-92, टी-118 आदि शामिल हैं. वन विभाग के अनुसार, कैलादेवी अभ्यारण्य में वर्तमान में आठ से अधिक बाघ-बाघिनों का मूवमेंट बना हुआ है. हालांकि पूर्व में कैलादेवी अभयारण्य में गए कई बाघ-बाघिन कुछ दिन वहां रुकने के बाद वापस रणथम्भौर लौट आए थे.
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