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ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव ने खोजी पत्रकार सुचेता दलाल की किताब पर स्कैम 1992 नाम की एक वेब सीरीज दिखाई थी जो कुख्यात शेयर ब्रोकर हर्षद मेहता की ज़िन्दगी पर आधारित थी. इसके बाद कथित रूप से लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की ज़िन्दगी से प्रभावित महारानी नामक वेब सीरीज प्रस्तुत की थी. दोनों ही वेब सीरीज बहुत सफल रहीं और असल ज़िन्दगी से प्रभावित कहानियों का सिलसिला अब आ पहुंचा है मध्य प्रदेश के महाघोटाले “व्यापम” पर. करीब 13 से अधिक कॉम्पिटिटिव एक्ज़ाम्स और पुलिस में भर्ती को लेकर हुए इस भयावह घोटाले में 2000 से अधिक गिरफ्तारियां और करीब 100 से ऊपर मौतें हुईं थीं, जिनमें से 40-50 के करीब मौतें तो जांच के दरम्यान रहस्यमयी परिस्थितियों में हुई थीं. नयी वेब सीरीज “द विसलब्लोअर” ऐसी तो नहीं है कि कुछ शॉकिंग लगे, लेकिन जिस तरह बेहतरीन राइटिंग से कड़ी दर कड़ी गुत्थी को उलझते हुए दिखाया गया है, ये वेब सीरीज सच्चाई का एक बेहतरीन फिक्शन वर्शन है.

मध्य प्रदेश सरकार ने एक ऑटोनोमस बॉडी बनायीं थी व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) जिसका काम था प्रदेश के शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों के लिए एंट्रेंस टेस्ट आयोजित करना. 1990 से व्यापम में परीक्षाओं को लेकर भ्रष्टाचार की शिकायतें आती रही हैं. मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट हों या पुलिस कॉन्सटेबल या फिर फ़ूड इंस्पेक्टर जैसी कई सरकारी नौकरियों में भर्ती की परीक्षा, इसमें कई तरीके से अयोग्य छात्र-छात्राओं को अलग अलग तरीके से परीक्षा में पास करवाया जाता था ताकि उन्हें एडमिशन या नौकरी मिल सके. इसके बदले इन सभी से तगड़ी रकम वसूली जाती थी. इसके कुछ खास तरीके थे – परीक्षा देने किसी और को भेजना, परीक्षा केंद्र में खुलेआम नक़ल, परीक्षा में उत्तर पुस्तिकाओं को खाली छोड़ देना ताकि उसमें सही जवाब चेकिंग के टाइम भरे जा सकें या फिर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर मुहैया कराना. हालाँकि ये स्कैम दशकों से चल रहा था लेकिन वर्ष 2000 में पहली एफआइआर दर्ज होने के बाद से इस केस में इतनी परतें निकली और इसका फैलाव इतना वृहद निकला की पुलिस, स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को भी इसकी तह तक जाने में असफलता ही मिली. मध्य प्रदेश के कई मंत्री, उनके सचिव और निजी स्टाफ, सरकारी अधिकारी, व्यापम के कर्मचारी, कॉलेज और यूनिवर्सिटी के स्टाफ मेंबर्स, नेता, कॉन्ट्रैक्टर और न जाने कितने घाघ षड्यंत्रकारी इसमें शामिल थे. मध्यप्रदेश के गवर्नर के बेटे का भी नाम इसमें शामिल पाया गया था और उसकी मृत्यु जांच के दौरान रहस्यमयी तरीके से हो गयी ही. इसकी जांच में ही कई पत्रकारों और गवाहों की मृत्यु हुई जिनके राज़ पर से कभी पर्दा नहीं उठ सका और कई लोग गायब हो गए, भाग गए और कहा जाता है की विदेश भी चले गए. व्यापम घोटाला, देश के सबसे निकृष्ट घोटालों में शामिल है क्योंकि इसके तहत कम से कम 500 से अधिक अयोग्य व्यक्ति डॉक्टर बन गए और कई हज़ारों व्यक्ति सरकारी नौकरियां पा गए.

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द विसलब्लोअर को लिखा है अजय मोंगा ने. ये वही अजय मोंगा हैं जिन्होंने शाहरुख़ खान की कंपनी पर फिल्म ओम शांति ओम में उनकी कहानी चुराने का आरोप लगाया था. अजय ने इस विषय पर गंभीरता से रिसर्च की है. पटकथा लिखने में उनके साथ हैं शिवांग मोंगा और डायलॉग लिखने में देवांग गाँधी ने. लेखनी बढ़िया कहीं जा सकती है क्योंकि इसमें पूरे स्कैम को होते हुए दिखाया गया है और साथ ही उसमें पैरेलल ड्रामा स्टोरीज की मदद से हर किरदार को अहमियत दी गयी है. ये निश्चित तौर पर हर्षद मेहता वाली “स्कैम 1992” जैसी तो नहीं है लेकिन इसमें कोई भी बात गलत नहीं है और फ़िल्मी अंदाज़ भी कम ही रखा गया है. कुछ किरदार ज़रूर इतराते हुए और नकली सा पात्र बन कर सामने आते हैं लेकिन उसका हैंगओवर बहुत ज़्यादा नहीं रहता. जहां स्कैम 1992 में डायलॉग कड़क थे और किरदार काफी लार्जर दैन लाइफ बन गए थे, द विसलब्लोअर में पात्र आम ज़िन्दगी से उठा कर लाये गए हैं. अजय और उनकी टीम की तारीफ़ करनी होगी की हर एपिसोड बाँध के रखता है और जहां बोझल हो भी जाता है लेखक जल्द ही उसे फिर से ट्रैक पर ले आते हैं. किरदारों की आपसी कहानियां भी मूल कहानी से जुडी हुई ही हैं इसलिए सेंट्रल ट्रैक हमेशा सही चलता है. भोपाली अंदाज़ के डायलॉग काफी पसंद किये जायेंगे. पूरी सीरीज की शूटिंग भोपाल में हुई है और शहर से वाकिफ लोग अपनी पसंद के इलाके और इमारतें देख कर खुश होंगे.

द विसलब्लोअर के नायक हैं ऋत्विक भौमिक. ज़्यादा अनुभवी नहीं हैं लेकिन लगने नहीं देते. काफी कॉन्फिडेंस के साथ अभिनय किया है. उनकी चाल हॉलीवुड अभिनेता जिम कैरी से प्रभावित है और इसलिए अनचाही कॉमेडी हो जाती है. इस सीरीज को देख कर कहा जा सकता है कि सही निर्देशक के हाथ में ऋत्विक, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर जल्द ही अच्छे अभिनेताओं की श्रेणी में आ जायेंगे. ये उस जनरेशन का प्रतिनिधित्व करते हैं जो बड़ी से बड़ी दुर्घटना, गलती, अपराध या नीच हरकत को भी सीरियसली नहीं लेते. “हां तो हो गया न क्या हो गया, आगे नहीं होगा ” कह कर आगे बढ़ जाने वाले युवक के किरदार में ऋत्विक एकदम सटीक हैं. उनके साथ हैं रवि किशन. एक नेगेटिव रोल में रवि किशन ने एक बार फिर कमाल किया है. बीच बीच में वो ओवर द टॉप होने लगते हैं लेकिन उनके डायलॉग इतने आसान से हैं कि वो नकली और फ़िल्मी विलन बनते बनते रह जाते हैं. सशक्त रोल है और सशक्त अभिनय. सचिन खेडकर और सोनल कुलकर्णी मराठी नाटकों और फिल्मों की दुनिया में अपनी अलग पहचान रखते हैं. हालाँकि हिंदी में काम कम करते हैं लेकिन द विसलब्लोअर में उन्होंने दिखा दिया है कि सहजता किसे कहते हैं. कुछ समय पहले राम माधवानी की फिल्म में चैनल की बॉस के रोल में एक और मराठी अभिनेत्री थीं अमृता सुभाष जो बहुत ही चालक, घाघ और क्रूर किस्म की बॉस बनी हैं जो अपने और चैनल के मतलब के लिए किसी भी हद तक गिर सकती हैं. इसके विपरीत सोनाली ने काफी संयत किरदार निभाया है और उनके डायलॉग से ही उनकी चालाकी झलक जाती है. पुलिसवाले रूपेश सिंह के किरदार में भगवान तिवारी काफी खूंखार लगे हैं. इनके आने के बाद से स्क्रीन पर गालियों की बौछार होने लगती है. थोड़ा खलता है लेकिन किरदार ही एक भ्रष्ट पुलिसवाले का है. बाकी अभिनेता जैसे अंकिता शर्मा और रिद्धि कक्कड़ ने अपना काम अच्छे से किया है. ऋत्विक के बाद जिस अभिनेता ने प्रभावित किया है वो हैं आशीष वर्मा जो काफी समय से सहायक भूमिकाओं में नज़र आते रहे हैं. इसमें उन्होंने किरदार के मुताबिक अभिनय किया है और काफी सफल रहे हैं.

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केतन सोढा का संगीत लाजवाब है. केतन ने कई फिल्मों और वेब सीरीज का बैकग्राउंड म्यूजिक बनाया है जैसे लुका छुपी, स्त्री, रूही, द फॅमिली मैन. उनके पिता श्री किशोर सोढा कई दशकों से फिल्मों में ट्रम्पेट वादक के तौर पर काम करते आ रहे हैं और हर बड़े संगीतकार के साथ उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया है. केतन को संगीत विरासत में मिला है और ये बात वो हर बार अपने काम से ज़ाहिर करते हैं. इस सीरीज में भी उन्होंने संगीत के कई रंग प्रस्तुत किये हैं. थीम म्यूजिक भी काफी डरावना सा लगता है. स्टैनले मुड़ा की सिनेमेटोग्राफी अद्भुत है. एक एक फ्रेम और उसकी लाइटिंग कमाल की गयी है. इस सीरीज में हर सीन में एक अनजान डर की अनुभूति होती रहती है भले ही वो एक रोमांटिक सीन क्यों न हो. सीरीज के एडिटर हैं देव राज जाधव जिनकी ये पहली वेब सीरीज हैं लेकिन वो इसके पहले बधाई हो, तेवर, फुकरे रिटर्न्स जैसी कई फिल्मों को एडिट कर चुके हैं. सीरीज की गति बनाये रखी है. कहीं कहीं कहानी से भटक जाती है लेकिन फिर मूल ट्रैक पर लौट आती है.

अंत में बात निर्देशक मनोज पिल्लई की. एडवरटाइजिंग की दुनिया से वेब सीरीज की और कदम बढ़ाये गए हैं. बहुत अच्छा काम किया है. मनोज को सीन लाइटिंग की अच्छी समझ है हालाँकि सीन को कैसे बेहतर बना सकते हैं और कैसे किरदारों को एक्शन में लाया जा सकता है, इस बात पर उन्हें मेहनत करनी होगी. अधिकांश समय किरदार बैठे हुए हैं. कैमरा मूवमेंट पर अगर आपकी पकड़ बढ़िया हो तो हर सीन को एक्शन सीन की तरह फिल्माया जा सकता है. मनोज का वेब सीरीज के निर्देशक के तौर पर पदार्पण ज़ोरदार है. व्यापम घोटाले की कहानियों से प्रभावित हो कर एक फिल्म आयी थी हलाहल जो इस वेब सीरीज से अलग है लेकिन बेहतर लग सकती है. उसे भी देखा जा सकता है. फिलहाल तो द विसलब्लोअर देखिये. कहानी नयी न लगे ये संभव है लेकिन बनायीं ईमानदारी से गयी है. जिस तरीके से असली घटनाओं को पात्रों के नाम को हल्का सा तोड़ मरोड़ कर सीरीज में रखा गया है, ये सवाल मन में ज़रूर आता है कि अब तक इसे बैन क्यों नहीं किया गया.

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डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

Tags: Film review, Ravi Kishan

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